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नंदलाल मणि त्रिपाठी

नंदलाल मणि त्रिपाठी Matrubharti Verified

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बहना ---

जीवन मे आया भईया
जीवन का मान बनके
चाहत कि जिंदगी का
विश्वास आस बनके!!

भाई बहन के प्रेम
को है वंदन भईया कि है
कलाई कच्चे धागे का है
ऐ बंधन सम्बन्ध कि
सच्चाई गंगा कि धारा
जैसे!!

उदय उदित है भईया
बहना का गहना जैसे
भईया कि सांस धड़कन
रहती प्राण बनके!!

भईया का पथ जीवन
गान बहना कि ख़ुशी जैसे
बहना के दामन मे चाहत
कि ख़ुशी बरसे हर बूंद मोती
बहना कि नाज़ बनके!!

बहना का आशीर्वाद
भईया का कवच जैसे
शिव शक्ति मृत्युजय पल
प्रहर साथ बनके!!

भाई बहन के प्रेम का
वंदन धड़कन धागो का
पावन बंधन जीवन मे है
रहता जीवन महत्व बनके!!

बहना संग लड़ना
झगड़ना बचपन कि
शरारत रोना हसना
माँ से शिकायत माँ
कि फटकार सुनना
कट्टी मिल्ली हो जैसे
आंसू मुस्कान बनके!!

बचपन ऐसे बीता
झपकते पलक जैसे
बाबुल घर छूटा बहना
हुई पराई भईया को
नही विसारा नयनों
हृदय मे बसती लोर
नीर बनके!!

रक्षा बंधन को
दौड़े आती
हुई नही कभी
जुदाई पराई जैसे
भाईया कि प्यारी
बहना जीवन सत्कार
श्रृंगार बनके!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!

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जीना है तो मरना सीखो


जीना सीखो जीना है तो
मारना सीखो तूफानों से
लड़ना सिखो।।

युवा उत्साह अहंकार से
डरना सीखो
हस्ती हद नहीं
हद हस्ती स्वय कि
निर्धारित करना सीखो।।

आशाओं का आकाश
आसमान से आगे
आशाओं कि उड़ान
भरना सीखो।।

उत्साह उद्देश्यों के पथ में
यदि आ जाए कोईं बाधा
अवरोध चुनौती चूर चूर कर
बाधा अवरोध
चुनौती में भी उद्देश्य
वरण करना सीखो।।

शत्रु घातो चालों में
उलझना नही निकालना
सीखो अंगार नव जवान तुम
युवा उत्साह उड़ान
उड़ना सीखो।।

शक्ति ज्वाला व्यर्थ ना
हो जाए घृणा द्वेष दंभ में
बदलना सिखो
बदल सकते हो
युग समय समाज
बदलेगा वर्तमान
दुनिया कैसे?
दुनियां बदलना सीखो ।।

मिटा दो अपनी हस्ती को
अगर तू मर्तवा चाहे ख़ाक से
गुलो गुलज़ार आधार
दुनियां के दर्द दुःख आंसू
विष पीना सीखो।।

हर प्राणी में आते तुम
एक बार हर प्राण में
जागते एक बार
आने जागने का
अंतर युवा प्रौढ़
वृद्ध काल
समझना सीखो।।

मिटा दो या मिट जाओ
दुनियां इतिहास पृष्ठों का
स्वर शब्द बनना सीखो।।

व्यर्थ नहीं लिखी जाती
पल प्रहारों कि भाग्य रेखाएं
पल प्रहार अमिट रेखाओं को
समझना सीखो।।

प्रेम ही जीवन का सत्यार्थ
प्रेम उत्कर्ष का उत्साह
ओज तेज मीत गीत संगीत
कर्म ज्ञान का
गीता पढ़ना सीखो।।

समय काल बदलता रहता
पल प्रहर चलता रहता
पल पल चलते
समय काल में
अपना काल
बदलना सीखो।।

