*Dream*
मैंने उसे विदा किया था,
पर शायद दिल ने नहीं।
मौन का अर्पण अधूरा था,
कुछ अश्रु, कुछ मौन, और अपूर्ण स्पर्श।
मैंने दूसरों को मर्यादा सिखाई,
पर खुद की पीड़ा को न समझ पाई।
फिर वो लौटा…
एक और बार बिछड़ने,
शायद ये अंतिम बार हो।
इस बार,
मैं पूर्ण समर्पण करना चाहती हूँ —
रूह का उपहार
शांति से भरा अंतिम मौन,
एक सम्पूर्ण विदा।
_Mohiniwrites