अंज़ाम..!!

वो महफ़िल में आए कुछ इस तरह
जैसे अंधेरे में जल उठे हों चिराग़ कई

देखीं जो झुकती हुई निगाहें उनकी
यूं धड़का जोर से नादां दिल ये मेरा

दोनों में भ्रम कायम है बस यही काफ़ी है
हमने उनसे कहा नहीं, उन्होंने हमसे पूछा नहीं

मन तो किया कि उनकी बंदगी कर लूं
लेकिन होंठों का बंधन खुल ना सका

इज़हार-ए-इश़्क हो ना सका, नतीजा ये
हुआ कि अब ये आंखें दिन रात बरसतीं हैं

उसके बाद तो ये आलम रहा कि जिन्दा रहते
हुए ,ना वो जिन्दा रहें और ना हम जिन्दा हैं...!!

SAROJ VERMA__

Hindi Shayri by Saroj Verma : 111491168

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now