अंधेरी रात, बरसते बादल और सूनी सडक. कोने में बैठा एक फटेहाल बूढा आदमी, मैली दाढी, गंदे कपडे, हाथ में लोहे का कटोरा. राहगीर उसे नजरअंदाज करते, कुछ लोग सिक्के फेंककर आगे बढ जाते. कोई नहीं जानता था कि ये झुका हुआ बूढा असल में शहर का सबसे बडा नाम था—कबीर मल्होत्रा. वो हर रात अपने झोपडे में लौटता, और जैसे ही अंधेरा फैलता, उसकी झोपडी का फर्श खुल जाता. नीचे उतरते ही सुनहरी दीवारें, हीरे- जवाहरात, सोने के बक्से, पेंटिंग्स और दुर्लभ हथियारों से भरा तहखाना. कबीर अपने मैले कपडे उतारकर रेशमी शेरवानी पहनता, कटोरे की जगह हाथ में जाम उठाता और आईने में देखते हुए खुद से कहता, दुनिया मुझे भिखारी समझती है, और यही मेरी सबसे बडी ताकत है।
उस रात तहखाने में अकेला नहीं था वो. छायाओं से एक परछाई उभरी. वो था जेरेफ रायचंद. लंबे काले कोट में, चेहरा सख्त और आँखें सवालों से भरी. कबीर ने बिना पलके झपकाए उसकी तरफ देखा. जेरेफ बोला, तो ये सच है. शहर का सबसे बडा भिखारी ही सबसे बडा रईस है. मैं महीनों से तुझे ढूँढ रहा था। कबीर हल्के से मुस्कुराया, और ढूँढकर क्या करोगे? जो सच्चाई खोजने आया है, उसे खुद को खोना पडता है।
जेरेफ ने मेज पर हाथ मारा. मुझे अपने अतीत का जवाब चाहिए. मुझे जानना है मैं कौन हूँ. हर जगह मेरा पीछा हो रहा है, और मुझे यकीन है कि तुम्हें सच पता है। कबीर ने उसके चेहरे में झाँकते हुए कहा, तेरी आँखों में आग है लेकिन तेरे दिल में डर भी है. सच जानना चाहता है तो पहले अपने डर को मार।
दरवाजा अचानक धडाम से बंद हुआ. अंधेरे में भारी कदमों की आवाज गूँजी. एक काला चोगा, लाल आँखें और होंठों पर खतरनाक मुस्कान लिए अंदर आया जारिन खान. उसकी आवाज बिजली की तरह गूँजी, सच को मारने की कोशिश मत करना, सच से खेलना सीखो. जेरेफ रायचंद, तुझे लगा तू अपनी पहचान से भाग सकता है? याद रख, तेरी जिंदगी मेरी वजह से शुरू हुई और मेरी वजह से ही खत्म होगी।
जेरेफ ने तल्खी से जवाब दिया, जारिन खान, तू सोचता है कि मैं तेरे जाल में फँस जाऊँगा? तू गलत है। जारिन ने ठहाका लगाया, गलत? गलत तो तू है. तुझे ये भी नहीं पता कि तेरे सबसे करीब कौन है. सैरिन मेहता—क्या तुझे यकीन है कि वो सचमुच तेरी है?
जैसे ही उसका नाम लिया गया, तहखाने का दरवाजा धीरे- धीरे खुला और अंदर दाखिल हुई सैरिन मेहता. उसके चेहरे पर आँसू थे, सफेद कपडे भीग चुके थे और उसकी आँखों में बेमिसाल गहराई थी. जेरेफ की साँसें तेज हो गईं. सैरिन. ये सब क्या है? तू क्यों रो रही है?
सैरिन काँपते स्वर में बोली, जेरेफ. मैं तुझे बचाना चाहती थी, लेकिन अब शायद बहुत देर हो चुकी है। जेरेफ उसके करीब आया, अगर सचमुच बचाना चाहती हो तो सच बताओ. तुम कौन हो? और जारिन से तुम्हारा रिश्ता क्या है?
सैरिन ने होंठ खोले लेकिन आवाज न निकली. तभी तहखाने की दीवार पर खून से लिखा संदेश उभर आया—“ सैरिन झूठ बोल रही है। पूरा कमरा खामोश हो गया. जेरेफ की आँखों में शक और दर्द साथ- साथ उमड पडा. उसने सैरिन का चेहरा पकडकर कहा, अगर ये सच है तो बोलो, सैरिन! वरना मैं टूट जाऊँगा।
सैरिन की आँखों से आँसू टपकते रहे. वो चुप रही. जारिन ने ठंडी हँसी के साथ कहा, देखा जेरेफ? जिस पर तूने भरोसा किया वही तुझे धोखा दे रही है. यही खेल है।
कबीर मल्होत्रा अब तक चुपचाप जाम पी रहा था. उसने धीरे से कहा, सच कभी सीधा नहीं होता. सच हमेशा टेढा होता है. और असली ताकत उसी के पास होती है जो टेढे सच को भी अपने हक में कर ले।
जारिन ने उसकी तरफ देखा, और तू सोचता है कि तेरी दौलत तुझे बचा लेगी? कबीर मुस्कुराया, मेरी दौलत मेरी ढाल नहीं, मेरा भेस है. तूने मुझे भिखारी समझा और यही तेरी सबसे बडी हार है. असली अमीर वो है जिसे कोई पहचान न पाए. असली ताकत वो है जो कमजोरी लगती हो।
कमरा अचानक काँपने लगा. झूमर हिले, दीवारें गूँज उठीं. हर कोने से एक ही आवाज सुनाई दी—“ खेल अभी शुरू हुआ है। जेरेफ, सैरिन, जारिन और कबीर चारों एक- दूसरे को देख रहे थे. हर चेहरा रहस्य से भरा था, हर आँख में अलग मकसद. कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ—इसका जवाब हवेली की दीवारें भी नहीं जानती थीं.
