कठिन डगर चल पड़ा मगर,
-है पता नहीं मन राहों का।।
जंजाल भरे जाने कितने,
माँ-बाप स्वजन आदि जितने...
दिया छोड़ सहारा बाहों का।
भूली-बिसरीं थीं कुछ यादें,
जिन्हें सूला दिया उन वादों का।
कर मजबूत इरादे सभी अपने,
सुन शोर सभी उन्मादों का।
तज कर के सभी प्रमादों को,
चल पड़ा मुसाफिर मेले में,...
-है पता नहीं मन राहों का।।
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