a meeting in Hindi Love Stories by Vijay Erry books and stories PDF | एक मुलाकात

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एक मुलाकात

एक मुलाक़ात
ले : विजय शर्मा एरी
(लगभग 1500 शब्दों की कहानी)


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सर्दियों की हल्की सुबह थी। अमृतसर की गलियों में धूप अभी-अभी पेड़ों की पत्तियों पर उतरना शुरू ही हुई थी। हवा में ठंडक थी, लेकिन मौसम में एक अलग सा नूर घुला हुआ था—शायद इसलिए क्योंकि उस दिन मेरी ज़िंदगी किसी नए मोड़ पर मुड़ने वाली थी। मुझे उस बात का अंदाज़ा नहीं था, पर किस्मत ने शायद पहले से ही सब तय कर रखा था।

मैं, आरव, कॉलेज में लेक्चरर बनने के लिए इंटरव्यू देने जा रहा था। रास्ते में कई बार अपना रिज़्यूमे बैग में चेक करता और खुद को दिलासा देता— “सब ठीक होगा।” पर दिल की धड़कनें पता नहीं क्यों तेज़ होती जा रही थीं।

कॉलेज पहुँचने के बाद जब मैं कॉरिडोर में बैठा इंटरव्यू की बारी का इंतज़ार कर रहा था, तभी मेरे सामने वाली कुर्सी पर कोई हल्की सी आवाज़ के साथ बैठा। मैंने नज़र उठाई—और उसी पल घड़ी जैसे एक सेकंड को रुक गई।

सफेद सलवार-सूट, बाल हल्के से खुले, हाथ में फाइल और होंठों पर एक बहुत ही शांत मुस्कान।

“हाय… मैं अनाया,” उसने कहा।

मेरे पास जवाब देने का शब्द ही नहीं बचा। फिर जैसे किसी ने अंदर से झकझोर कर कहा—“कुछ बोल भी लो!”

“ह..हाय, मैं आरव,” मैंने मुस्कुराने की कोशिश की।

हम दोनों का ही इंटरव्यू था, इसलिए बातचीत जल्दी ही शुरू हो गई।

“आप किस सब्जेक्ट के लिए आए हैं?”
“हिंदी साहित्य,” मैंने जवाब दिया।
“अच्छा! मैं भी हिंदी ही पढ़ाती हूँ। शिक्षा मेरा पैशन है।”

उसकी बातें सुनकर लगा जैसे कोई पुरानी, भूली-बिसरी धुन अचानक कानों में धीमे से बजने लगी हो। वो बोल रही थी, और मैं बस उसे सुनता ही जा रहा था।

पता ही नहीं चला कि इंतज़ार करते-करते आधा घंटा कैसे गुजर गया।


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इंटरव्यू के बाद

इंटरव्यू खत्म होने के बाद जब मैं बाहर निकल रहा था, तभी अनाया सामने से आई।

“कैसा हुआ?” उसने पूछा।

मैंने कंधे उचकाए—
“थोड़ा नर्वस हो गया था… लेकिन उम्मीद है ठीक होगा। आपका?”

उसने हँसते हुए कहा—
“मैं तो पानी पीने की तरह इंटरव्यू देती हूँ… लेकिन इस बार थोड़ा डर लगा।”

उसकी इस बात पर हम दोनों हँस पड़े।

कॉलेज के बाहर चाय की एक छोटी-सी दुकान थी। पता नहीं किसने पहले कहा, लेकिन अगले ही पल हम वहीं बैठे दो गरम चाय की प्यालियाँ हाथ में लिये बातें कर रहे थे।

“आप दिल्ली से हैं?” मैंने पूछा।
“नहीं… जालंधर से। यहाँ अभी कुछ महीनों के लिए शिफ्ट हुई हूँ,” वह बोली।

बातों ही बातों में उसने बताया कि उसे कविताएँ लिखने का बहुत शौक है। मैंने अपनी डायरी दिखाते हुए बताया कि मैं भी कहानियाँ लिखता हूँ।

उसने डायरी के कुछ पन्ने पलटे।
“आप शानदार लिखते हैं, आरव। आपको ये सब दुनिया को दिखाना चाहिए।”

उसके शब्द मेरे अंदर किसी दीये की तरह जल उठे।


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पहली मुलाक़ात का पहला एहसास

चाय खत्म हो रही थी, पर बातों का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा था। समय का अहसास तब हुआ जब दुकानदार ने कहा—

“भाई साहब, दुकान बंद करनी है।”

हम दोनों हँस पड़े। सूरज ढलने लगा था। हल्की ठंडी हवा बह रही थी। अनाया अपने दुपट्टे को कंधे पर ठीक करते हुए बोली—

“आज का दिन अच्छा था… इंटरव्यू तो बाद में भी याद रहेगा, मुझे लगता है हमारी यह पहली बातचीत ज्यादा याद रहेगी।”

उसकी यह बात मेरे दिल में धड़कन बनकर बस गई।

मैंने हिम्मत करके कहा—

“अगर आप बुरा न मानें, तो कभी फिर चाय… या कॉफी…?”

