#गीताज्ञान
तोड़ दो ये भ्रम अर्जुन की सब तुम्हारे है,
आज गांडीव हाथ धरे तुझे ही निहारे है।
अपने होकर अपनत्व न तूने पाया है,
क्या अपनों का धर्म अपनोंने निभाया है!
फिर क्यों उनके प्राण प्राण से प्यारे है!
तोड़ दो ये भ्रम अर्जुन की सब तुम्हारे है।
खड़े है जो सामने तेरा काल बनकर,
हाथों में अपने नितनये आयुध धरकर,
न है सखा न गुरु और न तेरे ये सहारे है,
तोड़ दो ये भ्रम अर्जुन की सब तुम्हारे है।
अब तो युद्ध बस एक आखरी अंजाम है,
चढ़ा है जो उतारना उनका ये अभिमान है,
धर्म न हारा कभी न धर्मवीर यहाँ हारे है,
तोड़ दो ये भ्रम अर्जुन की सब तुम्हारे है।
साथ हूँ तेरे मैं हर क्षण तू काहे गभराता है,
पापियों को आखिर उसका पाप मिटाता है,
धर्म निभा तूँ अपना धर्म के पथ निराले है,
तोड़ दो ये भ्रम अर्जुन की सब तुम्हारे है।।