इस घर में शोर बहुत है,
ज़ुल्म और ज़ोर बहुत है।
सोख लेती हैं आंसुओं की धार,
ये चारदीवारियां,
शायद..… इसमें तपन बहुत है।
ना पहुंचे दर्द और तड़प पीहर तक,
सीने में दफनाने के यत्न बहुत है।
जिन्दा रखीं है मजबूरियां,
क्योंकि..... नसीब कमजोर बहुत है।
-Suneeta Gond