Adhure Sapno ki Chadar - 17 in Hindi Love Stories by Umabhatia UmaRoshnika books and stories PDF | अधूरे सपनों की चादर - 17

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अधूरे सपनों की चादर - 17

अध्याय 17

नई राहों की दहलीज़(अधूरे सपनों की चादर)


12वीं की परीक्षा का परिणाम आया। तमन्ना के हाथ में मार्कशीट थी और दिल में धड़कनें। जब उसने देखा कि एक विषय में 84% अंक आए हैं तो मानो घर में खुशी की लहर दौड़ गई। परिवार में, पड़ोस में, रिश्तेदारों में—सबके चेहरे पर गर्व था। अब तक जो चुपचाप और छुपी-सी रहती थी, अचानक सबकी नजरों में आ गई। पुरानी सहेलियाँ भी कहने लगीं—“अरे तमन्ना, तूने तो कमाल कर दिया। हमें तो अच्छे कॉलेज में दाख़िला भी नहीं मिला, और तू तो बड़े-बड़े कॉलेज के फॉर्म भर रही है।”

तमन्ना ने दो-तीन गर्ल्स कॉलेज के फॉर्म भरे थे, लेकिन किस्मत उसे एक अनजान राह पर ले जाने वाली थी। बिना ज्यादा सोचे-समझे उसका एडमिशन एक को-एजुकेशन कॉलेज में हो गया। किसे पता था कि यही कदम उसके जीवन को एक नई दिशा देगा।

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घर की हलचल और पहला उपहार

इन्हीं दिनों बड़े भाई की शादी हुई थी। घर में चहल-पहल थी, पर माँ की तबीयत ठीक नहीं रहती थी। तमन्ना को भी गृहस्थी और बच्चों की देखभाल का विशेष अनुभव नहीं था। भाभी कुछ समय के लिए मायके चली गईं। तभी परिवार में एक पुत्र का जन्म हुआ—वंश का पहला पुत्र। लेकिन आश्चर्य यह था कि बाबूजी ने पूरे दो महीने तक उस बच्चे को देखा तक नहीं।  अधिक पुत्र होने के बाद शायद उन्हें अब पुत्र जन्म का उतना आकर्षण नहीं रहा। घर का माहौल सपाट रहा, जैसे कोई बड़ी घटना ही न हुई हो।

इसी बीच जब बड़े भाई और भाभी को पता चला कि तमन्ना का कॉलेज में दाख़िला हुआ है, वे बाजार से उसके लिए एक सुंदर-सा पिट्ठू बैग और आरामदायक फ्लोटर्स लेकर आए। बड़ी भाभी ने हँसते हुए आशीर्वाद दिया—“चलो, तुम्हारे जीवन का एक नया सफ़र शुरू हो रहा है। यह राह खुशियों से भरी हो।”

वह पल तमन्ना के लिए अमूल्य था। इससे पहले कभी उसने अपने प्रयासों के लिए इतना सम्मान नहीं पाया था। यह तो जैसे उसकी मेहनत का पहला सार्वजनिक पुरस्कार था—एक पिट्ठू बैग और एक जोड़ी चप्पल। पर असल में यह उपहार नहीं, बल्कि विश्वास था।

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अनजान शहर, अनजानी राहें

वो दिन धूप बहुत तेज़ थी।गाँव के पक्के मकानों की छतों से धूप की चमक नीचे आँगन में उतर रही थी। तनु ने अपना छोटा-सा बैग सँभाला — उसके अंदर दो किताबें, कुछ पैसे और माँ की बनाई हुई रोटियाँ थीं। आज वो पहली बार अकेले शहर जा रही थी; कॉलेज का दाख़िला और वही बड़े शहर का पहला दिन। दिल में उम्मीदें भी थीं, और बेचैनी भी।

पहली बस गाँव के कटाव से निकलती थी। वहाँ तक तो सब सामान्य था — वह बैठी, खिड़की से बाहर खेतों की हरियाली देख रही थी, हवा में मिट्टी की सुगंध आ रही थी। गाँव के लोग, बच्चे सब अपनी रोज़मर्रा की चाल में लगे थे। पर जब बस ने पहली बार रुककर बीच के किसी छोटे बसेरे पर रस्ते से उतरने की तैयारी की, तनु की धड़कन तेज़ हुई — क्योंकि अब अगली बस बदलनी थी, और वह भी भीड़-भाड़ वाले रास्ते पर।

बस स्टेशन छोटा था — मिट्टी की जमीन, कुछ दफ़्तरों के बोर्ड, और एक छोटे चाय के ठेले पर बच्चे और महिलाएँ खड़े। तनु ने अपना बैग कसकर पैरों के पास रखा और लाइन में खड़ी हो गई। उसकी आँखें

सरकारी स्कूल में हिंदी माध्यम से पढ़ने वाली तमन्ना को कॉलेज का रास्ता एकदम नया था। घर से अकेले निकलने का अनुभव ही नहीं था। अब उसे रोज़ाना दो बसें बदलकर कॉलेज जाना पड़ता था।

