कभी-कभी ज़िन्दगी इतनी चुपचाप टूटती है कि हमें आवाज़ भी नहीं आती।
पर फिर, किसी सुबह, कोई छोटी सी उम्मीद हमें याद दिला देती है —
“रौशनी फिर लौट आएगी।”
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1. टूटी हुई सुबह
अनन्या ने आईने में खुद को देखा — सूजी हुई आँखें, उलझे बाल, और बेजान चेहरा।
उसने धीरे से कहा — “मुझे अब कुछ अच्छा नहीं लगता।”
वो दिल्ली की एक बड़ी कंपनी में ग्राफिक डिजाइनर थी।
चार साल की मेहनत के बाद, प्रमोशन मिला था।
पर उसी दिन उसके बॉस ने कहा —
“तुम्हारा प्रोजेक्ट दूसरे को दे रहे हैं। क्लाइंट को उसका काम ज़्यादा पसंद आया।”
अनन्या को लगा जैसे किसी ने उसके सपनों पर मिट्टी डाल दी हो।
वो ऑफिस से निकली और सीधा घर चली गई।
तीन दिनों तक दरवाज़ा नहीं खोला, मोबाइल बंद रखा, और बस रोती रही।
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2. माँ की चिट्ठी
तीसरे दिन डाकिया एक पुराना लिफ़ाफ़ा लेकर आया।
उस पर लिखा था —
“अनन्या के लिए — माँ की तरफ़ से।”
लिफ़ाफ़ा खोलते ही अंदर एक चिट्ठी थी।
माँ को गुज़रे दो साल हो चुके थे, लेकिन ये उनकी लिखी आख़िरी चिट्ठी थी जो कभी पोस्ट नहीं हुई थी।
> “बेटी, अगर कभी लगे कि ज़िन्दगी रुक गई है,
तो याद रखना — सूरज भी हर शाम डूबता है, पर लौटकर आता ज़रूर है।
हारना बुरा नहीं, हारकर रुक जाना बुरा है।
रौशनी फिर लौट आएगी, बस तुम चलते रहना।”
चिट्ठी पढ़ते हुए अनन्या की आँखें भर आईं।
वो पहली बार मुस्कुराई — हल्की सी, लेकिन सच्ची।
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3. नई शुरुआत
अगली सुबह उसने अपने स्केचबुक उठाई और फिर से पेंटिंग शुरू की।
पहले रंग सूखे लगे, फिर धीरे-धीरे उँगलियाँ चलने लगीं।
वो घंटों तक कैनवास पर रंग बिखेरती रही — नीला, पीला, नारंगी… जैसे ज़िन्दगी को फिर से रंग दे रही हो।
उसी शाम उसने इंस्टाग्राम पर एक नया अकाउंट बनाया —
“Colors of Courage.”
उसने लिखा — “यहाँ मैं हर दिन एक नया रंग जोड़ूँगी, अपनी ज़िन्दगी में भी और इस दुनिया में भी।”
पहले दिन सिर्फ़ पाँच लोगों ने लाइक किया।
पर वो खुश थी — क्योंकि उसने फिर से शुरू किया था।
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4. अनजान सफ़र
धीरे-धीरे उसके आर्टवर्क लोगों तक पहुँचने लगे।
कमेंट्स आने लगे —
“आपकी पेंटिंग ने मुझे हिम्मत दी।”
“आपके रंगों में उम्मीद है।”
एक दिन एक NGO से कॉल आया —
“क्या आप हमारे बच्चों को आर्ट सिखा सकती हैं?”
वो डर गई — मैं सिखाऊँ? मैं तो खुद टूटी हूँ।
लेकिन माँ की चिट्ठी याद आई — “रौशनी फिर लौट आएगी।”
उसने हाँ कह दिया।
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5. बच्चों की मुस्कान
NGO में बच्चों के पास न तो महंगे ब्रश थे, न अच्छे रंग।
फिर भी वो मिट्टी से, टुकड़ों से, और अपने छोटे हाथों से सपने बना लेते थे।
अनन्या ने पहली बार महसूस किया — ये बच्चे उससे कहीं ज़्यादा बहादुर हैं।
वो रोज़ वहाँ जाती, उन्हें रंग भरना सिखाती।
और बदले में वो बच्चे उसे ज़िन्दगी जीना सिखा देते।
एक दिन एक बच्ची, गुड़िया, बोली —
“दीदी, आप जब मुस्कुराती हैं ना, तो हमें भी लगता है कि सब ठीक हो जाएगा।”
उस दिन अनन्या ने जाना — वो अब ठीक हो रही है।
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6. फिर से पहचान
कुछ महीनों बाद, उसी कंपनी से कॉल आया जहाँ से उसने इस्तीफ़ा दिया था।
“हमें आपके डिज़ाइन सोशल मीडिया पर दिखे। हम चाहते हैं कि आप हमारे साथ एक नया कैंपेन लीड करें।”
वो मुस्कुराई —
“पहले आपने मेरा काम नहीं समझा, अब मैं खुद समझ चुकी हूँ कि मेरी कीमत क्या है।”
उसने कॉल काट दिया, और अपनी NGO टीम के साथ अगले प्रोजेक्ट की तैयारी करने लगी।
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7. जब दुनिया ने सुना
एक साल बाद, अनन्या की कहानी और उसकी आर्ट्स को लेकर एक छोटा-सा डॉक्युमेंट्री बना —
“Colors of Courage – The Journey of Ananya.”
वो फिल्म एक युवा उत्सव में दिखाई गई।
लोगों की तालियाँ गूंज उठीं।
अनन्या मंच पर आई, और कहा —
> “कभी सोचा नहीं था कि टूटे हुए रंगों से भी इतनी रौशनी निकल सकती है।
माँ ठीक कहती थीं —
‘सूरज डूबता है, पर लौटकर आता ज़रूर है।’”
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8. नई रौशनी
रात में जब वो अकेली थी, उसने आसमान की तरफ़ देखा —
उसे वो एक तारा दिखा, जो हमेशा उसे बचपन में माँ दिखाया करती थीं।
वो बोली — “माँ, मैंने कहा था ना… मैं फिर से चमकूँगी।”
हवा में हल्की ठंडक थी, पर दिल में गर्माहट थी।
अब उसे डर नहीं था अंधेरे का — क्योंकि उसने अपनी रौशनी खुद बना ली थी।
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9. अंतिम पंक्तियाँ
ज़िन्दगी में अंधेरा आना बुरा नहीं है।
बुरा तब होता है जब हम ये मान लेते हैं कि अब उजाला नहीं आएगा।
कभी-कभी सिर्फ़ एक याद, एक शब्द, या किसी बच्चे की मुस्कान
वो सब कर देती है जो कोई बड़ी सफलता नहीं कर पाती।
अनन्या अब हर दिन किसी को यही सिखाती है —
“अगर तुम टूट गए हो, तो इसका मतलब है कि तुम अब नया रूप लेने वाले हो।”
और उसकी दीवार पर वही चिट्ठी अब भी टंगी है —
> “रौशनी फिर लौट आएगी…”
समाप्त
- By Tanya Singh