Quotes by Renu Chaurasiya in Bitesapp read free

Renu Chaurasiya

Renu Chaurasiya

@renuchaurasiya.674847


काला कोहरा

मैं एक काला कोहरा हूँ,
न कोई आकार, न कोई रूप,

बस तैरता हुआ अंधेरा,
जो खुद भी अपने को समझ नहीं पाता।

मैं चमकता भी हूँ,
पर मेरी चमक डराती है,

लोग आते हैं मेरे पास
जैसे कोई रहस्य आकर्षित करता है,

फिर ठहरने से पहले ही लौट जाते हैं,
क्योंकि भीतर सिर्फ़ अंधेरा है।

मेरी आँखों से गिरते हैं
गहरे, काले आँसू,

जिन्हें कोई पढ़ नहीं पाता,
जिन्हें कोई समझ नहीं पाता।

कभी-कभी एक रूमाल आता है—
खूबसूरत, कोमल,

मेरे आँसू पोंछने की जिद करता है।
पर मैं उलझ जाता हूँ—

क्या यह सच्चा है,
या बस एक और दिखावा?

इसलिए मैं उसे
या तो दूर धकेल देता हूँ,

या खामोशी में
अपने ही कोहरे में खो जाता हूँ।

मैं एक काला कोहरा हूँ,
जिसकी चमक भी सवाल है,

और जिसका अंधेरा
खुद उसके दिल का जवाब।

चमकता हूँ पर अंधेरा हूँ,
आकर्षित करता हूँ पर खाली हूँ।

जो पास आते हैं, ठहरते नहीं,
और जो आँसू पोंछना चाहते हैं

उन पर भी यक़ीन नहीं।

"मैं चमकता हुआ अंधेरा हूँ,
जिसे कोई थामना नहीं चाहता।"

Read More

ज़िंदगी का बोझ

कंधों पर बोझ रखा है,

पर कदमों में अब थकान है।

सपनों की किताबें कहीं छूट गईं,

बस ज़िम्मेदारियों का गुमान है।

चेहरे पर हँसी ओढ़ ली मैंने,

दिल में दर्द छुपा लिया।

हर रोज़ थोड़ा और टूटी मैं,

पर किसी से कुछ न कहा है।

कभी सोचा था उड़ूँगी खुली हवा में,

ख्व़ाबों की तरह खिलूँगी उजाला बनकर।

मगर अब तो सांसें भी भारी लगती हैं,

जैसे चल रही हूँ अंधेरा निगलकर।


हे ज़िंदगी, तू क्यों इतना कसती है?

क्यों हर रोज़ इम्तहान लेती है?

कभी तो आँचल में सुकून दे,

क्यों हर पल बस दर्द देती है

कंधों पर बोझ रखा है,

पर कदमों में अब जान नहीं है।

हाँ… थकी हू मैं,मगर टूटी नहीं,

दिल के किसीे कोने में अब भी पहचान है।


ज़िंदगी ने जकड़ा है मुझको,

इम्तिहानों से भरी है राहें।

मगर यकीन है,मुझे सुबह आएगी,

ये रात नहीं टिक पाएगी सदा के लिए।

थकान से झुकी है मेरी नज़र,

पर हिम्मत अब भी सीधी खड़ी है।

मैं गिरूँगी, उठूँगी, लड़ूँगी फिर,

क्योंकि मेरी मंज़िल मुझ स भीे बड़ी है।

Read More

टूटा भरोसा

वो यूँ ही नहीं रोई थी,
आँखों में आँसू की नदियाँ तब बह निकलीं,
जब उसका भरोसा अपने ही तोड़ गए,
दिल के आईने को पत्थरों से तोड़ गए।

उसका जन्म उस घर में हुआ,
जहाँ परंपराओं की दीवारें ऊँची थीं,
जहाँ उसकी हँसी भी क़ैद थी,
और सपनों की परछाइयाँ भी दूजी थीं।

वो हर बार सहती रही,
सहनशीलता की चुप चादर ओढ़े रही,
पर जिस दिन अपने ही चेहरे बदल गए,
उसके भीतर के सारे दीपक बुझ गए।

रोना उसके लिए कमजोरी नहीं था,
वो उसके दिल की चीख थी,
एक टूटा हुआ विश्वास था,
जो आँसुओं की ज़बान बन गया।

अब वो रोकर और मज़बूत हो गई है,
उसके आँसू अब उसकी ताक़त हैं,
क्योंकि टूटकर ही इंसान सँवरता है,
और राख से ही नया जीवन निखरता है।

Read More

रात के सन्नाटों में जब सारी दुनिया सो जाती है,
एक आवाज़ मुझमें धीरे से बोल जाती है।

“कैसी हो?” — मैं खुद से पूछती हूं,
ना जवाब ज़रूरी होता है, ना कोई वजह।

कभी अपनी ही आंखों में झांक लेती हूं,
और सोचती हूं — क्या मैं सच में थक गई हूं?

फिर याद आता है —
थकना बुरा नहीं, रुकना भी गुनाह नहीं,
बस खुद से सच्चा रहना जरूरी है।

जब दुनिया जवाब मांगती है,
मैं खुद से सवाल करती हूं।
जब लोग बदल जाते हैं,
मैं अपने आप में लौट आती हूं।

खुद से की गई बातें,
ना टूटती हैं, ना थकती हैं —
वो ही मेरा सुकून हैं,
वो ही मेरी सबसे प्यारी सखी हैं।
२भीड़ से दूर, खामोशियों में,
मैंने खुद से मिलना सीखा है।
ना शोर की चाह, ना रौशनी का जूनून,
मैंने चुप को अपना शीशा सीखा है।

किताबों की खुशबू, चाय की गर्मी,
इनसे जो मिली, वो दौलत सी थी।
हर लफ्ज़, हर पन्ना, मेरी बात बन गया,
जैसे कोई दुनिया मेरी हालत सी थी।

लोग कहते हैं — 'बोर है', 'अलग है',
मैं मुस्कुराती हूं, क्योंकि सच है।
जो खुद में खो जाए, वही खुदा को पाता है,
और वही असली ज़िंदगी का रब है।

मुझे ना किसी मंज़िल की फिक्र,
ना किसी मेले की तलाश है।
मैं खुद ही सवाल हूं, खुद ही जवाब,
मेरे अंदर ही पूरी किताब है।

Read More