अब उनसे क्या कहना।।
की ओठों पर, अब भी लाली लगाती हो कि नहीं।
अब उनसे क्या कहना।।
की आंखों में काजल लगाती हो कि नहीं।
अब उनसे क्या कहना।।
की शाम होते छत पे जाती हो कि नहीं।
अब उनसे क्या कहना।।
की आईने के सामने मुस्कुराती हो कि नहीं।
अब उनसे क्या कहना।।
शाम मेरी याद दिलाती है कि नहीं।
अब उनसे क्या कहना।।
की तुलसी के नीचे दिया जलाती हो कि नहीं।
अब उनसे क्या कहना।।
गमलों को पानी पिलाती हो कि नहीं।
अब उनसे क्या कहना।।
सावन के मौसम में खुद को झुलाती हो कि नहीं।
अब उनसे क्या कहना।।

-रामानुज दरिया

Hindi Poem by रामानुज दरिया : 111763828

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