#इक उधार सी ज़िन्दगी...
तुझको खो कर बचा ही किया था, ज़िन्दगी में..! खोने के लिए..
बस इक उधार सी ज़िन्दगी जी रहा था..
तेरी यादों का कर्ज़ लिए..
माफ़ करना तेरी यादों को हम यूँ ही बुला लेते हैं जिससे कि यह साँसें चल सकें..
शायद! तू भूल गयी जो इक रोज़ तूने कहा था कि जब ज़िन्दगी वीरानियों के दौर से गुज़रने लगे..
तो....!
तो मुझे याद कर लेना..!
माफ़ करना आज फिर तुझे उतना ही याद किया,
उतना ही तेरा नाम लिया..
जितना हर पल, हर घड़ी, हर वक़्त मैं तुझे याद किया करता था...
तुझे याद है ना..!
जब आसमान में कोई तारा टूटता था तू जल्दी से आँखें बंद करके दुआ मांगती थी और मुझे भी ऐसा करने को कहती थी...
पर माफ़ जरूर करना आज मैंने टूटते तारे को देखकर कोई दुआ नहीं माँगी...
क्यूँकि आज मैं तन्हा था!
वही खुला आसमान,
वही चमकते सितारे और वही मैं था..
पर तुम नहीं थी....!
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लेखकः हैदर अली ख़ान
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