खिली कली और तेरा स्पर्श
खिलती कली थी, नाज़ुक सी, हसीं,
ओस की बूँदों में भीगी हुई कहीं।
हवा के झोंके संग लहराई,
तेरे आने की आहट जब आई।
सूरज की किरणें छूने लगीं,
पर तेरे स्पर्श से ही महक उठीं।
हौले से तेरा हाथ जो आया,
उसकी पंखुड़ियों ने श्रृंगार पाया।
तेरी उँगलियों की नरमाई में,
थोड़ी लजीली, थोड़ी सहमी,
जैसे पहली बार इश्क़ हुआ हो,
और दुनिया थम गई हो कहीं।
तेरी गर्म साँसों की सरगम में,
वो मदहोश सी झूम गई,
तेरी बाहों की छाँव पाकर,
अपने हर एहसास को बुन गई।
अब हर सुबह तेरा इंतज़ार करे,
ओस की बूँदों में तेरा प्यार भरे,
तेरे बिना अधूरी सी लगे,
खिली कली भी सूनी लगे।