ये शाम;
बड़ी निराली है...
कुछ धुंधली है,
कुछ काली है....
कुछ स्याह लगे से पन्नों सी,
कुछ उजली; कुछ मतवाली है....
ये शाम;
बड़ी निराली है....
अगर शहर के साथ चलो तुम,
टिम-टिम तारों वाली है....
अगर गाँव का; रुख कर लो तुम,
दिल दहलाने वाली है....
आज भी बीहड़, जर्ज़र भूमि,
बुला रही है; आ तो जाओ....
मत छोड़ो अपनों की धरती....
उसको जगमग कर दिखलाओ।।