वो काम करने वाली बुढ़िया
जो खुद मांग के खाती है
विदाई में उस लड़की को
कुछ पैसे देके अपना धर्म निभाती है
दाल चावल से अपना प्रेम सौंप कर
आशीर्वाद देकर हलका सा मुस्काती है
तन पे फटी हुई साड़ी है
अपना प्यार वो बुढ़िया सौंप जाती है

✍️ sakshi

Hindi Poem by Sakshi : 111861148

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