The journey is never incomplete in Hindi Love Stories by Tanya Singh books and stories PDF | सफ़र अधूरा नहीं होता

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सफ़र अधूरा नहीं होता

कभी-कभी ज़िन्दगी हमें वहाँ ले जाती है जहाँ हम जाना ही नहीं चाहते —
पर शायद, वही रास्ते हमें समझाते हैं कि सफ़र अधूरा नहीं होता, अगर हम चलना ना छोड़ें।


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1. एक अधूरी शुरुआत

रीमा ने अपने छोटे से कमरे की दीवार पर टंगी कैलेंडर की तारीख देखी —
10 अप्रैल 2022।
आज ठीक एक साल हो गया था जब उसने जयपुर छोड़ा था।

वो शहर, जहाँ उसके सपने पले थे,
जहाँ उसने खुद को खोया भी था।

दिल्ली की भीड़ में अब वो खोई हुई लड़की नहीं दिखती थी — लेकिन अंदर कहीं, वो अब भी वही थी।
उसने अपनी पुरानी डायरी खोली। पहले पन्ने पर लिखा था —
“मैं रीमा, एक अधूरी कहानी।”

वो मुस्कुराई, “अब नहीं… अब मैं अपनी कहानी खुद लिखूँगी।”


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2. वो वक़्त जब सब थम गया

रीमा बचपन से ही तेज़ दिमाग़ की थी।
गाँव के छोटे से स्कूल से लेकर जयपुर यूनिवर्सिटी तक, उसने हर जगह नाम कमाया।
उसका सपना था — IAS बनना।
पिता किसान थे, और कहते थे —
“बेटा, तू हम जैसे खेत में नहीं, देश के नक़्शे पर नाम लिखेगी।”

लेकिन किस्मत को कुछ और मंज़ूर था।

कॉलेज के तीसरे साल में पिता का अचानक हार्ट अटैक से निधन हो गया।
घर की ज़िम्मेदारी रीमा के कंधों पर आ गई।
माँ, छोटी बहन, और अधूरा सपना — तीनों को संभालने की कोशिश में वो खुद बिखरती चली गई।

IAS की किताबें धूल खा गईं, और रीमा ने नौकरी की तलाश शुरू कर दी।
जयपुर के एक प्राइवेट स्कूल में टीचर बनी — सैलरी बस इतनी कि घर चल सके।
पर रातों को जब सब सो जाते, वो अब भी पढ़ती थी — वही किताबें, वही सपने।


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3. जब प्यार आया… और चला गया

इसी दौरान उसकी मुलाकात हुई अंशुल से —
एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में साथ काम करता था, हँसमुख और समझदार।
धीरे-धीरे दोनों के बीच अपनापन बढ़ा।

रीमा को लगा, शायद ज़िन्दगी अब थोड़ा आसान हो जाएगी।
अंशुल कहता —
“रीमा, तुम अलग हो… तुम्हारे अंदर हिम्मत है, बस खुद पर यक़ीन रखो।”

लेकिन एक दिन, सब कुछ बदल गया।
अंशुल के घर वालों को जब पता चला कि रीमा गाँव की और आर्थिक रूप से कमजोर है, उन्होंने रिश्ता तोड़ दिया।

अंशुल ने कहा —
“रीमा, मैं मजबूर हूँ…”

उसके बाद रीमा ने कभी किसी से मजबूरी की उम्मीद नहीं की।
वो लौट आई — अपने अकेलेपन, अपने सपनों और अपनी मजबूती के पास।


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4. नई शुरुआत, नई जगह

रीमा ने फैसला किया —
अब वो किसी शहर या इंसान पर नहीं, खुद पर निर्भर रहेगी।
वो दिल्ली चली आई।

एक NGO में काम शुरू किया — “उड़ान”, जहाँ गरीब बच्चों को पढ़ाया जाता था।
वो वहाँ सिर्फ़ पढ़ाती नहीं थी, उन बच्चों में खुद को देखती थी —
वो छोटे सपने जो किसी की गरीबी में गुम हो जाते हैं।

