Hindi Quote in Poem by Fazal Esaf

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इंतज़ार


वो लम्हा... जब तेरे क़दमों की आहट
मिट्टी की साँसों से टकराई थी,
मैंने वक़्त की चुप दीवारों पर
तेरा नाम उकेरा था — सांसों से।

चाँदनी ने मेरी चुनरी ओढ़ ली,
और तारे मेरी आँखों में उतर आए,
पर तू...
जैसे वादा करके भी
ख़्वाबों की गलियों में ग़ुम हो गया।

मैंने तेरे नाम के अक्षर
हर शाम की दहलीज़ पर रखे,
कि शायद सुबह
तेरे हाथों की रौशनी उन्हें छू जाए।

हर मौसम तुझसे कुछ कह कर गया,
कुछ रूठ कर, कुछ मुस्कुरा कर,
पर तू नहीं आया —
जैसे इंतज़ार भी थक कर
किसी कोने में सो गया हो।

अब बस तेरी ख़ुशबू रह गई है
इस पुरानी रज़ाई में,
जिसे मैं हर रात सीने से लगाती हूँ —
कि तू लौटे,
और मैं फिर से
इंतज़ार करना सीख लूं।

— Fazal Esaf

Hindi Poem by Fazal Esaf : 111977336

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