तात्विक विचारधारा...
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन "।
अर्थात् कर्म करना मनुष्य के हाथ में हैं उसका फल नहीं। कर्म दो प्रकार के हैं ।(१) सकाम कर्म (२)निष्काम कर्म ।सकाम कर्म मनुष्य को संसार चक्र-संसार भंवर मे डालता है। निष्काम कर्म मनुष्य को बंधनों से मुक्ति दिलाता है ।