काल गतिमान चलता और
निकलता जाता
समय काल का
भाग्य इतिहास
बदलना सीखो।।

चिंगारी ज्वाला काल कराल
विकट विकराल तुम
समय काल के लौह
पत्थर चट्टान नव जवान
तुम अपना काल समय
लिखना गढ़ना सिखो।।

साहस की धार तुम तूफां
बौछार तुम समय काल के
शत्र शास्त्र नव जवान
व्यर्थ ना जाए युवा ओज
उत्साह सार्थक और सतर्क
रहना सिखो।।

व्यर्थ बीत ना जाएं युवा उमंग
बन ना जाओ काल का
कचरा कबाड़
नए उत्सव उत्साह
पल प्रहर जीते जाओ
युग में युवा सदा
जीवित रहना सिखो।।

साँसों की गर्मी ज्वाला से
उद्देश्य पथ अग्नि पथ
बदल डालो
युवा उत्सव उत्साह में
युग बदलना सिखो।।

मिट्टी के माधव
मिट्टी में ना मिल जाओ
नव इतिहास रचो
बाज़ीगर जादूगर
बाज़ जांबाज बनना और
बनाना सिखो ।।

अवनी पर स्वर्ग सत्य
नव युग युवा तुम
इच्छा और परीक्षा कि
मधुशाला का हाला
नए काल कलेवर का
इतिहास भूगोल
मादकता मदिरा
बन जाना सिखो।।

प्रश्न नहीं कोई ऐसा खोज
सको न उत्तर तुम
नहीं कोई समस्या
पाओ नहीं निदान तुम
युग भाव भावना का
समय काल प्रतिज्ञा तुम
अपने कदमो की
दुनियां का
अभिमान बनना सिखो।।

युवा लहरों का समंदर
न बन पाये तेरी गहराई
जहाँ शांति स्वय को नही
स्वय युग में रहने
ना रहने का अर्थ वास्तव
युग को बतलाना सिखो।।

अवसर को उबलब्धि में
बदलना सीखो
नव जवान गिरना
और संभालना सीखो।।

युवा तुम उद्देश्यों के
चट्टान राई से पहाड़
उद्देश्य पथ को
अवसर पर मोड़ना सीखो।।

स्वय के रहने का
वर्तमान रच डालो
युग इतिहास पृष्ठों के
युग पथ के उज्ज्वल
उजियार युवा
तुम बनना सिखो।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।

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जय जय शिवशंकर---

जय जय शिव शंकर
जय जय दिगम्बर
जय जय भाग़म्बर
जय जय भूतेश्वर ।।

जय जय अविनाशी
घट घट वासी जय जय
जय जय भोले शंकर।।

कर त्रिशूल डमरू सोहे
ग्रीवा नाग की माला
भाल चंद्र कि शोभा
जय जय त्रिपुरारी
मंगलकारी अमंगल हारी
हर हर बम बम भोले।।

पार्वती पति गजानन षडानन सूत
नंदी वाहन गण भूत बेताल पिसाच
नीलकंठ जय जय महाकाल।।

जय जय नागेश्वर
जय जय विश्वेश्वर
जटा जुट में पतित पावनी
जय जय सोम शोमेश्वर।।

जय जय ओंकारेश्वर
जय जय ममलेश्वर
जय जय काल सर्प
विनाशक त्रेमकेश्वर।।

पार्वती पति
नंदी वाहन गण
भूत बेताल पिसाच
नीलकंठ जय जय
महाकाल।।

जय जय नागेश्वर
जय जय विश्वेश्वर
जटा जुट में पतित पावनी
जय जय सोम शोमेश्वर।।

जय जय ओंकारेश्वर
जय जय ममलेश्वर
जय जय काल सर्प
विनाशक त्रेमकेश्वर।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

