अगले दिन, प्रकृति और रिद्धान दोनों अलग-अलग जगहों पर अपने-अपने मिशन पर लग गए।
प्रकृति ने सबसे पहले रिद्धि के बैच के सभी टीचर्स और स्टूडेंट्स की लिस्ट खंगाली।
हर नंबर डायल किया—एक-एक करके कॉल।
कॉल पर हमेशा वही जवाब मिलता—“wrong नंबर है” या “मुझे यह जानकारी नहीं है।”
किसी ने विदेश जाने का जिक्र किया, किसी ने कहा कि अब ये पुराने रिकॉर्ड में नहीं हैं।
हर कॉल के बाद, प्रकृति पन्ना पलटती, नाम नोट करती और फिर अगला नंबर डायल करती।
कभी Google Maps पर एड्रेस चेक किया, कभी सोशल मीडिया प्रोफाइल देखी, किसी से फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजी—
हर कोशिश के बाद भी सब खाली हाथ।
रिद्धान भी वही कर रहा था।
एक-एक स्टूडेंट का नंबर डायल करना, नाम लेना, पूछना—
“रिद्धि के बारे में कुछ पता है?”
कभी जवाब आता—“मैं नहीं जानता,”
कभी—“गलत नंबर।”
हर बार उसका दिल और भारी होता।
लेकिन वह खुद को संभालता, हाथ में फाइल लिए, हर डिटेल नोट करता।
दिन बीतता गया, और दोनों की कोशिशें बेकार होती दिखीं।
रिद्धान थककर अपनी स्टडी टेबल पर बैठ गया।
जितना वो फाइल में डूबता, उतना ही उसका दिल भारी होता जाता।
आंखें बंद कीं तो उसे वही लम्हा याद आया—
कल शाम का…
जब प्रकृति उसके सामने आई थी और वो टूटकर उसके सीने से लग गया था।
उसके आंसू उसकी कमर पर गिर रहे थे और वो बिना कुछ कहे उसके बाल सहला रही थी।
वो लम्हा याद आते ही रिद्धान को एक अजीब सा सुकून मिला।
बिना सोचे-समझे वो अपने घर से बाहर आया ,अपनी गाड़ी निकाली और उसे पता ही नहीं चला की कब वो प्रकृति के घर आ पहुंचा.....
वो घर के बाहर खड़ा हो गया। अपनी कार से टेक लगा के दोनों हाथ पॉकेट में डाल के।
न अंदर गया, न दरवाज़ा खटखटाया… बस चुपचाप खड़ा होकर उस घर को देखने लगा।
जैसे उस घर की दीवारों, दरवाज़ों, खिड़कियों में ही उसे चैन मिलता हो।
“यहीं रहती है वो… शायद अंदर होगी… यही उसकी दुनिया है…”
सोचते हुए उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान आई।
दिल की धड़कनें अब भी भारी थीं, लेकिन आंखों को सुकून मिल रहा था।
रिद्धान अपने ख्यालों में डूबा हुआ था, हर पल प्रकृति की तस्वीर उसके दिल में घूम रही थी।
"Kitni pyari ho tum… janta hoon tumhe kuch nahi kiya… pata nahi kyu aaj tak tumhe gunehgar maan raha tha, par mera dil tab bhi jaanta tha… aur sab bhi jaanta hai ki tumne kuch nahi kiya… Bas ab aur iss cheez me tumhe nahi laaunga… I promise…"
इसी बीच, प्रकृति अपने घर की तरफ लौट रही थी। शाम की ठंडी हवा उसके बालों को हल्का सा हिला रही थी।
जैसे ही वह गली के एक कोने पर पहुँची, उसके कदम अचानक रुक गए।
एक साया उसके सामने था—धीरे-धीरे उसने देखा, और वह कुछ पल के लिए ठहर गई।
