कोन कहता है के तुझसे खता नहीं है.... मगर उस खता को बार बार दोहराना भी क्या खता नहीं है? जा माफ़ किया नहीं देता कोई सजा... मगर सजा ना देपाना भी क्या सजा नहीं है?.. जो तेरा मज़हब है वही मेरा मज़हब है... मगर क्या इन्सानियत भी तेरा मज़हब नहीं है?

Hindi Shayri by ananta desai : 111782345

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