अनाया ने बिना झिझक कहा—
“क्यों नहीं… अच्छा लगेगा।”

उसके जाते हुए कदमों को मैं तब तक देखता रहा, जब तक वह मोड़ के पीछे गायब न हो गई। उस दिन मैं घर पहुँचा तो माँ ने कहा—

“आज तू कुछ अलग लग रहा है… मुस्कुरा क्यों रहा है ऐसे?”

मैं बस इतना ही कह पाया—
“पता नहीं माँ… आज एक अच्छी दोस्त मिली है।”

पर माँ ने जैसे दिल पढ़ लिया—
“दोस्त या कुछ और?”

मैंने नजरें झुका लीं।


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दोस्ती के बहाने मुलाक़ातें

इंटरव्यू के एक हफ्ते बाद रिज़ल्ट आया—हम दोनों को जॉब मिल गई थी। पहले ही दिन जब स्टाफ रूम में अनाया मिली, तो उसकी आँखों में वही पुरानी चमक थी।

“कांग्रैचुलेशन्स!”
“यू टू!”

और फिर हमारी मुलाक़ातें बढ़ने लगीं।
कभी चाय, कभी लाइब्रेरी, कभी क्लास के बीच छोटी-सी बातचीत।

हम दोनों अपने पसंदीदा कवि, अपनी सोच, अपने सपने—सब कुछ एक-दूसरे के साथ बाँटने लगे।

उसके आने से मेरी दुनिया जैसे बदलने लगी थी। वो सिर्फ सुंदर ही नहीं थी, बल्कि बेहद समझदार, शांत और दिल से दयालु।

कई बार उसे देखते ही मन में एक लाइन गूँज उठती—

“कितनी खूबसूरत हो तुम… कोई सूरज की किरण हो, या चांदनी की बूंदें…”


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एक दिन—कुछ खास

वो शुक्रवार की शाम थी। कॉलेज से छुट्टी के बाद हम दोनों कैंपस के गार्डन में बैठे थे। आसमान पर बादल थे और हल्की सी ठंडक।

अनाया ने पूछा—
“आरव, तुम्हारी कोई पसंदीदा याद?”

मैंने उसे हमारी पहली मुलाक़ात याद दिलाई—
“चाय वाली दुकान… पहला दिन… पहली बात… वो सबसे खास है।”

अनाया ने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा—
“मेरे लिए भी।”

उस क्षण जैसे हमारे बीच की हवा भी मुस्कुरा उठी।

मैंने पूछा—
“क्या हम… दोस्त से बढ़कर भी…?”

वह चुप रही। कुछ पल बाद बोली—
“आरव, रिश्ता बनाने से पहले मैं एक बात बताना चाहती हूँ। मुझे रिश्ते में जल्दबाजी पसंद नहीं। मैं दिल से जुड़ती हूँ, पर वक्त लेकर।”

मैंने उसकी आँखों में देखा और कहा—
“मैं इंतज़ार कर सकता हूँ… क्योंकि तुम्हारे जैसा कोई हर रोज़ नहीं मिलता।”

अनाया ने नजर झुका ली। उसके चेहरे पर एक हल्की-सी लालिमा उतर आई थी।


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पहली मुलाक़ात की खूबसूरती

हम कॉलेज से निकलकर उसी पुरानी चाय की दुकान पर गए—जहाँ सब शुरू हुआ था।

दुकानदार ने हमें देखते ही कहा—
“अरे साहब-वाली मैडम! आज फिर चाय?”

हम दोनों हँस पड़े।

अनाया ने कप हाथ में लेते हुए कहा—
“आरव, एक बात बताऊँ?”
“हाँ…”
“उस दिन मैं इंटरव्यू में नहीं, किस्मत में पास हुई थी।”

मैंने उसे देखते हुए कहा—
“और मैं तो शायद उसी दिन तुम पर…”

मैं रुक गया। पर अनाया मुस्कुरा उठी—
“बोलो ना, मैं सुन रही हूँ।”

मैंने गहरी सांस ली—
“शायद… पहली नज़र में ही… तुम अच्छी लगने लगी थीं।”

एक लंबी खामोशी…
लेकिन ये खामोशी डर वाली नहीं, दिल वाली थी।

अनाया धीरे से बोली—
“दिल की बात कहने में झिझकना मत, क्योंकि दिल हमेशा सच बोलता है।”

उसकी यह बात मेरे दिल की सबसे खूबसूरत याद बन गई।


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और उस दिन…

जब वो चली गई, तो शाम के धुंधलके में उसकी परछाईं दूर तक दिखती रही। मैंने मन में सोचा—

“शायद ये पहली मुलाक़ात नहीं… मेरी नई जिंदगी की पहली सीढ़ी है।”

उस रात मैं देर तक सो नहीं पाया। डायरी खोली और लिख दिया—

“कुछ मुलाक़ातें मुकद्दर होती हैं,
कुछ लोग दुआ बनकर मिलते हैं,
अनाया… तुम दोनों हो।”


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समापन

पहली मुलाक़ात सिर्फ एक मुलाक़ात नहीं होती—वो एक दरवाज़ा होती है, जो जिंदगी को नए रंगों से भर देती है। आरव और अनाया की कहानी वहीं खत्म नहीं हुई… बल्कि वहीं से शुरू हुई।

एक मुस्कान…
एक चाय की प्याली…
कुछ अनकही बातें…

और एक रिश्ता—जो पहली मुलाक़ात की तरह सादा, मीठा और यादगार था।