“तुम्हारा वजूद तुम्हारी कोशिशों से है — किसी और की उम्मीद तुम्हें तोड़ सकती है।”
— धीरेन्द्र सिंह बिष्ट, लेखक: ‘वो आख़िरी पन्ना’
कई बार हम दूसरों की उम्मीदों का बोझ उठाते-उठाते खुद से दूर हो जाते हैं। किसी और के नजरिए से खुद को परखना, अपने होने की कीमत कम कर देना जैसा है। लेकिन सच यही है — तुम्हारा वजूद उन्हीं कोशिशों से बना है जो तुमने बिना शोर किए की हैं। वो सुबहें जब कोई जागा नहीं था, पर तुम खड़े थे। वो फैसले जो आसान नहीं थे, पर तुमने लिए।
दूसरे क्या सोचते हैं, क्या चाहते हैं — ये सब तुम्हारे आत्मसम्मान और आत्मविश्वास को परिभाषित नहीं कर सकते। उनकी उम्मीदें अगर तुम्हें तोड़ रही हैं, तो शायद वक़्त आ गया है अपनी कोशिशों पर भरोसा करने का।
क्योंकि अंत में, वही लोग पहचान पाते हैं जो खुद की पहचान बनाते हैं।
तुम वही हो — जितनी मेहनत तुमने की है, जितनी लड़ाइयाँ तुमने लड़ी हैं।
और यही वजूद तुम्हारा सबसे बड़ा सच है।
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