अंधेरे में कांपते झूमरों की रौशनी धीरे- धीरे स्थिर हुई. चारों चेहरों पर खामोशी का बोझ था, मगर भीतर आग जल रही थी. जेरेफ रायचंद की आँखों में गुस्से का तूफान था, सैरिन मेहता के होंठ काँप रहे थे, जारिन खान की हँसी और ज्यादा गहरी हो रही थी, और कबीर मल्होत्रा अपने जाम को तौलते हुए किसी अगली चाल के बारे में सोच रहा था.
जेरेफ ने कदम बढाया और सैरिन का हाथ थाम लिया, तुम बोल क्यों नहीं रही? तुम्हारी आँखों में वो बातें हैं जिन्हें सुनने की मुझे जरूरत है. अगर तुमने सच नहीं कहा तो मैं कभी खुद को माफ नहीं कर पाऊँगा।
सैरिन ने काँपते हुए कहा, जेरेफ. मैंने जो किया वो मजबूरी थी. तुम्हें बचाने के लिए मुझे झूठ बोलना पडा. जारिन. उसकी आँखें जारिन की तरफ गईं, उसके पास वो राज है जो अगर बाहर आया तो सब कुछ तबाह हो जाएगा।
जारिन ठहाका मारते हुए बोला, वाह! सैरिन, तेरा झूठ तेरी आँखों से छलक ही गया. जेरेफ, तू इतना मासूम है कि इस औरत के आँसुओं में भी सच्चाई ढूँढता है. जान ले, ये औरत मेरी बाजी की सबसे बडी मोहरा है।
जेरेफ ने गुस्से में जारिन की तरफ झपट्टा मारा, लेकिन कबीर मल्होत्रा ने अपना हाथ उठाकर हवा में ही रोक दिया. उसकी आवाज भारी और गूंजदार थी, यह तहखाना मेरे खेल का हिस्सा है. यहाँ कोई लडाई नहीं होगी, सिर्फ सौदा होगा।
जारिन ने आँखें सिकोडकर कहा, सौदा? Kiss चीज का सौदा करेगा तू, बूढे भिखारी?
कबीर धीरे से मुस्कुराया, उसकी आवाज में गहरी रहस्यमयी ठंडक थी, तू मुझे भिखारी समझकर हमेशा गलती करता है. ये ‘सोने का पिंजरा’ सिर्फ मेरी तिजोरी नहीं, ये मेरे साम्राज्य का दिल है. यहाँ से निकली हर चाल शहर की नसों में दौडती है. जेरेफ, तेरा अतीत. सैरिन की सच्चाई. और जारिन का खेल—सबकी चाबियाँ मेरे पास हैं।
जेरेफ ने दाँत भींचते हुए कहा, अगर सचमुच चाबी तेरे पास है तो बता, मैं कौन हूँ? क्यों मेरी हर साँस किसी अनजान अतीत का पीछा करती है?
कबीर ने अपना जाम खाली किया और गहरी साँस ली, तेरी नसों में जो खून बह रहा है, वो दो साम्राज्यों की लडाई का नतीजा है. तेरा बाप एक राजा था, और तेरी माँ एक गद्दार की बेटी. तू दोनों खून का मिलाजुला वारिस है. तू जन्मा ही इसलिए था कि ताज टूटे और नया ताज बने।
सैरिन की आँखें चौडी हो गईं. उसने काँपते हुए कहा, नहीं कबीर! ये सच मत बोलो. अगर जेरेफ ने ये मान लिया तो उसकी जिंदगी कभी वैसी नहीं रहेगी।
जेरेफ ने उसका हाथ झटक दिया, तू क्यों चाहती है कि मैं अंधेरे में रहूँ? तू आखिर छुपा क्या रही है मुझसे?
सैरिन की आँखों से आँसू टपक पडे. उसने धीरे से कहा, क्योंकि तुम्हारा अतीत सिर्फ तेरा नहीं, मेरा भी है।
जेरेफ हैरान रह गया, क्या मतलब?
सैरिन ने रुँधे गले से कहा, जारिन. वही असली वजह है कि मैं तुझसे झूठ बोलती रही. क्योंकि तेरी और मेरी किस्मत उसी की मुट्ठी में है. जेरेफ, तू अकेला वारिस नहीं. मैं भी उसी खून का हिस्सा हूँ।
पूरा तहखाना सन्नाटे में डूब गया. जेरेफ ने हकबकाकर कहा, तू. तू मेरी. उसकी आवाज काँप गई.