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महिमा वरनी न जाए----

हे अंजनी सूत बजरंगबली
महिमा वरनी न जाए।।

पवनपुत्र कहूँ या हनुमान
या रुद्रांश जाने कितने रूप
नाम तुम्हारे सुमिरत काल
समय बीतत जाए।।

बाल काल रवि ग्रास लियो
जग चहुओर भयो अंधियार।।

देव दनुज युग करे विचार
आश्चर्य चकित देखत बाल रूप
बलवान।।

करे याचना कृपा करो दया निधान
कष्ट निवारो रवि का हो युग
उजियार।।

मईया सीता वियोग में
व्यथित नारायण राम अवतार
सागर लांघो सुरसा तारो मच्छोद्री
तारण हार।।

आशीष मातु जानकी लंका जारो
भक्त विभीषण का घर नाही
कूदी पड़े सागर में मझधार।।

मातु जानकी सुधि आराध्य
राम बताए वानर कुल गौरव मान।।

लक्ष्मण मूर्क्षित वाण से
इंद्रजीत पुलकित अधिकाय
वैद्य सुषेण लंका से लायो।।

संजीवनी कि हिमालय से लाए
कालनेमि को तारो जाए।।

जीवन रक्षक संजीवनी लाएं
शेष हुए शेष अवतार।।

अहिरावण अभिमान में
चला देवन प्रभु बलिदान।।

ज्ञात नही हनुमान पुत्र
मकरध्वज ही अहिरावण
कीर्ति पताका द्वार।।

पाताल लोक के सिंघासन
राजा का करने गए उद्धार।।

देवी रूप धरे विध्वंस
कीए यज्ञ अहिरावण हे
हनुमान महिमा अपरंपार।।

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

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शेखर आजाद--

उत्तेजित नहीं पथ भ्रष्ट नहीं शास्त्र शत्र संस्कृति संस्कार की अवनी पर स्वन्त्रता का युग अवाहन प्रेरणा पुरुषार्थ आजाद!!

हे युग युवा उठो ना करो विश्राम तुम्हें बदलना होगा विकृत मानवता के रूप को कर युवा ओज शृंगार आजाद!!

साहस शक्ति की हस्ती का अभिमान सम्मान स्वाभिमान की धरती और आकाश आजाद!!

स्वछंद धैर्य के धारण का होगा राष्ट्र युग निर्माण!!

वीरता धीरता धरोहर का वर्तमान प्रेरणा प्रसंग परिणाम पुरुषार्थ का भविष्य संस्कार आजाद!!

त्याग बलिदान की धरती की स्वतंत्रता का पथ पथिक युग साम्राज्य युग मिशाल मशाल हर युवा आज चंद्रशेखर आजाद!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!

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परम्परिक मूल्यों का संरक्षण ---

बिखर जाता राष्ट्र समाज
विसार देता ज़ब स्वंय कि
परम्परा परम्परागत मूल्य
राष्ट्र समाज!!

राष्ट्र समाज स्व को
खोजता स्व को ही जान
पहचान नही पाता!!

स्व विसर्जन बिसार
स्व का करता समय
राष्ट्र समाज!!

राष्ट्र समाज पहचान साक
परम्परा परमारगत मूल्य
संस्कृति अतीत आचरण
विचार व्यवहार!!

जीवेत जाग्रत राष्ट्र समाज
अभिमान परम्परा मूल्य
सत्यार्थ जीवन समाज
राष्ट्रीय चेतना सत्कार!!

राष्ट्रीय जागरण सामाजिक
चेतना युग काल समय बैभव
परम्परा मूल्य महिमा महान

स्वं परम्परा शास्त्र पराक्रम
निगम निर्भय निर्विकार
निःस्वार्थ निर्माण शिकर
विकास!!

परम्परा परम्परागत मूल्य
नैतिकता निर्वहन निर्मल
नीरझर धीर धैर्य राष्ट्री समाज
धन्य धार!!

