“तुम किसी का मोल समझो या न समझो, पर अपना मोल ज़रूर समझ लेना…”
यही जीवन की सबसे बड़ी समझ है।
दुनिया हमें कई बार नज़रअंदाज़ करती है, हमारी क़ीमत आंकने में गलती करती है,
पर उसका मतलब ये नहीं कि हमारी अहमियत कम हो जाती है।
जो व्यक्ति खुद की क़ीमत समझता है, वही जीवन में सच्चा आत्मविश्वास रख पाता है।
जीवन बेहतर तभी बनता है, जब इसे जीने वाला खुद बेहतर बनना चाहता हो।
दूसरों की सोच, उनके रवैये या उनके शब्दों पर हमारा जीवन आधारित नहीं होना चाहिए।
असल बदलाव तब आता है जब हम अपने भीतर झाँकते हैं,
अपने भीतर की कमज़ोरियों को स्वीकारते हैं और रोज़ थोड़ा बेहतर बनने की कोशिश करते हैं।
इसलिए किसी के व्यवहार से टूटो मत,
खुद को जानो, पहचानो और अपने अंदर के मूल्य को अपनाओ।
क्योंकि तुम्हारा आत्मसम्मान ही तुम्हारी असली पूँजी है —
और यही पूँजी तुम्हें जीवन की हर चुनौती में खड़ा रखेगी।
— धीरेंद्र सिंह बिष्ट
लेखक: “मन की हार, ज़िंदगी की जीत”