मैंने सर्वस्व मिटाया है !!!
हर मोह को त्याग
हर रंग को छोड़
मैंने श्वेत कपास अपनाया है ।
तेरे निशप्राण होते ही
मैंने हर ओर अंधकार
पाया है ।
इस रूदन के बीच
तेरी जाती अर्थी पर
मैंने अपनी मांग कि लालिमा
को मिटाया है ।
तेरे आखरी श्रंगार पर मैंने
अपना श्रंगार लुटाया है ।
गंगा कि कल कल बहती धारा के आगे
तेरी जलती चिता पर
मैंने अपने सुख को भस्म किया है
तेरा अस्तित्व बाहाकर मैंने
अपने सर्वस्व मिटाया है ।
मैंने अपना सर्वस्व मिटाया है...!!