मैं   लिखूं   क्या   तेरे   बगैर
कुछ  जंचता  नहीं  तेरे बगैर।

ख़्वाब  आते  नहीं  तेरे   बगैर
चेहरा  हंसता  नहीं  तेरे  बगैर।

साँसें  रुकी रुकी सी लगती हैं
दिल धड़कता  नहीं  तेरे बगैर।

मोती पलकों  पर  जमीं  सी है
पलकें झपकती नहीं तेरे बगैर।

सूना - सूना इश्क़-ए-अम्बर  है
रौनक़  आती  नहीं  तेरे  बगैर।

यूं  तो  मज़ा  बहुत  आ  रहा है
पर  गुमशुदा  हूँ  मैं  तेरे   बगैर।

-रामानुज दरिया

Hindi Shayri by रामानुज दरिया : 111778302

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