हर शाम वो अपने कमरे में बैठकर उन बच्चों की कहानियाँ लिखती —
एक लड़की जो सिलाई सीखना चाहती थी,
एक लड़का जो पुलिस बनना चाहता था,
और एक बच्चा जो बस रोज़ खाना चाहता था।

धीरे-धीरे, रीमा को एहसास हुआ —
उसका सपना शायद IAS नहीं, लोगों के सपने पूरे करना था।


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5. सफलता की पहली किरण

NGO के प्रोजेक्ट पर उसका लिखा लेख सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।
उसकी लाइनें दिल को छू गईं —
“गरीब बच्चा भूखा नहीं होता, वो बस भूख को समझने वाला पहला इंसान होता है।”

एक प्रसिद्ध पत्रकार ने उससे संपर्क किया —
“आपके शब्दों में सच्चाई है, क्या आप हमारे साथ लिखना चाहेंगी?”

रीमा के लिए यह पहली पहचान थी — जो उसने खुद बनाई थी।

वो रात भर सो नहीं पाई।
वो सोचती रही — “पापा, मैंने कुछ तो कर दिखाया।”


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6. फिर लौट आया अतीत

एक दिन ऑफिस में ईमेल आया — “From: Anshul Mehta.”
रीमा का दिल धड़क उठा।

सालों बाद, वही नाम, वही यादें।
ईमेल छोटा था —

> “मैंने तुम्हारा इंटरव्यू पढ़ा। तुम पर गर्व है।
मैं अब भी चाहता हूँ कि हम बात करें… अगर तुम चाहो।”



रीमा ने ईमेल खोला, पढ़ा, और बंद कर दिया।
फिर उसने एक लाइन टाइप की —

> “धन्यवाद, पर अब मेरी कहानी में वापसी की जगह नहीं है।”



उसने ‘Send’ दबाया — और महसूस किया,
कभी-कभी ना कहना ही सबसे बड़ी जीत होती है।


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7. बदलती ज़िन्दगी

अब रीमा की ज़िन्दगी पटरी पर थी।
उसका नाम अखबारों में आने लगा था।
वो बच्चों के हक़ और शिक्षा पर भाषण देती, कैंप चलाती।

लोग कहते — “रीमा, तुमने बहुत संघर्ष किया।”
वो बस मुस्कुरा देती — “संघर्ष ने ही तो मुझे मैं बनाया है।”

एक दिन, उसकी NGO को सरकारी फंडिंग मिली।
और उसे “Education Ambassador” घोषित किया गया।

उसी दिन, वो अपने गाँव गई — वही मिट्टी, वही घर,
पर अब दरवाज़े पर नाम लिखा था — “रीमा शर्मा, समाजसेविका।”

माँ की आँखों में गर्व के आँसू थे।
रीमा ने सिर झुकाकर कहा —
“पापा, अब मैंने देश के नक़्शे पर नाम लिख दिया है।”


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8. सफ़र अधूरा नहीं होता

रात को वो छत पर बैठी थी — हवा में ठंडक थी, आसमान में चाँद।
वो सोच रही थी — अगर उस दिन उसने हार मान ली होती तो?

ज़िन्दगी ने उसे हर मोड़ पर गिराया, लेकिन हर बार उठना सिखाया।
हर गिरावट ने उसे खुद तक पहुँचाया।

वो मुस्कुराई —
“सफ़र मुश्किल था, पर अधूरा नहीं।”


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9. अंतिम पंक्तियाँ

रीमा अब भी वही सादा लड़की है, पर अब उसके भीतर एक आग है —
कुछ करने की, कुछ बदलने की, और कुछ साबित करने की।

वो अब दूसरों के सपनों को दिशा देती है,
क्योंकि उसने सीखा है —
कभी-कभी, दूसरों की मुस्कान ही हमारी मंज़िल बन जाती है।


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समाप्त
-By Tanya Singh