ममता यह क्या मां तुम अपने कपड़े खुद धो रही हो ! तुम्हें तो इतना तेज बुखार है फिर भी। भाई भाभी कहां है?" "दोनों बाहर गए हुए हैं। किसको मेरी चिंता है। सब अपने मजे कर रहे हैं।" "रमन कुछ कहता नहीं भाभी को!" "क्या कहूं! मुझे नहीं पता था। मेरा बेटा शादी होते ही ऐसे नजरें बदल लेगा। पर तू आज यहां कैसे! क्या उसने तुझे खबर दी थी, मेरे बीमार होने की?" "अरे नहीं! उसने तुम्हारी बीमारी के लिए नहीं, अपने ही काम से बुलाया है।" "कैसा काम?" "कह रहा था नौकरी छूट गई है। अपना कुछ काम करने की सोच रहा था। इसलिए उसने कहा कि अगर मैं कुछ मदद कर सकूं तो। घर पर उसके जीजा जी से बात की तो उन्होंने कुछ रुपए देने के लिए हां कर दी है। वही देने आई थी। लेकिन यहां तो हाल ही दूसरे हैं। खुद मजे कर रहा है और तुम्हें इस बीमारी की हालत में काम पर लगा रखा है। अब उसे एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगी। चाहे भूखा ही क्यों ना मरे ।भाई है तो क्या हुआ। जो मां का ना हो सका, वह बहन का क्या होगा। अपनी बेटी की बातें सुन, उसकी मां जो अब तक बेटे पर बहुत गुस्सा थी। एकदम से नरम होते हुए बोली "ना ना ऐसा मत कह बेटा। भाई है वो तेरा। जब से उसका काम छूटा है परेशान हैं। बहुत सेवा करता है वह मेरी और घूमने नहीं दवाई लेने गए हैं वे दोनों मेरी। वह तो मैं खाली बैठी थी इसलिए कपड़े धोने लगी। तू गुस्सा थूक दे और उसकी मदद कर दे। छोटा भाई है तेरा।" बेटी समझ गई थी कि मां झूठ बोल रही है। लेकिन वह खुद एक मां थी। इसलिए इस झूठ के पीछे छिपी उसकी ममता व बेटे के प्रति चिंता के भाव को अच्छे से पहचान गयी थी। सरोज ✍️