1. शुरुआत एक आईने से
शहर – भोपाल।
रात – 11:47।
और कमरा – सिमरन का।
वो तीन महीने से एक प्राइवेट हॉस्पिटल में psychologist थी।
लोगों के डर सुन-सुनकर खुद डरना भूल चुकी थी।
पर उस रात, उसे अपने कमरे के आईने में कोई और चेहरा दिखा।
वो हिली, फिर गौर से देखा —
आईने में वही कमरा था, पर उसमें बैठी लड़की उसके जैसी नहीं थी।
वो मुस्कुरा रही थी, जबकि सिमरन काँप रही थी।
आईने में लिखा उभरा —
> “मैं सच्ची हूँ, तुम झूठ हो।”
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2. मरीज नंबर 12
अगले दिन हॉस्पिटल में नया केस आया — अवनी शर्मा, 24 साल, multiple personality disorder।
डॉक्टरों ने कहा — “वो खुद को दो लोग समझती है — अवनी और माया।”
सिमरन ने सेशन शुरू किया।
अवनी ने धीरे से कहा —
“डॉक्टर, आप कभी खुद से बात करती हैं?”
सिमरन मुस्कुरा दी — “कभी-कभी, सोचने के लिए।”
अवनी बोली — “मैं नहीं सोचती, मैं जवाब देती हूँ।”
सिमरन ठिठक गई।
“किसे?” उसने पूछा।
“आईने को…”
उसका दिल अचानक ज़ोर से धड़क उठा।
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3. रात का खेल
रात को सिमरन ने अपने कमरे की सारी लाइटें बुझा दीं।
बस टेबल लैम्प जल रहा था।
वो आईने के सामने बैठी थी —
धीरे-धीरे बोली, “क्या तुम वहाँ हो?”
कुछ नहीं हुआ।
फिर उसने देखा — आईने में उसके होंठ नहीं हिले, पर आवाज़ आई —
> “हाँ, सिमरन। मैं हमेशा यहीं थी।”
वो डर के मारे पीछे हट गई।
आईने में उसका चेहरा नहीं, अवनी का चेहरा था।
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4. फाइलें जो झूठ नहीं बोलतीं
अगले दिन सिमरन ने अवनी की मेडिकल फाइलें खंगालनी शुरू कीं।
लेकिन जो उसने देखा, उसने उसका दिमाग़ हिला दिया —
रिपोर्ट में लिखा था:
> “पिछले साल अवनी की मौत मानसिक आघात से हुई।”
पर अवनी तो कल उसके सामने बैठी थी!
क्या वो hallucination था? या सिमरन खुद बीमार हो रही थी?
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5. सच की परतें
रात को उसने एक पुराना CCTV फुटेज देखा —
कमरा वही, कुर्सी वही, पर स्क्रीन पर सिर्फ़ सिमरन थी।
वो किसी से बात कर रही थी… हवा में, खाली कुर्सी से।
और जब वो हँस रही थी, उसकी परछाईं नहीं हँस रही थी।
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6. डॉक्टर या मरीज़?
तीसरे दिन सीनियर डॉक्टर ने कहा —
“सिमरन, हमें तुम्हें कुछ बताना है।”
उन्होंने उसे हॉस्पिटल के basement में ले जाया।
वहाँ एक पुराना रूम था — Psych Ward 7A.
दीवार पर टंगी फाइल में लिखा था:
> Patient Name: Dr. Simran Kapoor
Diagnosis: Schizophrenia with Split Personality
Admitted: April 2022
Discharged: Never.
वो चौंक पड़ी —
“ये झूठ है! मैं डॉक्टर हूँ, मरीज़ नहीं!”
डॉक्टर बोले — “तुम फिर से वही कह रही हो जो हर बार कहती हो…”
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7. आईने का सच
वो भागी — सीधे अपने कमरे में।
आईने के सामने खड़ी हुई।
“तुमने ये सब किया!” वो चीखी।
आईना मुस्कुराया —
> “नहीं सिमरन, मैंने नहीं… तुमने खुद को भुला दिया है।”
आईने में अब दो सिमरन थीं —
एक चुप, दूसरी पागल सी हँसती हुई।
“सच ये है,” आईना बोला,
> “अवनी तुम ही हो… और माया मैं।”
फिर काँच टूट गया।
हज़ार टुकड़ों में बँटा आईना —
हर टुकड़े में एक अलग चेहरा।
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8. आख़िरी नोट
दो दिन बाद हॉस्पिटल की नर्स ने कमरे में फाइल पाई —
जिस पर लिखा था:
> “आईना झूठ नहीं बोलता… लोग बोलते हैं।”
— Dr. Simran / Patient No. 12
अब कमरा खाली है।
पर रात को कभी-कभी वहाँ हँसी सुनाई देती है।
काँच के टुकड़ों में एक चेहरा अब भी मुस्कुराता है।
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समाप्त
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🕯️ एक ऐसी कहानी जहाँ हकीकत और वहम की रेखा मिट जाती है —
और इंसान खुद से डरने लगता है।