भाग 18 
            रचना: बाबुल हक़ अंसारी
            “पटरियों पर लिखा फ़ैसला
   पिछले भाग से
    अगला मोड़…
कबीर और अयान की जंग पटरी पर आती ट्रेन के सामने पहुँच चुकी थी।
हर साँस मौत और मोहब्बत के बीच अटकी थी।
रिया के हाथ काँप रहे थे, लेकिन उसकी आँखों में अब डर नहीं—इश्क़ का साहस था।
क्या रिया अपने इश्क़ को बचाने का कोई कदम उठा पाएगी?
या ट्रेन की गर्जना इस जंग का हमेशा के लिए अंत लि
ख देगी?
*******  अब आगे-******
  ज़िंदगी और मौत की सरहद…
रात की हवा अब काँपने लगी थी।
पटरी पर आती ट्रेन की चीख़ और तेज़ होती जा रही थी—
जैसे वक़्त खुद इस जंग का गवाह बनने को बेताब हो।
अयान और कबीर दोनों ज़मीन पर गिरे थे,
उनके हाथ एक-दूसरे की गर्दन पर कस चुके थे।
एक तरफ़ मोहब्बत की आग थी, दूसरी तरफ़ नफ़रत का धुआँ।
रिया चीख़ते हुए दौड़ी—
“बस करो तुम दोनों! मोहब्बत को जंग मत बनाओ!”
लेकिन अब दोनों के कानों में बस धड़कनों का शोर था।
कबीर गरजता हुआ बोला—
“रिया… तू मेरी थी, है और रहेगी! अयान को आज मैं मिटा दूँगा!”
अयान ने खून से सनी हथेली से उसका हाथ पकड़ा—
“नफ़रत हमेशा मिटती है, कबीर… और मोहब्बत अमर होती है!”
     ट्रेन की गर्जना…
रेल इंजन की लाइट अब ठीक उन पर पड़ रही थी।
कुछ ही सेकंडों में मौत और ज़िंदगी का फ़ैसला होने वाला था।
    आर्यन प्लेटफ़ॉर्म से चिल्लाया—
“रिया! कुछ करो! वरना दोनों खत्म हो जाएँगे!”
रिया की आँखों में आँसू नहीं थे अब—
बस एक फैसला था।
उसने ब्रीफ़केस में पड़े नक्शे को देखा… और फिर वही नकाब उठाया
जो कबीर ने पहना था।
वो धीरे-धीरे पटरी की ओर बढ़ी—
“कबीर!! अगर तुझे सच में मुझे पाना है… तो पहले मुझे बचा ले!”
   कबीर चौंका—
“रिया! क्या पागल हो गई है तू?”
रिया पटरी पर कदम रख चुकी थी।
ट्रेन अब बस कुछ गज़ दूर थी।
अयान का चेहरा सफ़ेद पड़ गया—
     “रिया! पीछे हटो!”
       फ़ैसला…
    रिया चीखी—
“मोहब्बत किसी की जायदाद नहीं होती, कबीर!
अगर तेरी नफ़रत सच है… तो आ, बचा ले मुझे!”
कबीर के कदम डगमगा गए।
उसकी आँखों में पागलपन की जगह अब डर था।
उसने एक पल अयान की ओर देखा,
दूसरे ही पल ट्रेन की लाइट उसकी आँखों में भर गई।
अयान ने पूरी ताक़त लगाकर रिया को धक्का दिया—
“रिया!!!”
    ट्रेन की चीख़ ने हवा फाड़ दी।
एक झटके में कबीर की परछाई रौशनी में समा गई…
सिर्फ़ उसकी आवाज़ गूँजती रह गई—
“रिया… तू मेरी आख़िरी कहानी है…”
     खामोशी के बाद…
धूल, शोर और टूटे कांच के बीच
अयान ज़मीन पर गिरा पड़ा था,
रिया उसके पास घुटनों के बल बैठी थी।
उसके चेहरे पर खून के छींटे थे,
लेकिन आँखों में सुकून की झलक थी।
आर्यन ने दौड़कर दोनों को संभाला—
“सब ख़त्म हो गया… अब कोई परछाई नहीं।”
रिया ने अयान के सीने पर सिर रख दिया—
“इश्क़ जीत गया, अयान… इस बार वक़्त भी हार गया।”
अयान ने हल्की मुस्कान दी—
“मोहब्बत जब सच्ची हो… तो किस्मत भी झुक जाती है।”
आसमान में बादल हट चुके थे।
दूर कहीं वही पुराना गीत बज उठा—
“तन्हा सफ़र में भी इश्क़ की छांव रह जाती है…”
     अगले भाग में:
कबीर की मौत के बाद क्या सच में सब कुछ ख़त्म हो गया?
  या ब्रीफ़केस में
 छिपा कोई और राज़ फिर से इस मोहब्बत को परखेगा?
 भाग 19 “ब्रीफ़केस का आख़िरी पन्ना”
  रचना: बाबुल हक़ अंसारी