परम्परा मूल्यों का ह्रास
राष्ट्र समाज अस्तित्व का
विनाश स्व का सर्वनास!!

वर्तमान परिहास अतीत
अभिमान बिरोचित गाथा
अपमान!!

मुक प्रतंत्रता का पथ पग
भविष्य भाष्य!!

परम्परा मूल्यों का
संरक्षण राष्ट्र समाज
ध्येय धर्म संवर्धन
इतिहास गौरव वर्तमान का
भूषण आभूषण भाव
भविष्य अभिनन्दन!!

आत्म ईश परमतत्त्व
परमात्म राष्ट्र समाज का
जन जाग्रति अध्यात्म चित्त
चेतन संस्कार!!

परम्परा मूल्यों का
संरक्षण जन्म जीवन
प्राणी प्राण प्रणम्य
प्रणाम प्रेम सार
परमार्थ कल्याण!!

परम्परा पारम्परिक
मूल्यों का संरक्षण दायित्व
बोध कर्तव्य युग पीढ़ी
भविष्य बोध सत्यार्थ!!

पारम्परिक मूल्यों का
सत्कार अक्षय अक्षुण
संस्कृत संस्कार राष्ट्र
समय समाज अभय
निर्भय राष्ट्र चेतना संग्राम!!

समय हुंकार ललकार
युग युवा वंदन सत्कार
जागो सुनो काल समय
युग पुकार!!

स्व पहचान परंपरा
पारम्परिक मूल्यों का
रक्षण संचय संवर्धन
गौरवशाली इतिहास!!

पृष्ठ भूमि वर्तमान
जागरण उजियार
भविष्य सवर्धन का
अक्षय अकक्षुण
राष्ट्र समाज!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!

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शिव महिमा और सावन--

शिव महिमा का सावन
शिव तत्व महत्व का सावन
सावन के दो रूप जैसे
शिव स्वरूप एक सावन!!

मनभावन हरियाली
खुशहाली झूला
मेंहदी सखी पिया मिलन
हसीं ठिठोली जीवन आनंद
मंगल शिव समरस दूजा न
कोई सावन!!

विकट विकराल
रौद्र रूप जैसे
खुला शिव त्रिनेत्र
समय सावन!!.

कही हसीं ख़ुशी
मुस्कान पिया बदरा
बरसात सुहाना सावन!!

सुंदर सुगंध मंद
पवन शीतल चाँद
चांदनी अँधियार
उजियार जैसे जिंदगी कि
फुहार बाहर सावन!!

भाई बहन रिश्ता
पावन रक्षा बंधन पर्व
हर्ष हर्षित देश समाज
सावन!!

सोमवार उपवास
शिव शंकर भोले
अभिषेक!!

शिवालय मे जन जन
बोले स्वर आवज एक
गुजे अविनी आकाश!!

हर हर महादेव
जय जय शिव शंकर
बोल बम बोल बम
जै जै श्री महाकाल
ॐ नमः शिवाय!!

सावन कही सुहाना
सावन कही रोअना
गोरी छोरी प्रेम व्यवहार
पिया सुहागन प्रियतम
प्रेयशी भाव भवना!!

तूफान उफान ज्वार गुबार
सावन बाढ़ विभीषिका
विखरल घर दुआर उजड़ल
चमन खेती बारी चौआ
चूरूँग गए बह बिलाय!!

गांव के गांव जैसे
वीरान श्मशान हरियाली
खुशहाली के नहीं नाम
निशान!!

चाहूँ ओर जल ही जल
जैसे द्वीप टापू उजड़ल
गांव महाप्रलय काल के
कोप जैसे दंड महापाप!!

सुख दुःख ख़ुशी गम
जन मन के सावन
हरियाली खुशलाली
बाहरफुहार!!

बौछार सावन वर्वादी
दर्द दंश दंड प्रासच्चचित
कर्म धर्म प्रधान सावन!!

