मैं तो ऐसा भूलभुलैया
हर पगडण्डी सा मुड़ा हुआ हूँ।
जो गगन खुला हुआ है
उस गगन का तारा हूँ।
उस गाँव का प्रधान बना हूँ
जिस पर गड्डे बहुत बड़े हैं,
उस शहर का मेयर बना हूँ
जिस में खड्डे बहुत खुले हैं।
उस कक्षा का अहं भाग हूँ
जहाँ स्नेह को रचता हूँ,
उस यात्रा का अहं हिस्सा हूँ
जहाँ टूटने पर राह बना हूँ।
मैं पूछने को प्रश्न बना हूँ
किसी याद में शाश्वत रहा हूँ,
किसी नयन में उठा हुआ हूँ
सुर में,लय में मैं रहा हूँ।
** महेश रौतेला