ज़िंदगी चल रही हैं इस कदर की
हम अपने ही खयालों में ढलते ही जा रहें
क्या बताऊं मैं किसी को अपनी उलझन
जब की हमें पता है
हम किसीके समझ मैं नहीं आने वाले।

-Swapnpriya

Hindi Shayri by Swapnpriya : 111767530

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now