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महेश रौतेला

महेश रौतेला Matrubharti Verified

@maheshrautela
(471)

मैं खड़ा इस पार रहा हूँ
सुख मेरा उस पार रहा है,
उस शिखर पर जो दिखा है
वह मनुज का अवतार रहा है।

पत्रों में प्यार भरा है
उनको यह स्वीकार नहीं है,
उसकी राह अलग-थलग है
मेरी राह बहुत सरल है।

मेरा राष्ट्र सतत व्यापक है
शक्ति के आगे शान्ति सबल है,
नतमस्तक जब होना ही है
हल्लागुल्ला क्यों करना है!

पथ की उर्जा बटोर रहा हूँ
राम-रावण को देख रहा हूँ,
जिसके मन में दुष्कर्म खड़े हैं
उसका विनाश देख रहा हूँ।


* महेश रौतेला

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इतिहास सुनो जो मरा नहीं है:

इतिहास सुनो जो मरा नहीं है
पावन धरा से मिटा नहीं है,
बसंत जब-जब आया है
वह सर्वत्र सगुण बन छाया है।

एक मनुज था, एक धरा थी
एक ही सूरज सबका था,
नक्षत्रों का मोह नहीं था
सौन्दर्य सर्वत्र एक ही था।

धर्म एक था,सत्य एक था
चलना सबका सरल- सहज था,
निर्दोषों के भीतर बैठा
आतंक का नाम नहीं था।

गुण-अवगुण तब तनते थे
सुचिता का ध्यान बहुत था,
शस्त्रों के आगे निडर
न्याय का आकार वृहत था।

यह विज्ञान का अथक परिश्रम
प्रयोग से दुरुपयोग हुआ,
कभी वायुयान तो कभी रायफल
आतंकी का हथियार हुआ।

इतिहास सुनो जहाँ हरिश्चंद्र हुआ
श्रीराम-कृष्ण का संसार रहा,
मिट्टी जहाँ शुद्ध प्यार हुयी
शैतानों का विनाश हुआ।

रण जो है, लड़ना होगा
धनुर्धरों को उठना होगा,
विराट व्यवस्था के संचालक का
ध्यान सदा रखना होगा।
***
*** महेश रौतेला

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जो नहीं होना चाहिए था
वह हुआ,
महाभारत में जो अधर्म के साथ था
वह मारा गया
लेकिन अश्वत्थामा घाव लिये अमर हो गया,
जो धर्म के साथ था
वह भी मारा गया,
लेकिन युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग गये।
ग्यारह अक्षौहिणी सेना अधर्म के साथ!
सात अक्षौहिणी सेना धर्म के साथ!
गीता के संदेश के बाद
ईश्वर के आँखों के सामने
रक्त गरमाया और लहू बहा,
अंधा राजा निर्णायक नहीं था
रानी आँखों पर पट्टी बाँध
श्रीकृष्ण को शाप दे गयी,
जिसे भगवान ने बचाया
उसे तक्षक साँप डस गया,
बाघ से पूछा-
उसने हिरन को क्यों मारा?
तो उसने उत्तर नहीं दिया!


*** महेश रौतेला

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बिना सुबह के
कहाँ उठूँगा,
बिना शाम के
कहाँ बैठूँगा!
बिना रात के
कहाँ सोऊँगा,
बिना दिन के
कहाँ चलूँगा!

*** महेश रौतेला

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नीलाम करने वाला आदमी है
ठेकेदार भी आदमी है,
काटने वाला भी आदमी है
चीरने वाला भी आदमी है,
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है
जंगल जस का तस असहाय है।
सरकार में आदमी है
सड़क पर आदमी है,
पत्थरबाज भी आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
गाली देने वाला आदमी है
सुनने वाला आदमी है,
धर्मभेद में आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
घूस लेने में आदमी है
घूस देने में आदमी है,
सच-झूठ में आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
ठगने में आदमी है
ठगाजाने वाला आदमी है,
आन्दोलन में आदमी है
पुरस्कार पाने वाला भी आदमी है।
***
*** महेश रौतेला

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मैंने सोचा
ऊपर सुख है
फिर सोचा नीचे सुख है।
मैंने सोचा
शहर में सुख है
फिर सोचा गाँव में सुख है।
कभी सोचा इस मोड़ पर सुख है
कभी सोचा उस क्षण में सुख है,
गति में देखा ,मति में देखा
मैंने सोचा धन में सुख है
फिर पाया मन में सुख है।

*** महेश रौतेला

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हर मरा व्यक्ति ईमानदार होता है:


श्रद्धांजलि पर मरे व्यक्ति को कहा जाता है-
अच्छा, ईमानदार, स्नेहिल,शिष्ट
उदार, पूर्ण, उज्जवल,कर्तव्यनिष्ठ।
जब जाता हूँ-
इस और उस विभाग में,
कपकपी सी आती है
सुर अटक सा जाता है,
वचन छिन्न-भिन्न हो जाते हैं।
किसे कहूँ ईमानदार
सूझता नहीं,
किसे कहूँ अच्छा,
मुँह खुलता नहीं।
पर हर श्रद्धांजलि में
हर मरा व्यक्ति ईमानदार होता है।
***
*** महेश रौतेला

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बुरांश:

इच्छा थी,ईर्ष्या थी,स्पर्धा थी
बीच में बुरांश खिला था,
प्यार था,प्रयास था, प्रभाव था
साथ में बुरांश मिला था।
हमारे जंगलों में पला-बढ़ा
जंगल का उबाल था,
जंगल पर रोने के लिए
यह पहाड़ के साथ था।
उसने जब कहा "बुरांश"
मन लाल हो गया था,
स्पर्श था,साथ था,स्नेह था
पास में बुरांश खिला था।

*** महेश रौतेला

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हम लड़ना जानते हैं

हम लड़ना जानते हैं
धरती से, पेड़ों से,
पहाड़ों से, पर्यावरण से,
नदों से, नदियों से।
युद्ध करना जानते हैं
अच्छे विचारों से,
सभ्यताओं से, सभ्यों से,
संस्कृतियों की परतों से ।
मल्लयुद्ध करते हैं
अन्दर की आत्मा से,
सत्य के प्रश्नों से,
सौन्दर्य की सरलता से ।
हम स्वभाव से आतंक फैला,
बुद्ध को जड़ बनाते हैं।
हमारी क्रान्तियों में,
ठहराव है, बिखराव है।
हम झगड़ना जानते हैं,
एक डर के साथ
एक महाभारत चाहते हैं,
जहाँ धर्म भी हो, अधर्म भी हो।
**********
** महेश रौतेला
२०१५

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पेड़ कट रहे थे
महसूस करने वाले रो रहे थे,
वृक्षारोपण हो रहा था
देखने वाले खुश थे,
पेड़ सूख रहे थे
पीड़ा मिट्टी को हो रही थी।


*** महेश रौतेला

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