🌕 छुपा हुआ इश्क़ — एपिसोड 7शीर्षक: आत्मस्मृति
(जब आत्मा फिर से अपनी परछाई को पहचानती है)नया जन्म — अनकही पहचानशांत नगर, वाराणसी।
गंगा तट की सीढ़ियों पर बैठी एक युवती जल में फूल बहा रही थी।
उसकी आँखें कुछ खोज रही थीं, जैसे किसी अदृश्य धुन को सुन रही हो।नाम — सुरभि।
वह बनारस विश्वविद्यालय में इतिहास की छात्रा थी, प्राचीन मंदिरों और पुनर्जन्म पर शोध कर रही थी।
उसकी बाईं हथेली पर छोटा-सा चिन्ह — अधखिला कमल।पास में कैमरा उठाए खड़ा एक युवक तस्वीरें ले रहा था।
नाम — अयान।
उसे मंदिरों के चित्र खींचने का शौक था।जब उसकी नज़र सुरभि पर पड़ी, वह कुछ पल रुका —
“क्या मैं तुम्हें कहीं देख चुका हूँ?” उसने अचानक पूछा।
सुरभि मुस्कराई, “शायद किसी पुराने जन्म में।”और हवा में मंदिर की घंटियों जैसी हल्की ध्वनि गूँज उठी।अनकहा खिंचाव — रहस्यमय चिन्हसुरभि का शोध “रत्नावली मंदिर की कथा” पर था।
जब उसने उस मंदिर के चित्र अपने लैपटॉप पर खोले,
तब स्क्रीन पर संदेश उभरा —
“फाइल करप्टेड — रीकवरिंग मेमोरी…”स्क्रीन पर अचानक नीली रोशनी छिटक गई और कुछ क्षण के लिए वही दृश्य झलका —
रत्नावली, आर्यवीर, जवेन, आत्मा-विकर।सुरभि की साँस रुक गई।
“मैंने ये दृश्य पहले… कहाँ देखे?”उधर अयान ने भी अपने कैमरे में एक पुराना फोटो चेक किया —
और उसी में वही चिन्ह चमक रहा था।
दोनों ने अनजाने में एक साथ उस चिन्ह को छुआ —
और कमरे में हवा के साथ एक फुसफुसाहट उभरी —
“आत्मस्मृति जाग गई है।”जवेन की छाया का लौटनाशहर में उसी समय एक अपराध रहस्य की सुर्खी फैल रही थी —
“पुराने मंदिर खंडहर से अज्ञात शक्ति की खोज करने वाला व्यक्ति लापता।”
नाम — डॉ. विक्रम जैन।पुलिस ने खंडहर से उसका कैमरा और एक चमकीला नीला पत्थर बरामद किया।
वह पत्थर अब धीरे-धीरे धुंध में घुलने लगा था,
और उसकी सतह पर उभर रहे थे चलते प्रतीक — आत्मा-विकर का हिस्सा फिर जीवित हो रहा था।रात होते ही वह पत्थर दरार देकर दो भागों में फट गया।
और किसी छाया जैसी आकृति ने फुसफुसाया —
“मैं समाप्त नहीं हुआ… केवल रूप बदल गया हूँ।”स्मृति के टुकड़े — आत्मा की पुकारसुरभि के सपनों में अब हर रात वही घटनाएँ लौटने लगीं।
वह देखती — एक स्त्री तलवार लिए मंदिर की आग के सामने खड़ी है।
उसके पीछे वही नीली आँखों वाला व्यक्ति — आर्यवीर।वह सपने में जोर से चीखती —
“मैं माया नहीं हूँ!”
पर जवाब में आवाज़ आती —
“हर रूह अपने नाम से नहीं, अपने वादे से पहचानी जाती है।”सुरभि नींद से जागकर काँप उठती।
वह अपने आईने में देखती — उसकी आँखों में वही हल्का नीलापन झलक रहा था।पुनर्मिलन का संकेत — आरंभ का पुनर्लेखअयान और सुरभि एक साथ उस मंदिर के पुराने खंडहर तक पहुँचते हैं।
दीवारों पर वही प्रतीक उभरे हैं।
जैसे ही उन्होंने प्रवेश किया, हवा महक उठी धूप की तरह।अचानक जमीन से हल्की चमक निकली —
नीले पत्थर का टुकड़ा वहीं पड़ा था।
सुरभि ने उसे उठाया तो उसके माथे पर गर्मी की लहर दौड़ गई —
वही चिन्ह फिर उभरा।अयान ने उसका हाथ थामा —
“डरना मत, ये सब हमने पहले भी जिया है…”
सुरभि बोली, “तो क्या हम वही हैं?”
अयान मुस्कराया, “हर जन्म बदल सकता है, पर वादा नहीं।”दोनों के पीछे मंदिर की घंटियाँ अपने आप बज उठीं,
और हवा में वही eternal voice गूँजी —“कथा अधूरी नहीं... बस फिर से लिखी जा रही है।”क्लिफ़हैंगर — अनंत आरंभमंदिर की दीवारों में छिपा प्रतीक अब हिलने लगा।
उसकी सतह पर दरार आई,
और नीली रोशनी ने एक नया द्वार बनाया।अंदर से वही शब्द उभरे —
“कालजयी द्वार फिर खुल रहा है।”सुरभि और अयान ने एक-दूसरे की ओर देखा,
चेहरों पर भय नहीं, बस शांति थी।उन्होंने कदम बढ़ाया —
और उसी क्षण पूरा दृश्य सफेद प्रकाश में डूब गया।आवाज़ आई —
“प्रेम का चक्र अनंत है…
हर जन्म में, अपनी कहानी खुद लिखता है।”(एपिसोड समाप्त — अगले भाग में: “आत्मा का पुनर्लेख”)