🌘 Part 3 / Episode 3 — “अंधेरी गुफा: अंतिम संकेत”
“अंधेरी गुफा: अंतिम संकेत”
रात गहराती जा रही थी।
गाँव के बाहर हवा में कुछ अजीब सा बदलाव महसूस हो रहा था।
पेड़ों की पत्तियाँ खुद-ब-खुद हिल रही थीं — जैसे कोई साँस ले रहा हो।
गाँव के चौपाल पर कुछ लोग इकट्ठे थे — हरनारायण दादा, पंडित जी, और कुछ नौजवान।
सब अरविंद के गायब होने पर चर्चा कर रहे थे।
“ये अब तीसरा हादसा है… बीस साल में फिर वही गुफा!” पंडित जी बोले।
हरनारायण ने धीमी आवाज़ में कहा —
“इस बार बात कुछ और है… इस बार गुफा खुद किसी को बुला रही है।”
पहला दृश्य — शहर से आए लोग
अगले दिन, गाँव में एक जीप आई।
उसमें तीन लोग उतरे —
डॉ. सिया वर्मा, एक पुरातत्व विशेषज्ञ,
रवि, उनका असिस्टेंट,
और निखिल, एक स्थानीय गाइड।
सिया बोली — “हमें यहाँ पुरानी गुफा के बारे में रिपोर्ट मिली है। कुछ अजीब चुंबकीय तरंगें रिकॉर्ड हुई हैं।”
हरनारायण ने माथा पकड़ लिया —
“बिटिया, वो जगह कोई रिसर्च का केंद्र नहीं, वो मौत का दरवाज़ा है।”
पर सिया मुस्कुराई — “कभी-कभी डर ही सच्चाई तक ले जाता है।”
उन्होंने गाँव के बाहर टेंट लगाया।
रात होते ही सबने रिकॉर्डिंग उपकरण चालू किए।
निखिल ने डरते हुए कहा — “मैडम, अगर अंदर से आवाज़ आई तो?”
सिया ने कहा — “तब हमें जवाब मिलेगा कि बीस साल पहले वहाँ क्या हुआ था।”
दूसरा दृश्य — अनसुनी आवाज़ें
मध्यरात्रि के करीब रिकॉर्डर अपने आप चालू हो गए।
एक अजीब सी तरंग उठी — जैसे किसी ने अंदर से गहरी साँस ली हो।
फिर आवाज़ आई…
"मत आओ..."
सिया ने निखिल की तरफ देखा — “किसी ने मज़ाक किया है क्या?”
निखिल काँप गया — “मैडम, ये वही आवाज़ है जो अरविंद की रिकॉर्डिंग में थी।”
सिया ने टॉर्च उठाई और बोली — “कल सुबह हम अंदर चलेंगे।”
तीसरा दृश्य — गुफा के भीतर
सुबह सूरज की पहली किरण जैसे ही पेड़ों पर पड़ी, वो तीनों गुफा की तरफ बढ़े।
रास्ते में सूखे फूल और राख जैसी कोई चीज़ बिखरी थी।
गुफा का दरवाज़ा अब पहले से चौड़ा लग रहा था — जैसे किसी ने उसे खोला हो।
सिया बोली — “यह तो प्राकृतिक नहीं लगती। किसी शक्ति ने इसे बदला है।”
अंदर कदम रखते ही दीवारों से अजीब सी गंध आई — लोहे, मिट्टी और खून की मिली-जुली।
दीवारों पर उभरे निशान अब चमकने लगे।
सिया ने कैमरा ऑन किया।
अचानक पीछे से रवि चिल्लाया — “मैडम! दीवार चल रही है!”
दीवार सच में धीरे-धीरे सरक रही थी।
सिया बोली — “मत भागो! कैमरा ऑन रखो!”
दीवार के अंदर से एक पत्थर बाहर गिरा —
और उस पर उभरा हुआ था एक नाम —
“राजू सिंह”
चौथा दृश्य — समय का चक्र
सिया ने वो पत्थर उठाया।
तभी एक तेज़ ठंडी हवा चली, और पूरा माहौल बदल गया।
अब गुफा वैसी नहीं थी जैसी पहले थी — अब वो ज़िंदा लग रही थी।
दीवारों से आवाज़ें आने लगीं —
"हर 20 साल में... तीन आत्माएँ... एक दरवाज़ा..."
रवि घबराया — “ये क्या है मैडम?”
सिया बोली — “यह शायद कोई समय चक्र है… कोई ancient curse जो खुद को दोहराता है।”
निखिल ने कांपते हुए पूछा — “अगर हम अब वापस जाएँ?”
सिया ने कहा — “अब शायद देर हो चुकी है…”
क्योंकि पीछे का रास्ता फिर बंद हो चुका था।
पाँचवाँ दृश्य — छिपा हुआ द्वार
अंदर जाते-जाते वो एक पुराने शिला-द्वार के सामने पहुँचे।
वो आधा टूटा हुआ था और उसके बीच में कोई चिह्न था — एक त्रिकोण जिसमें आँख बनी थी।
सिया ने फुसफुसाया —
“यह तो वैसा ही प्रतीक है जो कुछ प्राचीन तंत्रों में इस्तेमाल होता था… ‘जीवात्मा द्वार’।”
तभी दीवारों पर खून से लिखा उभर आया —
“तीन आए... अब तीन रहेंगे...”
रवि ने रोते हुए कहा — “मैं बाहर जाना चाहता हूँ!”
और अगले ही पल वो हवा में उछला — और गायब हो गया।
सिर्फ उसकी टॉर्च ज़मीन पर गिरी थी, जिस पर खून के छींटे थे।
सिया और निखिल दोनों जड़ हो गए।
छठा दृश्य — रहस्य का बीज
सिया ने धीरे से कहा — “अब समझ आई बात... हर बार जब तीन लोग आते हैं, तो गुफा एक को निगलती है, दो को बचा कर रखती है... अगली बार के लिए।”
निखिल ने डरते हुए पूछा — “मतलब... हम अगली बारी के गवाह बनेंगे?”
सिया ने कहा — “नहीं, हम इस चक्र को तोड़ेंगे।”
उसने पत्थर के नीचे खुदाई शुरू की।
वहाँ एक छोटी ताबूत जैसी चीज़ निकली।
ताबूत खोली — अंदर एक पुराना कैमरा था…
जिसमें अरविंद की आखिरी तस्वीर थी — वो गुफा की दीवार में समाते हुए मुस्कुरा रहा था।
अंत — नई शुरुआत
गुफा की दीवारें अब लाल हो चुकी थीं।
सिया ने कैमरा जेब में रखा और बोली —
“अब मैं समझ गई… गुफा हमें नहीं बुलाती, वो खुद हमारी यादों से ज़िंदा रहती है।”
निखिल ने काँपते हुए पूछा — “तो अब क्या करें?”
सिया ने कहा — “अब अगली रात का इंतज़ार करें… क्योंकि असली द्वार तभी खुलता है।”
कैमरा बंद हुआ, पर रिकॉर्डर चलता रहा।
और उसमें आख़िरी आवाज़ दर्ज हुई —
“अगली रात... गुफा अपना अगला चेहरा दिखाएगी…”
🌑
To be continued…
✨ Episode 4 — “Andheri Gufaa: Raat ka Darwaza” soon... 👁️🗨️