जारिन ने ठहाका लगाया, हाँ जेरेफ! अब सच सुन ले. जिस औरत से तू इश्क करता है, वो तेरा अपना खून है. तेरे और उसके बीच सिर्फ झूठ की दीवार नहीं, खून का रिश्ता भी है।
जेरेफ के पैरों तले जमीन खिसक गई. उसकी साँसें तेज हो गईं. उसने सैरिन का चेहरा पकडा और काँपती आवाज में बोला, ये झूठ है, बोलो सैरिन. ये झूठ है।
सैरिन रो पडी, काश ये झूठ होता.
जेरेफ गुस्से से चिल्लाया, नहीं! ये सच नहीं हो सकता। उसने अपनी तलवार निकाली और जारिन की तरफ बढा. लेकिन कबीर ने फिर से हाथ उठाकर उसे रोक दिया.
कबीर ने भारी आवाज में कहा, अगर तूने अभी खून बहाया तो तेरा राज दुनिया के सामने आ जाएगा और तेरी हर कोशिश मिट्टी हो जाएगी. याद रख, सच को जानना आसान है, लेकिन उसे सहना बहुत मुश्किल।
जारिन ने मुस्कुराते हुए कहा, देखा जेरेफ? यही तो मेरा खेल है. मैं तुझे तेरे ही अतीत से तोड दूँगा. तू चाहे कुछ भी कर ले, अब तेरा दिल तुझे कभी चैन नहीं देगा।
जेरेफ ने तलवार जमीन पर पटक दी. उसकी आँखों से खून की तरह गुस्से के आँसू बह रहे थे. वो सैरिन की तरफ पलटा और बोला, तूने मेरा भरोसा तोड दिया. अब मैं किसी पर भरोसा नहीं करूँगा. न तुझ पर, न कबीर पर, और न ही खुद पर।
कबीर मल्होत्रा ने धीरे से कहा, याद रख जेरेफ, ये तो बस शुरुआत है. असली खेल अभी बाकी है. सोने का पिंजरा बंद नहीं करता, वो और बडी आजादी की तरफ ले जाता है. सवाल ये है. क्या तू इस आजादी को संभाल पाएगा?
तहखाने की दीवारें अचानक फिर से काँप उठीं. झूमर की रौशनी बुझ गई और गहरी अँधेरा फैल गया. एक रहस्यमयी आवाज हर कोने से गूँजी—“ जो सच आज सामने आया है, वो सबसे छोटा सच था. असली राज तो अभी पर्दे के पीछे है।
जेरेफ ने अंधेरे में तलवार कसकर पकडी. सैरिन ने आँसू पोंछे. जारिन ने ठंडी हँसी छोडी और कबीर मल्होत्रा ने आँखें बंद कर लीं.
अब चारों को पता था—खेल खून का है, और सोने का पिंजरा अब सिर्फ पिंजरा नहीं, एक भूलभुलैया है जहाँ से बाहर निकलना आसान नहीं.
कमरे में सन्नाटा छा गया, लेकिन हर दिल में तूफान उठ चुका था.
बरसात की बूंदें जमीन से टकरा रही थीं, शहर की सुनसान गलियाँ कीचड और अंधेरे में डूबी थीं. उसी कोने में वही फटेहाल बूढा बैठा था—मैली दाढी, गंदे कपडे, हाथ में लोहे का कटोरा. राहगीर आज भी उसे देखकर अपनी नजरें फेर लेते, कुछ सिक्के गिरा देते और आगे बढ जाते. लेकिन कोई नहीं जानता था कि ये झुका हुआ आदमी असल में वही कबीर मल्होत्रा है, जिसके पास इतना सोना है कि शहर के सबसे बडे राजा की तिजोरी भी उसके सामने छोटी पड जाए. उसकी झोपडी रात के अंधेरे में बदल जाती थी—नीचे खुलते तहखाने में सुनहरी दीवारें, हीरे- जवाहरात, सोने के बक्से, पेंटिंग्स और दुर्लभ हथियार चमकते थे. वही उसका असली चेहरा था, और वही उसका“ सोने का पिंजरा।
उस रात तहखाने में हवा भारी थी. कबीर आईने में अपना शाही रूप सँवार रहा था. तभी पीछे से जेरेफ रायचंद की आवाज आई, तू अपने चेहरे पर नकाब चढा सकता है, कबीर, लेकिन तेरी आँखों की थकान छुपा नहीं सकता। कबीर पलटा, मुस्कुराया, और बोला, थकान वो महसूस करता है जिसके पास खोने के लिए कुछ हो. मेरे पास है ही क्या? ये सारा सोना, ये दौलत. सब एक पिंजरा है. फर्क सिर्फ इतना है कि मेरा पिंजरा सुनहरी सलाखों से बना है।
जेरेफ की नजरें तेज थीं. मुझे अपनी पहचान चाहिए. और मुझे पता है कि तुझे सच मालूम है. जारिन बार- बार मेरा नाम लेता है, मेरे अतीत का मजाक उडाता है. और अब सैरिन भी. उसकी आवाज काँप गई. कबीर ने उसे रोकते हुए कहा, सच एक नशा है, बेटा. एक बार जान लिया तो फिर कभी नींद नहीं आती।
अचानक तहखाने का दरवाजा जोर से खुला. भीगे कपडों में सैरिन मेहता खडी थी. उसकी आँखों में आँसू थे और होंठ काँप रहे थे. जेरेफ, तुझे मुझ पर शक है, है न? उसने धीमे स्वर में कहा. जेरेफ उसके करीब आया, अगर तू सच में मेरे साथ है तो मुझे बता. जारिन तुझे क्यों बार- बार मेरे खिलाफ इस्तेमाल करता है? सैरिन की पलकों पर नमी थी, लेकिन उसकी चुप्पी और भी गहरी थी.