रिद्धान खड़ा था, बस चुपचाप उसके घर की तरफ देख रहा, लेकिन उसके मन में केवल प्रकृति ही थी।
प्रकृति की आंखें खुली की खुली रह गईं। पहले तो वह समझ नहीं पाई कि क्या करे, फिर वह गली के पीछे एक दीवार के पास छिप गई, जैसे रिद्धान से थोड़ी दूरी बनाए।
रिद्धान अब भी उसके घर की तरफ देखते हुए अपने ख्यालों में डूबा था।
उसके मन में बस यह चल रहा था—“Wahi hai… wahi jo mere dil mein hamesha thu… ki itni doori me bhi uska ehsaas milta hai,
uski mojudgi k khyal se hi man ko itna sukoon milta h ”
प्रकृति भी अपने मन में उलझन में थी।
"Tum yaha… ab kyu aaye ho? Ab kaunsa jawab lene aaye ho? Ya fir koi ilzaam lagane aaye ho… Tum ese kyu ho, kabhi bataya kyu nahi itni takleef me ho… ek baar puchte to… par tumne to…"
दोनों बस अपने-अपने ख्यालों में खोए हुए थे। रिद्धान के दिल में प्रकृति के लिए प्यार और चिंता घुली हुई थी, और प्रकृति अपने मन में रिद्धान की मौजूदगी की गर्माहट महसूस कर रही थी।
इसी बीच रिद्धान का फोन वाइब्रेट हुआ। वह धीरे से अपनी कार की तरफ बढ़ा, लेकिन उसकी नजरें बस प्रकृति पर थीं।
प्रकृति ने भी उसे जाते हुए देखा, और उसके दिल में एक हल्की मुस्कान और गर्माहट पैदा हुई।
दोनों एक-दूसरे को देखे बिना, बस अपने मन की नज़रों में, अपने-अपने रास्तों पर बढ़ गए।
शाम की ठंडी हवा, गली की खामोशी और उनके दिलों की धड़कनें—सब कुछ बस इस अनकहे, चुपचाप प्यार की दास्तान बयां कर रही थीं।
दूरी के बावजूद, उनके दिल एक-दूसरे के करीब महसूस हो रहे थे।
Ridhaan का मन भीतर ही भीतर हलचल से भर गया। उसने अपनी कार का गेयर कसते हुए गहरी सांस ली
और तुरंत मैनेजर को कॉल किया।
“Hello… अगले हफ्ते की मेरी सारी मीटिंग्स कैंसल कर दो, और जो भी urgent है, उसे Kabir कै handle के लिए बोल देना।”
मैनेजर की आवाज़ में थोड़ी हिचक थी। ,: “Sir, Kabir sir अगले हफ्ते भी ऑफिस में नहीं आएंगे… उन्होंने भी यही कहा है कि उनकी मीटिंग्स accordingly adjust कर दी जाएं।”
इतना सुनते ही Ridhaan के मन में alertness की घंटी बज उठी। कुछ तो गड़बड़ है। उसका दिल और दिमाग दोनों सतर्क हो गए।
उसने तुरंत पूछा, “Prakriti का क्या?”
“उनका भी अगले हफ्ते ऑफिस में आना नहीं है… उन्होंने पहले ही apply किया था।”
Ridhaan ने बिना कुछ बोले call cut कर दिया।
उसके मन में एक अजीब सा feeling उठी। प्रकृति और Kabir दोनों अचानक गायब क्यों हैं?
क्यों उसके और प्रकृति के schedule एक साथ मिस हो रहे हैं? कुछ उसके अंदर click हुआ, लेकिन वह खुद भी समझ नहीं पा रहा था।
Dil में हल्की गर्माहट और उलझन, दोनों मिली हुई—जैसे कोई silent signal उसे बताने की कोशिश कर रहा हो कि कुछ बड़ा होने वाला है।
लेकिन क्या कर सकता था? बस कार में बैठा, रास्ते की तरफ देखता रह गया, और अपने ख्यालों में खो गया।