प्रेम तो प्रेम - पत्र के ज़माने में होता था, जब पत्र का बेसब्री से इंतज़ार रहता था । वह प्रेम इंस्टेंट नहीं था, गहरा था - पत्र लिखने में देर, जवाब आने में देर, प्रेम पाने में देर ।
आजकल इंस्टेंट ब्लू टिक में प्रेम खोजने वाले भला प्रेम के धैर्य और विश्वास को क्या समझेंगे !
- उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’