ठीक उसी पल तहखाने की सुनहरी दीवारें हल्की- हल्की काँपने लगीं. छत से लाल रोशनी टपकी और परछाइयों से जारिन खान बाहर आया. उसकी हँसी गूँजी, तो यहाँ ये छोटा सा पारिवारिक मिलन चल रहा है. कितना प्यारा है. कबीर, तूने सोचा था तेरे तहखाने की ये सुनहरी दीवारें तुझे बचा लेंगी? याद रख, सोने का पिंजरा भी पिंजरा ही होता है. और पिंजरे में कैद परिंदा चाहे कितना भी खूबसूरत हो, उसका अंजाम हमेशा मौत होता है।
कबीर ने उसकी तरफ देखते हुए जाम उठाया, जारिन, तूने सही कहा. पिंजरा पिंजरा ही होता है. लेकिन फर्क ये है कि इस पिंजरे की चाबी सिर्फ मेरे हाथ में है।
जारिन की आँखें लाल चमक उठीं. चाबी? या फिर वो राज. जो जेरेफ से छुपा है? उसे क्यों नहीं बताते कि उसकी रगों में किसका खून बह रहा है?
जेरेफ भडक उठा, काफी हुआ, जारिन! तू बार- बार मेरे अतीत की बात क्यों करता है? बता दे साफ- साफ, मैं कौन हूँ?
जारिन मुस्कुराया, तू सोचता है तू रायचंद है? हाँ, नाम तेरा रायचंद है. लेकिन खून? वो रायचंद का नहीं है. तेरे जिस्म में वही खून है जिसने इस शहर को आग में झोंका था।
सैरिन की आँखें चौडी हो गईं. उसने हडबडी में कहा, जेरेफ, उसकी बातों में मत आना. वो तुझे तोडना चाहता है। लेकिन दीवार पर फिर खून से एक संदेश उभरा—“ सैरिन सच्चाई छुपा रही है।
जेरेफ के कदम लडखडा गए. उसने सैरिन का चेहरा पकड लिया, ये क्या है? तू क्यों नहीं बताती? सैरिन रो पडी, क्योंकि सच जानकर तू मुझसे नफरत करेगा.
जारिन की हँसी फिर गूँजी, देखा? तेरे सबसे करीब वही है जिसने तुझसे सबसे बडा राज छुपाया. यही है धोखा, यही है पिंजरा।
कबीर ने गहरी साँस ली. सच का बोझ हर किसी के बस की बात नहीं. लेकिन याद रखो, इस तहखाने की दीवारें जितनी चमकदार हैं, उतनी ही क्रूर भी. एक बार जिसने इनका राज जान लिया, वो बाहर नहीं जा सकता।
जेरेफ ने तलवार खींच ली. उसकी आँखों में गुस्सा और दर्द दोनों थे. अगर सच मुझे तोड देगा तो टूटना ही सही. लेकिन मैं अंधेरे में और नहीं जी सकता।
सैरिन काँपते हुए बोली, जेरेफ. अगर तूने सच जान लिया तो तेरा दिल तुझसे छिन जाएगा।
जेरेफ ने कडवे स्वर में कहा, दिल तो पहले ही टूट चुका है, सैरिन।
अचानक तहखाने का फर्श फिर से हिला. दीवारें दरकने लगीं और सोने की सलाखें टूटती नजर आईं. कबीर चौंक उठा. ये संभव नहीं. ये पिंजरा कभी नहीं टूटा!
जारिन ने धीमी हँसी के साथ कहा, सोने का पिंजरा कितना भी मजबूत क्यों न हो, जब सच की आँधी आती है तो सलाखें खुद टूट जाती हैं।
चारों एक- दूसरे को घूर रहे थे. हवा में डर, गुस्सा और रहस्य घुल चुका था. और तहखाने की गहराई से वही आवाज गूँजी जो कल भी आई थी—“ खेल अभी शुरू हुआ है।
कमरा अंधेरे में डूब गया. सिर्फ सोने की सलाखों की चमक बाकी रह गई. और उस चमक में हर चेहरा धुंधला और खतरनाक लग रहा था.
अंधेरा गहरा हो चुका था. तहखाने की दीवारें दरक रही थीं और सोने की सलाखें टूटने की कगार पर थीं. कबीर मल्होत्रा की आँखों में पहली बार डर की झलक दिखी. वो आदमी, जो पूरी दुनिया को अपने भिखारीपन के भेस से धोखा देता था, जिसे कभी किसी से डर नहीं लगा, आज उसकी साँसें तेज थीं. उसने धीरे से कहा, ये पिंजरा. ये कभी नहीं टूटा. आखिर ये कैसे संभव है?
