दरियादिली की थी बुरी आदत में मर गए।
हम थे शरीफ अपनी शराफत में मर गए।।
दुनिया में बुराई ने , किया है कहां भला।
कितने ही लोग करके, अदाबत में मर गए।।
नकली खरीद लाए, सोच माल है असली।
हम सच बताएं सिर्फ किफायत में मर गए।।
दुनिया में आए हो, गुरूर कीजिए नहीं।
आकर यहां पे लोग, हिमाकत में मर गए।।
उनका भी नाम निकला हनी ट्रेप में शामिल।
बेदाग रहे लोग, सियासत में मर गए।।
सदियां गुज़र गईं हैं, न आया है फैसला।
इंसाफ मांगते थे, अदालत में मर गए।।
समझे थे बावफा जिन्हें ,वो बेवफा हुए ।
रावत से लोग यार, मोहब्बत में मर गए।।
रचनाकार
भरत सिंह रावत भोपाल
7999473420
9993685955