पहले दिन साहस बटोरकर वह किसी तरह बस में चढ़ी। भीड़, शोर, टिकट कंडक्टर की आवाज़ें—सब अजनबी-से लगे। किसी तरह दूसरी बस का स्टॉप मिला और वह कॉलेज पहुँची। लेकिन कॉलेज का दृश्य देखकर दिल सहम गया। यह एक शहर का भारतीय कॉलेज था, जहाँ अधिकतर छात्र-छात्राएँ  मिश्रित  संस्कृति से आए थे। चारों ओर सिर्फ अंग्रेज़ी की गूँज थी। हिंदी बोलने वाले गिनती के लोग थे।

क्लास उस दिन शुरू नहीं हुई। तमन्ना सिर्फ चेहरों को ताकती रही। उसे लग रहा था मानो वह किसी और ही दुनिया में आ गई है।

वापस लौटने का समय आया तो दुश्वारियाँ और बढ़ गईं। गलत बस में चढ़ गई और किसी अजनबी गांव में पहुँच गई। पूछते-पूछते घर पहुँची, लेकिन जेब में रखा लगभग सारा किराया ख़त्म हो गया। अगले दिन फिर जाना था, सो बाबूजी से पैसे माँगने पड़े।

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कठिन शुरुआत

कुछ दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा। हर सुबह बसें बदलना, नए लोगों से टकराना, भाषा की दीवार से जूझना।

क्लास में धीरे-धीरे सहपाठियों से परिचय हुआ। तमन्ना और उसकी कुछ सहेलियाँ—सभी सरकारी स्कूल से पढ़ी हुई, सीधी-सादी, अंग्रेज़ी में कमजोर। शुरुआत में तो वे सब खुद को अलग-थलग महसूस करतीं, लेकिन साथ बैठकर खाना साझा करने लगीं।

इन्हीं में से एक सहेली का नाम बहुत लंबा  था । नाम याद करने में कई दिन लग गए, पर धीरे-धीरे वही सहेली सबसे करीबी बन गई। वह थोड़ी अंग्रेज़ी जानती थी, इसलिए तमन्ना और बाकी सहेलियाँ अकसर उसी पर निर्भर रहतीं।

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चुनावी माहौल और पहली मुलाकात

कॉलेज में चुनाव होने वाले थे। उम्मीदवार छात्र-छात्राएँ कक्षाओं में आते, परिचय देते और वोट माँगते। तमन्ना और उसकी सहेलियों को तो यह भी समझ नहीं था कि चुनाव कैसे होते हैं। वे सब हँसते-मुस्कुराते बस परिचय सुन लेतीं।

इन्हीं उम्मीदवारों में एक चेहरा था—राज। पहली नज़र में वह सामान्य-सा लगा। न आकर्षण, न कोई विशेष दिलचस्पी। वह आता, अपनी बात कहता और चला जाता।

चुनाव का दिन आया। तमन्ना को भी वोट डालने का अवसर मिला। लेकिन उसने कभी चुनाव की प्रक्रिया नहीं समझी थी। जिन दो उम्मीदवारों को वह जानती थी, दोनों को ही वोट डाल दिया। नतीजा यह हुआ कि राज सिर्फ एक वोट से चुनाव हार गया।

जब यह बात फैली कि तमन्ना ने दो वोट डाल दिए, तो सबकी हँसी का कारण बन गई। राज भी जान गया कि उसके हारने के पीछे तमन्ना की मासूम गलती थी। तमन्ना शर्मिंदा हुई, लेकिन भीतर कहीं हल्की-सी गुदगुदाहट भी थी। यह उसकी ज़िंदगी की पहली अनजानी मुलाक़ात थी—भविष्य में जिसका असर बहुत गहरा होने वाला था।

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भीतर का डर और बाहर की दुनिया

हालाँकि कॉलेज का माहौल धीरे-धीरे सहज लगने लगा था, फिर भी तमन्ना का मन कई बार सहम जाता। बसें पकड़ते समय, अजनबी चेहरों के बीच, अंग्रेज़ी बोलते सहपाठियों के बीच—उसे लगता जैसे वह किसी अदृश्य लड़ाई में जुटी है।

वह सोचती—“क्या मैं यहाँ टिक पाऊँगी? क्या मेरी हिंदी-मीडियम की पढ़ाई मुझे पीछे छोड़ देगी? या फिर मैं खुद को साबित कर पाऊँगी?”

लेकिन हर शाम जब वह बैग उतारकर फ्लोटर्स उतारती, बड़ी भाभी का दिया हुआ आशीर्वाद याद आता—“खुशियों से सफर शुरू करो।” यही शब्द उसे फिर अगले दिन कॉलेज जाने की हिम्मत दे देते।

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पहली पहचान

चुनाव की गलती ने तमन्ना का नाम पूरे कॉलेज में पहुँचा दिया। लोग मुस्कुराकर कहते—“यही है वह गांव की लड़की जिसकी वजह से राज हार गया।”

तमन्ना झेंप जाती, लेकिन अब वह छुपी हुई नहीं रही। भीड़ में पहचान बन गई थी। यह पहचान मजाक से शुरू हुई थी, पर यह भी उसकी किस्मत का लिखा एक नया अध्याय था।

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अधूरी चादर का एक टुकड़ा

इस तरह तमन्ना का कॉलेज जीवन शुरू हुआ—डर, अनजानेपन और संघर्षों से भरा, लेकिन भीतर कहीं नई रोशनी की आहट लिए हुए। किसे पता था कि यह छोटा-सा कदम, यह छोटी-सी गलती, आगे चलकर उसकी अधूरी चादर में एक नया रंग भर देगी।