जेरेफ तलवार थामे खडा था, उसकी आँखों में बेचैनी और सवालों का तूफान. सैरिन उसके करीब खडी काँप रही थी, होंठों पर सिर्फ एक ही शब्द अटका था—“ मत. मत पूछ सच। जारिन की हँसी फिर गूँजी, गहरी और चुभने वाली, आखिरकार, सोने का पिंजरा भी टूट गया. अब सबको अपना- अपना सच चुकाना होगा।
कमरा अचानक हिलने लगा. दीवार की दरार से ठंडी हवा के साथ कोई और आहट आई. छायाओं में से एक पतली परछाई निकली. एक औरत का चेहरा, आधा अंधेरे में छुपा, आधा रोशनी में. उसकी आवाज रहस्यमयी थी, कबीर. इतने सालों तक तू सोचता रहा कि तू अकेला मालिक है इस पिंजरे का. लेकिन असल मालिक तू नहीं।
कबीर ने नजरें तरेरीं. तू. तू यहाँ कैसे आई?
औरत आगे बढी. उसकी आँखें नीलम की तरह चमक रही थीं. मैंने ही तो इस पिंजरे की पहली ईंट रखवाई थी. और अब जब सलाखें टूट रही हैं, तो राज भी टूटेंगे।
जेरेफ ने हैरानी से कहा, ये कौन है?
जारिन मुस्कुराया, लगता है खेल और भी मजेदार होने वाला है।
औरत ने सीधा जेरेफ की ओर देखा. उसकी आवाज ठंडी थी, तुझे अपनी पहचान चाहिए? तो याद रख, तेरी पहचान इस पिंजरे की दीवारों में कैद है. हर सुनहरी ईंट तेरी कहानी का हिस्सा है।
जेरेफ के होंठ सूख गए. उसने तलवार कसकर पकडी, तो बताओ. मैं कौन हूँ?
औरत ने बस एक हल्की मुस्कान दी, तू वो है. जिसकी वजह से ये पिंजरा खडा हुआ. और जिसकी वजह से ये अब टूट रहा है।
सैरिन चीख पडी, बस करो! उसे और मत उलझाओ।
कबीर गरजा, चुप रहो सब! ये तहखाना सिर्फ मेरा है, और ये राज भी सिर्फ मेरा। लेकिन उसकी आवाज में पहले जैसी मजबूती नहीं थी.
जारिन ने ठंडी हँसी हँसी, देखा? ये कबीर मल्होत्रा, जिसे तुम सब शहर का सबसे बडा भिखारी समझते थे, और असल में सबसे बडा अमीर—आज अपने ही पिंजरे के टूटने से काँप रहा है।
कमरा अचानक फिर काँप उठा. छत से सोने का एक टुकडा गिरा और जेरेफ के पैरों के पास आकर ठहरा. उसने उसे उठाया. उस पर उभरा था एक नाम—“ जेरेफ मल्होत्रा।
कमरे में सन्नाटा छा गया. जेरेफ की साँसें थम गईं. उसकी आँखें कबीर की तरफ उठीं. ये. ये क्या है?
कबीर का चेहरा सफेद पड गया. उसकी आँखों में वो राज था जो सालों से दबा था. लेकिन होंठों पर खामोशी.
जारिन ने जोर से ठहाका लगाया, तो आखिरकार सच सामने आने लगा है. पर पूरा सच अभी बाकी है।
सैरिन जेरेफ का हाथ पकडकर बोली, उसकी बातों में मत आना. सब कुछ धोखा है।
जेरेफ ने गुस्से में हाथ झटक दिया. नहीं, सैरिन! अब मुझे सच जानना ही होगा. अगर मैं मल्होत्रा हूँ तो ये राज क्यों छुपाया गया? मेरा खून किसका है?
अचानक वो औरत फिर बोली, तेरा खून. दो परछाइयों का संगम है. एक परछाई सोने की है और दूसरी खून की. तू दोनों का वारिस है।
जेरेफ ने चीखते हुए कहा, सीधे- सीधे बताओ!
औरत ने धीरे से कहा, अगर सच जानने की हिम्मत है तो कल रात उस झील के किनारे आना जहाँ पानी लाल बहता है. वहाँ तुझे अपना अतीत मिलेगा।
इतना कहकर वो परछाई दीवारों में घुल गई.
सन्नाटा फिर गहरा हो गया.
जेरेफ का दिल जोरों से धडक रहा था. उसने कबीर की तरफ देखा, ये सब सच है? मैं तेरे खून से जुडा हूँ?
कबीर ने आँखें झुका लीं. उसकी आवाज धीमी थी, सच बहुत भारी बोझ है, बेटा. अगर जान लिया तो तेरा पूरा जीवन बदल जाएगा।
जेरेफ ने तलवार वापस म्यान में डाली. उसकी नजरें अब और भी सख्त थीं. तो ठीक है. मैं उस झील पर जाऊँगा. और सच सामने लाकर ही दम लूँगा।
जारिन मुस्कुराया, शाबाश. लेकिन याद रख, वहाँ जो मिलेगा वो तुझे तोड देगा. और जब तू टूटेगा. तभी खेल पूरा होगा।
सैरिन रो पडी. जेरेफ, मत जाओ. सच तुझे मुझसे छीन लेगा।
जेरेफ ने बस एक नजर डाली और कहा, अगर तेरा प्यार सच है, सैरिन, तो वो सच के बाद भी मेरे साथ रहेगा. वरना वो भी झूठ निकलेगा।
इतना कहकर वो सीढियों की तरफ बढ गया.
