में और मेरी चाय
जैसे बैठु एकलदण्ड आ जाए मेरे हाथों में
कुछ न बोलकर भी बहोत कहती है मेरी चाय
भीतर कितना भी हो गरमागरम उधम किन्तु बनकर भाप हो जाना है शीत
बैठती हुं साथ उसके समय का कहा रहता है भान
मेरे हर मिजाज का है वो हिस्सा
मेरे तन्हाई का साथी है मेरी चाय
-Shree...Ripal Vyas