हैरत है..........................



हैरत है उसे भी,

कि उसकी बात करते है पर उससे बात नहीं करते,

मांगते फिरते है दर-ब-दर पर उससे नहीं मांगते,

विश्वास का धागा लोगों से गहरा बंध चुका है,

जिसके सामने सब कुछ देने वाला,

अब हमें दिखना बंद हो गया है............................



हैरत है उसे भी,

कि उसे मानने वाले चीख - चीख कर अपनी आस्था जता रहे है,

ईश्वर किसका बड़ा है अब उस पर बहस किए जा रहे है,

मैनें कब सोचा था कि मैं एक इतनों के लिए अलग - अलग पहचान रखता हूँ,

किससे कहूँ कि दिल की बात मैं जहां देखों वहीं पर मैं कटखरे में खड़ा हूँ..............................





स्वरचित

राशी शर्मा

Hindi Poem by rashi sharma : 111835073

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now