पीछे तहखाने में बस तीन परछाइयाँ रह गईं—कबीर, जिसकी आँखों में पहली बार कमजोरी दिखी; सैरिन, जिसकी चुप्पी अब रहस्य बन गई; और जारिन, जिसकी हँसी और भी खतरनाक गूँज रही थी.
दीवारों से वही रहस्यमयी आवाज आई—“ सोने का पिंजरा अब सच को कैद नहीं कर पाएगा. सलाखें टूट चुकी हैं. अब खेल खून माँगेगा।
अंधेरा गहराया. और सवाल हवा में तैरने लगे—
क्या सचमुच जेरेफ मल्होत्रा का खून है?
क्या सैरिन का प्यार असली है या एक और धोखा?
और झील के किनारे कौन- सा ऐसा राज छुपा है, जो सबकी तकदीर बदल देगा?
कहानी का हर कदम अब एक पहेली बन चुका था.
झील की तरफ बढते हुए आसमान में बादल और घने हो गए थे. पेडों की डालियाँ इस तरह हिल रही थीं जैसे हवाएँ कोई रहस्य फुसफुसा रही हों. जेरेफ मल्होत्रा का दिल तेजी से धडक रहा था. उसकी आँखों में बेचैनी थी, पर उस बेचैनी के पीछे एक अडिग हिम्मत भी. उसके हर कदम की आहट सुनसान रास्तों में गूँज रही थी. सैरिन उसके पीछे- पीछे चल रही थी, मगर उसके होंठों पर खामोशी और आँखों में आँसू थे.
जेरेफ ने अचानक कदम रोके और बिना पीछे मुडे कहा, सैरिन, क्यों आई हो मेरे पीछे? ये सफर खतरनाक है।
सैरिन की आवाज काँप रही थी, खतरा तुझ पर आए और मैं तुझे अकेला छोड दूँ? ये मुमकिन नहीं, जेरेफ. चाहे जो भी सच निकले. मैं तेरे साथ हूँ।
जेरेफ ने धीमी आवाज में कहा, काश तेरे इन शब्दों पर भरोसा कर पाता.
दोनों झील के किनारे पहुँचे. वहाँ का नजारा रूह काँपाने वाला था. पानी सचमुच लाल था—जैसे उसमें खून बह रहा हो. हवा ठंडी थी लेकिन उसकी सिहरन हड्डियों तक पहुँच रही थी. पानी के बीच में एक टूटी हुई नाव तैर रही थी, और किनारे पर खोपडियों जैसे पत्थर बिखरे पडे थे.
जेरेफ ने तलवार निकाली. यही वो जगह है. अब देखना है कि कौन सा सच यहाँ मेरा इंतजार कर रहा है।
अचानक झील के पानी में लहर उठी और किनारे पर एक पुरानी, जंग लगी संदूक बहकर आ गई. संदूक पर ताले नहीं थे, मगर उस पर खून से लिखा था—“ मल्होत्रा वंश का वारिस।
सैरिन ने डरते हुए कहा, जेरेफ. इसे मत खोलो. हो सकता है ये जारिन का जाल हो।
जेरेफ ने सख्ती से कहा, अगर ये जाल भी है, तो इस जाल से सच ही निकलेगा।
उसने संदूक खोला. अंदर एक पुरानी तलवार रखी थी. उस तलवार पर हीरे जडे थे और उसकी धार पर उकेरे थे शब्द—“ जेरेफ मल्होत्रा, सिंहासन तेरा है।
जेरेफ की आँखें फटी रह गईं. उसकी साँस रुक सी गई. तो ये सच है. मैं मल्होत्रा वंश का वारिस हूँ.
लेकिन तभी झील के दूसरी ओर से तालियों की आवाज गूँजी. अंधेरे से बाहर आया जारिन खान. उसकी लाल आँखें चमक रही थीं.
वाह, क्या नजारा है! असली वारिस को उसकी पहचान मिल ही गई. लेकिन, जेरेफ, क्या तू जानता है कि इस तलवार का मतलब क्या है?
जेरेफ ने तलवार कसकर पकडी. ये तलवार मेरे वंश की है. इसका मतलब है कि मैं तेरी हुकूमत का अंत करूँगा।
जारिन ठहाका मारकर हँसा. इतनी जल्दी नतीजा मत निकाल. ये तलवार जितनी तेरी है, उतनी ही मेरी भी. तू मल्होत्रा वंश का वारिस है, लेकिन तू अकेला नहीं।
जेरेफ भौंचक्का रह गया. अकेला नहीं? इसका क्या मतलब?
जारिन ने अपनी उँगली पानी में डुबोई और लाल पानी हवा में उडने लगा. उस धुंध से एक और चेहरा उभरा—कबीर मल्होत्रा का. लेकिन इस बार वो भिखारी नहीं दिख रहा था. सुनहरी शेरवानी, हाथ में जाम और आँखों में रहस्यमयी चमक.