शिव उद्भव विनाश विकास
प्रकाश देव दानव द्वय
आराध्य सावन कही ख़ुशी
कही गम निहितार्थ सावन!!

शिव सावन जन्म जीवन
एक समान दुःख सुख
अनुभूति अनुभव के
सत्यार्थ!!

आत्म बोध चिंतन विचार
जीवन व्यवहार आचरण
आत्ममंथन शिव बोध जन्म
जीवन महिमा महत्व सावन!!

शिव सावन जन्म जीवन
आत्मा परमात्मा ईश्वर
बोध समान सावन!!

आत्म बोध शोध सत्य
जन्म जीवन काल चक्र
पथ पड़ाव सावन!!

आत्म शुद्धि मन बुद्धि
प्रवृति चंचल चित्त नियंत्रण
शिवसावन!!

युग जीवन साध्य साधना
आराधना यज्ञ अनुष्ठान ध्येय
ध्यान अंतर्मन सावन!!

शिव सत्य जीवन तत्व
कर्म धर्म मर्म आत्म चिंतन
मंथन महत्व का सार सत्यार्थ.
सावन!!

बारह मास का वर्ष
छः ऋतुए मौसम चार
शिव आराधन आत्म तत्व
सत्य बोथ आत्म मंथन का
सावन मास!!

सात्विक जीवन आहार
अर्घ आराधना नियति नेक
शिव मंगल गान!!

अभिषेक आराधना शांत
चित्त सांयमित संतुलित
विशुद्ध सात्विक जीवन
व्यवहार!!

सावन आत्म मंथन
आत्मा ईश्वर सत्य सद
चरित्र निर्माण निर्विवाद
निर्विकार सावन!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!

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भक्ति शिव कि मैं जगाता
चला गया----

भक्ति मैं शिव कि जगाता चला गया
हर मन मे शिव ज्योति जलाता चला गया।।

कोई भी मिल गया
उसे शिव महिमा
बताता चला गया
जन जन कि मनोकामना की
पूर्णता है रुद्र का
गुण गान मैं गाता चला गया।।

भक्ति मैं शिव कि जगाता चला गया
हर मन मे शिव ज्योति जलाता चला गया।।

सावन में शिवालय कि गूंज
हर हर महादेव जयकारा मैं
लगाता चला गया।।

भक्ति मैं शिव कि जगाता चला गया
हर मन मे शिव ज्योति जलाता चला गया।।

शिव आदि देव देवता
जो कुछ भी मांगता
हैं व्यही दाता
दिगम्बर भक्ति भाव मैं
जलाता चला गया।।

भक्ति मैं शिव कि जगाता चला गया
हर मन मे शिव ज्योति जलाता चला गया।।

अनाथों के है नाथ विश्वेश्वर
विश्वनाथ विश्वम्भरा को भाव
भक्ति से नहलाता चला गया।।

सोम रूप प्रथम सोमनाथ
द्वितीय मल्लिकार्जुन दूसरे
ब्रम्ह सत्य ब्रह्मांड गुणागार
गाता चला गया।।

जन्म जीवन मृत्य का सत्य
प्राणि प्राण अवनी आकाश
अभ्यंकरा महाकाल का डमड
डमड निदाद बजाता चला गया।।


ॐ का अस्तित्व आत्मबोध
ॐ ओंकारेश्वर का उजियार
मैं फैलाता चला गया।।

भक्ति मैं शिव कि जगाता चला गया
हर मन मे शिव ज्योति जलाता चला गया।।

जन्म जीवन मोक्ष मार्ग
साकार शिव केदार
गुणागार संसार अभयदान
पाता चला गया।।

ज्ञान बैराग्य का है
प्रकाश वैद्यनाथ शक्ति
श्रोत सार वैद्यनाथ
शंकर कण कण विश्वास
वैद्यनाथ शिव तांडव मै
गुनगुनाता चला गया।।

भक्ति मैं शिव कि जगाता चला गया
हर मन मे शिव ज्योति जलाता चला गया।।

अकाल मृत्यु से मुक्ति
आशीर्वाद त्रयम्बकेश्वर
काल सर्प का विनाश
भय मुक्त दिवम्बरा
राग सुनाता चला गया।।

भक्ति मैं शिव कि जगाता चला गया
हर मन मे शिव ज्योति जलाता चला गया।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।

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शराब कहते है--


हलक को जलाती, उतरती हलक में शराब कहते हैं।
लाख काँटों की खुशबू गुलाब कहते हैं।!!

