हर अंधेरा या उजाला वक्त
यों तो बीत जाता है,
कुछ खुशी के, कुछ गमों के रंग भरने
रोज आता है,
न्याय के, अन्याय के सिक्के चला कर
मूल्यमानों को कहीं सूली चढ़ा कर
नित नये कल की उमंगों को सजा कर
डूब जाता है।
वक्त कहता है--
गलत होना, बहुत ज्यादा गलत है।
वक्त कलियों की दुआ है,
वक्त किरणों की शपथ है।
वक्त कहता है--
सभी का कल बड़ा मोहक सुखी है,
किसलिए अंतर्मुखी हो?
किसलिए यह बेरुखी है?
वक्त युग के अश्रु चुनता है
वक्त सब का दर्द सुनता है
वक्त सचमुच क्रांतदर्शी मर्मस्पर्शी है
वक्त कितना सख्त लेकिन पारदर्शी है!