जेरेफ, उसकी आवाज भारी थी, तुझे सच जानना ही होगा. तू मेरा खून है. तू मेरा बेटा है।
जेरेफ की आँखों से आँसू छलक पडे. उसका शरीर काँपने लगा. नहीं. ये झूठ है. ये सब खेल है।
कबीर ने ठंडी आवाज में कहा, खेल सच में बदल सकता है, लेकिन सच खेल नहीं बदलता. तू ही मेरा असली वारिस है. लेकिन.
जारिन ने उसकी बात काटी, लेकिन तू अकेला वारिस नहीं! मैं भी उसी खून से हूँ. मैं भी मल्होत्रा का बेटा हूँ।
सैरिन चीख पडी, ये झूठ है! ये नहीं हो सकता!
जारिन ने हँसते हुए कहा, झूठ? या सच जिसे सुनना तुम सब नहीं चाहते? जेरेफ, जिस खून की तलवार तू पकडे है, उसमें मेरा भी हक है. हम दोनों एक ही खून से पैदा हुए, लेकिन रास्ते अलग हुए. और अब ये तलवार तै और मेरे बीच फैसला करेगी।
जेरेफ के पैरों तले जमीन खिसक गई. तो इसका मतलब. मैं और तू.
जारिन ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा, हाँ. हम भाई हैं. लेकिन इस ताज का मालिक सिर्फ एक होगा।
झील की लहरें और ऊँची हो गईं. हवा गरजने लगी. तलवार चमक उठी. जेरेफ के दिल में सवालों का तूफान था. क्या सचमुच जारिन उसका भाई है? क्या कबीर ने ये सच जानबूझकर छुपाया? और सैरिन—वो Kiss ओर है?
सैरिन जेरेफ का हाथ पकडकर रो पडी. मैं तुझे खो नहीं सकती, जेरेफ. ये खेल खून माँगेगा. लेकिन याद रखना, कभी- कभी प्यार भी साजिश से बडा झूठ हो सकता है।
जेरेफ ने उसकी आँखों में देखा. तो बताओ, सैरिन. तुम सच में कौन हो?
उसके होंठ काँपे, लेकिन शब्द बाहर न आए. तभी आसमान से बिजली गिरी और झील का पानी उबलने लगा. तलवार अपने आप काँप उठी.
कबीर की आवाज गूँजी, सोने का पिंजरा टूट चुका है. अब सिंहासन का फैसला खून से होगा।
सन्नाटा. और फिर एक सवाल हवा में तैर गया—
क्या जेरेफ अपने खून के सच को स्वीकार करेगा?
क्या जारिन सचमुच उसका भाई है या सिर्फ धोखे का नया चेहरा?
और सैरिन—क्या उसका प्यार वफादारी है या गहरी गद्दारी?
झील की लाल लहरें इन सवालों को निगल गईं.
झील के किनारे फैला सन्नाटा अब जेरेफ को बेचैन करने लगा था. पानी की लहरें मानो किसी भूली- बिसरी दास्तान को अपने भीतर छिपाए बैठी हों. सैरिन की साँसें तेज हो रही थीं. उसने धीमी आवाज में कहा,
जेरेफ. ये जगह मुझे डराती है. यहाँ हवा में कुछ है, जैसे कोई हमें देख रहा हो।
जेरेफ ने चारों ओर नजर दौडाई. डरने की वजह है भी. सच कभी आसान नहीं होता।
अचानक पीछे से एक जानी- पहचानी आवाज आई—करख्त और थकी हुई.
सच तुम्हारे सामने खडा है. बस पहचानने की देर है।
दोनों ने पीछे मुडकर देखा—वही भिखारी! फटेहाल कपडे, धूल से सना चेहरा, हाथ में एक पुराना कटोरा. लेकिन इस बार उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी.
सैरिन ने धीरे से कहा, ये फिर.
भिखारी मुस्कराया, हाँ, मैं फिर. लेकिन इस बार तुम्हें मेरा असली चेहरा देखना ही होगा।
उसने अपनी गर्दन से लटकता पुराना ताबीज उतारा और जमीन पर रखा. ताबीज जैसे ही मिट्टी को छुआ, जमीन काँप उठी. झील की सतह से धुंध उठी और बीचों- बीच एक सुनहरी संरचना उभर आई.
जेरेफ की आँखें फटी रह गईं. ये. ये तो सोने का पिंजरा है!
वाकई, झील के बीचों- बीच खडा था एक चमचमाता पिंजरा. उसकी सलाखें सोने की थीं, लेकिन उन पर रहस्यमयी निशान उकेरे थे. वो पिंजरा झील के भीतर से बाहर निकलता जा रहा था—मानो सदियों से किसी ने उसे छुपाकर रखा हो.
भिखारी ने धीमी हँसी हँसी. तुम दोनों सोच रहे होगे मैं कौन हूँ. मेरे कपडे फटे हैं, मेरा चेहरा मैले है, लेकिन मेरी नसों में बहता खून. वो तुम्हें चौंका देगा।
जेरेफ ने सख्ती से पूछा, तुम कौन हो?
