मैं और मेरे अह्सास

खुदा से दुआओं में कुछ कमी सी है l
इसलिए फ़िर आँखों में नमी सी है ll

क़ायनात मे कोहराम सा छाया है l
मिजाज भारी होने से गर्मी सी है ll

जूठा गुस्सा भरके बेठे महफिल मे l
सूरमे वाली आँखें शबनमी सी है ll

कुछ ज़्यादा ही ख़ास तौर मे है l
जुबा और चहेरे पे बेशर्मी सी है ll

इश्क ने निकम्मा बना दिया है l
अब मुहब्बत मे नाफ़रमी सी है ll
१४-५-२०२२

सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह

Hindi Poem by Darshita Babubhai Shah : 111805517

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