जब पुरुष के बस में कुछ नही होता खुद को हरते हुए देखता है,
तो सबसे पहले बार वो जिस पर करता है
वो औरत का चरित्र होता है।
वो न्यायाधिपति बनकर
स्त्री को बार-बार दोषी ठहराता हैं,
सदियो से ये ही रीत तो चली आई हैं
भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम
पर माता सीता की पीड़ा को कब समझ पाये,
माँ सीता पवित्र थी ये समस्त जगत को पता था
रावण को छुने ना दिया माता ने फिर भी सवाल उठाये,
ली गई माता की अग्निपरीक्षा
जलती हुई ज्वाला से निकली थी वो शुद्ध,
ना हुआ संतोष तो भरी सभा में किया गया माता को अपमानित
फिर भी उठे थे माता के चरित्र पर सवाल
माता को दिया गया वनवास,
क्या हर युग में यहीं होगा हाल
स्त्री का चरित्र बनेगा एक सवाल
समाज हर बार औरत को ही कठघरे में क्यों खडा करता हैं।