भिखारी ने गहरी साँस ली, मैं कबीर मल्होत्रा का छोडा हुआ सच हूँ. मल्होत्रा वंश का खोया वारिस. मैं वो हूँ जिसे महलों से दूर, सडकों पर भिखारी बनकर जीने को मजबूर किया गया. ताकि कोई मेरे असली हक तक न पहुँच सके।
सैरिन की आँखें चौडी हो गईं. क्या. तुम भी मल्होत्रा खून से हो?
भिखारी ने सिर हिलाया. हाँ. मेरा नाम आर्यन है. मुझे बचपन में इस पिंजरे में कैद किया गया था. सोने का पिंजरा—जो बाहर से दौलत का प्रतीक है, लेकिन असल में मौत और साजिश का घर. मेरे अपनों ने मुझे इस पिंजरे में छुपाया. ताकि मैं कभी सच का हकदार न बन सकूँ।
जेरेफ की साँसें भारी हो गईं. लेकिन तू अब आजाद कैसे?
आर्यन की आँखों में आँसू चमकने लगे. मैं आजाद नहीं हूँ, जेरेफ. यह पिंजरा आज भी मुझे पुकारता है. हर रात, जब सब सोते हैं, ये मेरे सपनों में उभरता है. और जब भी मैं झील के पास आता हूँ, मुझे लगता है जैसे ये मुझे खींच रहा है. मेरे अस्तित्व का सच इसी पिंजरे में कैद है।
जेरेफ ने पिंजरे की तरफ कदम बढाए. सलाखें चमक उठीं और एक अजीब सी गूँज हवा में फैल गई—जैसे कोई अनसुनी चीख.
सैरिन ने उसका हाथ थाम लिया. मत जाओ. ये पिंजरा तेरे लिए नहीं है।
आर्यन ने कडवी हँसी हँसी. नहीं, सैरिन. ये पिंजरा सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि जेरेफ के लिए भी है. क्योंकि हमारे खून का रिश्ता इस सोने की कैद से जुडा है. तुम नहीं जानतीं, लेकिन. जेरेफ की नसों में भी वही खून बहता है जो मेरी रगों में है।
जेरेफ भौंचक्का रह गया. मतलब. मैं और तू.
आर्यन ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, हाँ. हम भाई हैं. और इस पिंजरे में छुपा है वो राज. जो हमारी जिंदगी की दिशा बदल देगा।
झील में हलचल और तेज हो गई. पिंजरे की सलाखों से लाल रोशनी फूटने लगी. अचानक, उस रोशनी के बीच से किसी और की परछाई नजर आई.
जेरेफ ने घबराकर कहा, ये कौन है?
आर्यन की आवाज भारी हो गई, वो. जिसने हमें दोनों को धोखा दिया. जिसने हमें अपनी- अपनी जगह कैद किया. जिसने हमें दुश्मन बनाने का खेल खेला।
सैरिन काँप उठी. कौन? कौन है वो?
आर्यन ने पिंजरे की ओर इशारा किया. देखो ध्यान से. वही है. कबीर मल्होत्रा।
पिंजरे की परछाई में सचमुच कबीर का चेहरा उभरा. उसकी आँखों में नशा और चालाकी थी. होंठों पर वही रहस्यमयी मुस्कान.
तुम दोनों सोचते हो मैं मर चुका हूँ? उसकी आवाज गूँजी. नहीं. मैं जिंदा हूँ. और मैं ही हूँ जिसने ये सोने का पिंजरा बनाया. तुम दोनों मेरे वारिस हो, लेकिन सिर्फ एक ही मेरे खेल को समझ पाएगा. बाकी. इस पिंजरे की कैद में सडेंगे।
सैरिन चीख पडी, नहीं. ये मुमकिन नहीं!
कबीर की परछाई ने कहा, खेल अभी शुरू हुआ है।
पिंजरा धीरे- धीरे झील में डूबने लगा. आर्यन उसके पीछे भागा, लेकिन रोशनी ने उसे पीछे धकेल दिया.
जेरेफ चिल्लाया, सच बताओ—तुम दोनों में असली वारिस कौन है?
पिंजरे से आती गूँज ने सिर्फ इतना कहा—
असली वारिस वही होगा. जो इस पिंजरे से जिंदा बाहर निकलेगा।
झील फिर से शांत हो गई. पिंजरा गायब हो गया. आर्यन जमीन पर गिर पडा, उसकी आँखों में आँसू थे.
जेरेफ और सैरिन एक- दूसरे को देखते रह गए—दिल में सैकडों सवाल.
क्या आर्यन सचमुच उसका भाई है?
क्या कबीर जिंदा है, या ये उसकी कोई और चाल?
और वो सोने का पिंजरा. उसमें आखिर कौन सा राज दफ्न है, जो दोनों की जिंदगी को एक ही धागे में बाँध रहा है?
बस यही सवाल तैर रहा था—
क्या जेरेफ और आर्यन एक- दूसरे के साथ खडे होंगे या इस पिंजरे की साजिश उन्हें दुश्मन बना देगी?
कौन है असली अमीरजादा?
सैरिन सचमुच किसके साथ है?
और वहीं, सोने का पिंजरा. अगली चाल चलने के लिए इंतजार कर रहा था.
जारी है