आख़िरी वादा
रात का सन्नाटा गहरा चुका था। गाँव के उस छोटे से घर में एक बुढ़ी माँ चारपाई पर लेटी हुई थीं। उम्र का बोझ और बीमारियों ने उनके शरीर को निढाल कर दिया था। साँसें भारी-भारी चल रही थीं, लेकिन आँखों में अब भी वही उम्मीद झलक रही थी – अपने बेटे की एक झलक देखने की।
बेटा, जिसे उन्होंने अपनी हथेलियों की लकीरों से बड़ा किया था, अब शहर में बस गया था। सपनों के पीछे भागते-भागते उसने माँ के आँचल की गर्माहट से दूरी बना ली थी। कभी वह हर शाम माँ की गोदी में सिर रखकर अपनी बातें सुनाता था, पर अब महीनों बीत जाते थे और फोन तक नहीं करता।
माँ जानती थीं कि बेटा व्यस्त है, लेकिन माँ का दिल तो माँ ही होता है। उसे तो बस यह जानना था कि उसका बेटा ठीक है, खुश है। उसी आस में वह रोज़ दरवाज़े की ओर देखतीं, जैसे अगली ही घड़ी बेटा घर लौट आएगा।
उस रात भी उन्होंने बहू से कहा—
“बिटिया, क्या तूने उसे फोन किया? कह देना, माँ बहुत याद कर रही है।”
बहू ने झूठी मुस्कान के साथ सिर हिलाया, लेकिन अंदर ही अंदर सोच रही थी कि शहर का आदमी अब गाँव लौटना नहीं चाहता। माँ की आँखों में आँसू थे, लेकिन होंठों पर मुस्कान – जैसे अपने दर्द को छुपाना चाह रही हों।
अगली सुबह गाँव में खबर फैल गई कि माँ की हालत बहुत गंभीर है। यह सुनते ही बेटा दौड़ा-दौड़ा गाँव पहुँचा। जब वह घर में दाख़िल हुआ, तो माँ की आँखें नम होकर चमक उठीं।
“आ गया तू, बेटा?” माँ ने धीमी आवाज़ में कहा।
बेटा उनके पास बैठ गया, हाथ पकड़ते हुए बोला, “माँ, माफ़ कर दो। मैं बहुत व्यस्त हो गया था। लेकिन अब सब छोड़कर तेरे पास ही रहूँगा।”
माँ ने कांपते हाथों से बेटे का चेहरा छुआ, जैसे बरसों की प्यास बुझा रही हों।
“बेटा, मैं तुझसे बस एक वादा चाहती हूँ।”
“क्या माँ?”
“अब चाहे कुछ भी हो, तू कभी अकेला मत रहना। अपना परिवार, अपने बच्चे… सबको साथ लेकर चलना। और जब तू मुझे याद करे तो मुस्कुरा देना। मुझे तेरी मुस्कान ही सबसे बड़ी दुआ लगेगी।”
बेटा फूट-फूटकर रोने लगा। उसने माँ का हाथ अपने सीने से लगा लिया।
लेकिन किस्मत ने ज़्यादा वक्त नहीं दिया। कुछ ही पलों बाद माँ ने आख़िरी सांस ली। बेटे की बाँहों में ही उनका सफ़र पूरा हो गया।
घर में मातम छा गया। बेटा स्तब्ध था—उसने सोचा था अब माँ के साथ वक्त बिताएगा, लेकिन माँ तो चली गईं।
रात को जब सब सो गए, बेटा अकेला बैठा था। माँ का चेहरा उसकी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था। माँ की बातें, माँ की हँसी, माँ की वह लोरी, सब याद आ रहा था। उसे एहसास हुआ कि उसने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की—माँ के जीते-जी उनके साथ वक्त न बिताना।
उसने खुद से वादा किया कि अब अपने बच्चों को कभी वह दूरी महसूस नहीं होने देगा। वह माँ की आख़िरी सीख को जीवन का हिस्सा बना लेगा।
वक़्त बीत गया, लेकिन हर बार जब वह अपने बच्चों को गले लगाता, तो उसकी आँखों में आँसू आ जाते। मन ही मन वह माँ से कहता—
“माँ, तूने कहा था जब तुझे याद करूँ तो मुस्कुरा दूँ। देख, मैं मुस्कुरा रहा हूँ। लेकिन तेरे
बिना यह मुस्कान कभी पूरी नहीं होगी।”