छुपा हो चाँद जिसके दामन में हिजाब कहते हैं।!
ठंडी हवा के झोंके उड़ती जुल्फों में छुपा चाँद सा चेहरा।
बिखरी जुल्फों में चाँद का दीदार कहते हैं।!

सुर्ख गालों की गुलाबी, लवों की लाली।
बहकती अदाओं को साकी शबाब कहते हैं।!

लगा दे आग पानी में सर्द की बर्फ पिघला दे।
जवानी की रवानी जवानी कहते हैं।!

जमीं पे पाँव रखते ही जमीं के जज्बे में हरकत।
जमीं की नाज मस्ती की हस्ती को मस्तानी ही कहते हैं।!

सांसों की गर्मी से बहक जाए जग सारा।
जहाँ का गुलशन गुलजार कहते हैं।!

धड़कते दिल की धड़कन से साज की नाज मीत का गीत संगीत कहते हैं।!

सांसों की गर्मी से निकलती चिंगारी, ज्वाला।
हद, हसरत की दीवानी उसे कहते हैं।!

मिटा दे अपनी हस्ती को या मिट जाए आशिकी मेंआशिक नाम कहते हैं।!

नशे में चूर इश्क के जाम जज्बे में हुस्न का इश्क में दीदार कहते हैं।!

नादाँ दिल की शरारत में कमसिन बहक जाए।
कली नाजुक का खिलना चमन बहार कहते हैं।!

सावन के फुहारों में, वासंती बयारों में बलखाती बाला बंद बोतल की शराब पैमाने का इंतजार कहते हैं।!

इश्क के अश्क, अक्स एक दूजे के दिल नजरों में उतर जाए।
इश्क की इबादत इश्क इजहार कहते हैं।!

नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!

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तेरा दर लगे प्यारा ---


निराश हो जाता जीवन में चहुँ ओर आंधेरों में खो जाता।

कुछ भी नहीं भाता कुछ भी नहीं प्रिय प्यारा!
तेरा दर मुझे लगे प्यारा।!

तेरे दर पे शीश झुकता जान लेती स्वयं ही मेरे जीवन के दुख दर्द हर लेती दुःख पीड़ा मिटा देती जीवन का तमसो माँ ज्योतिर्मय जीवन हो जाता!!
तेरा दर मुझे लगे प्यारा!!

आशाओं का आकाश आस्था वास्तविकता विश्वाश की विराटता।
तेरी ममता का आँचल का दुलारा
तेरा दर मुझे लगे प्यारा।!!

करुणा की सागर क्षामां की छितिज!
जाने अनजाने में अपराध भी कुछ हो जाता।
अबोध बालक को नई बोध चेतना का तेरा प्रसाद का न्यारा।
तेरा दर मुझे लगे प्यारा।!

तेरा दर युग सृष्टि दृष्टि मर्म मर्यादा का द्वार।
अन्यायी अत्याचार का संघार।
दीन दुखियों की पुकार शब्द स्वर आवाज शेर पर सवार।
युग निर्माता, तेरा दर मुझे लगे प्यारा।

तेरे रूप हज़ार नौ रूप खास
पहाड़ावाली जोता वाली चंड मुंड संघारी।
रक्तबीज नासिनी महिसासुर मर्दनी पाप नासिनी मोक्ष दायनी।
महिमा तेरी अपरम्पार।!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!

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