हे स्त्री! यह #विभिन्नता कहां से पाई है?
किसी की मां ,किसी की बहन
तो किसी की #भार्या बन आई है।
प्रेयसी तो निराला ही रूप तेरा
मुझ जैसे पतित की धड़कनौ में समाई है।

हे स्त्री! यह #विभिन्नता कहां से पाई है?
किसी की शारदा, किसी की कमला
तो किसी की दुर्गारानी बन आई है।
#अर्धनारीश्वर तो विरला ही रूप तेरा
विकराल सृष्टि भी #त्रिनेत्र में समाई है।

#विभिन्न

Hindi Poem by Rajesh Mewade : 111396681

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now