English Quote in Religious by Ex Muslim Suhana

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★.. चैप्टर– 02– मुहम्मद का व्यक्तिगत जीवन

मुहम्मद के बारे में हजारों की संख्या में छोटे-छोटे किस्से हैं | इनमें से अधिकांश किस्से मनगढ़ंत और झूठ पर आधारित हैं और बहुत सारे किस्से कमजोर व संदेहास्पद | हालांकि कुछ किस्से सही (प्रामाणिक) हदीस (मौखिक रिवायत) माने जाते हैं। सही हदीस पढ़ने पर मुहम्मद के बारे में ठोस तस्वीर सामने आती है, जिससे मुहम्मद के चरित्र और मनोवैज्ञानिक पहलू को समझा जा सकता है।

इससे मुहम्मद का चित्र एक नार्सिसिस्ट (आत्मकेंद्रित अहंकारी यानी स्वार्थी चरित्र) का उभरकर आता है। इस अध्याय में मैं नार्सिसिज्म पर प्रामाणिक स्रोतों के माध्यम से प्रकाश डालूंगा और फिर दिखाने का प्रयास करूंगा कि किस तरह मुहम्मद पर यह चरित्र सटीक बैठता है।

इस विषय पर विद्वानों और अनुसंधानकर्ताओं ने बहुत कम काम किया है। क्योंकि मुसलमान कुरान और मुहम्मद के जीवन के बारे में अनुसंधान करने की अनुमति न स्वयं को देते हैं और न दूसरों को | हालांकि उसके बारे में जो भी लिखा गया है, वो न केवल नार्सिसिज्म की परिभाषा से मिलता है, बल्कि आज मुसलमान दुनियाभर में जो विचित्र कार्य और आचरण कर रहे हैं, उसमें भी इसे देखा जा सकता है। इस तरह किसी व्यक्ति की व्यक्तित्व विकृति उसके अनुयायियों में विरासत के रूप में इस तरह समा गई है कि इस व्यक्ति का पागलपन करोड़ों अनुयायियों में न केवल फैल रहा है, बल्कि उसकी तरह इन्हें भी स्वकेंद्रित, विवेकहीन और खतरनाक बना रहा है।

मुहम्मद के मनोविज्ञान, उसके चरित्र के मूल तत्व क्रूरता और स्थितिजन्य नीति को समझकर जानने का प्रयास करते हैं कि मुसलमान इतने असहिष्णु, हिंसक और पागल क्‍यों हैं 2? वे हमलावर और अत्याचारी होते हुए भी वे खुद को पीड़ित के रूप में क्यों देखते हैं ? नाप्तिप्िज्म क्या है?

द डायग्रोस्टिक एंड स्टेटिस्टिकल मैनुअल आफ मेंटल डिस्ओऑर्डर (डीएसएम) 'नार्सिसिज्म को ऐसी व्यक्तित्व विकृति के रूप में परिभाषित करता है, जो एक प्रकार के आडम्बर, प्रशंसा की भूख और अधिकार के भाव के आसपास घूमता है इससे पीड़ित मनुष्य अक्सर स्वयं को आवश्यकता से अधिक महत्वपूर्ण समझता है और अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करता है, अक्सर कोई न कोई फरमाइश करता है, किसी लायक न होने पर भी अपनी प्रशंसा व सराहना चाहता है।'”

डायग्रोस्टिक एंड स्टेटिस्टिकल मैनुअल (डीएसएम) के तीसरे (980) और चौथे संस्करण (994) और यूरोपियन आईसीडी-409 में इस समस्या को इसी तरह परिभाषित किया गया है:

आडम्बर (कल्पना या व्यवहार में) का व्याप्त प्रारूप, आत्मश्रुघधा अथवा चापलूसी की आवश्यकता और समानुभूति का अभाव, सामान्यतः वयस्कता की अवस्था आने की शुरुआती समय में और विभिन्‍न परिस्थितियों में उपस्थित रहने में | निम्नलिखित में से पांच (या जब कसौटी पर आवश्यक परखें:

महान महसूस करता है और स्वयं को महत्वपूर्ण समझता है (उदाहरण के लिए, अपनी उपलब्धियों को बढ़ाचढ़ाकर पेश करता है, झूठ को भी सच की तरह पेश करने में माहिर है, आनुपातिक उपलब्धि के बिना भी स्वयं को उत्कृष्ट के रूप में मान्यता चाहता है)

असीमित सफलता, नाम, रौब या सबसे ताकतवर होने, अतुलनीय बुद्धिमत्ता (प्रमस्तिष्कीय नार्सिसिस्ट), शारीरिक सौष्ठव या काम क्षमता (दैहिक नार्सिसिस्ट), आदर्श, चिरस्थायी, सबका हृदय जीतने वाले प्यार या करुणा की कल्पना में खोया रहता है।

आश्वस्त रहता है कि वह विशिष्ट है और ऊंचे दर्जे के विशिष्ट व अद्वितीय लोग (संस्थाएं) ही उसकी विशिष्टता समझ सकते हैं, केवल ऐसे ही लोगों से उसका संबंध होना चाहिए, केवल ऐसे ही लोगों से उसे जुड़ना चाहिए।

आवश्यकता से अधिक सराहना, चाटुकारिता, प्रमुखता और रौब चाहता है । ये सब नहीं मिलने पर दूसरों में भय उत्पन्न करना और कुख्यात होना चाहता है। (नार्सिस्टिक सप्लाई ) ।

अधिकारसम्पन्न समझता है | अपने साथ विशेष, अनुकूल वरीयता का व्यवहार चाहता है। अपनी अपेक्षाओं को स्वत: एवं शतप्रतिशत पूरा करने की मांग करता है।

पारस्परिक संबंधों में शोषक होता है। इसका अर्थ है, अपने काम दूसरों से कराना चाहता है।

समानुभूति का अभाव । दूसरों की भावनाओं व जरूरतों को महसूस करने की क्षमता का अभाव होना।

दूसरों से द्वेष रखता है और समझता है कि दूसरे लोग उससे ईर्ष्या करते हैं।

घमंडी होता है, अहंकारपूर्ण व्यवहार करता है । हताशा-निराशा की स्थिति में, या दूसरों द्वारा उसकी बात काटने पर अथवा चुनौती मिलने पर गुस्से क्रोध में आ जाता है ”

मुहम्मद में ये सभी लक्षण थे। अपने विचारों के अतिरिक्त वह अल्लाह का चापलूस पैगम्बर था और पैगम्बरों का प्रतीक चिह्न (5०७)) था। (कुरान.33:40) जिसका मतलब हुआ कि मुहम्मद के बाद अल्लाह किसी और को पैगम्बर नहीं बनाएगा। मुहम्मद स्वयं को खैर-उल-खल्क (ब्रह्मांड में सर्वोत्तम), “उत्कृष्ट मिसाल' मानता था। (कुरान.33:2 ) । वह स्पष्ट रूप से कहता है कि उसका दर्जा अन्य पैगम्बरों से ऊंचा है। (कुरान:2:253 ) । उसने स्वयं के “वरीय' होने (कुरान:7:55) और “दुनिया के लिए रहमत' (कुरान:2:407) के रूप में भेजे जाने का दावा किया। उसने दावा किया कि उसे 'प्रशस्त चौकी' पर जगह दी गई है और किसी अन्य को यह स्थान नहीं मिलेगा: अल्लाह के सिंहासन के बगल में दाहिनी ओर स्थित यह 'मध्यस्थ ' की चौकी है। (कुरान.7:79) । अन्य शब्दों में वह ऐसा व्यक्ति होगा, जो अल्लाह को सलाह देगा कि किसे जन्नत और किसे जहन्नुम भेजना है। अपने इस ऊंचे स्थान को लेकर मुहम्मद के कुछ ऐसे अहंकारोन्मादी दावे हैं, जो कुरान में दिए गए हैं।

नीचे लिखी दो आयतें मुहम्मद द्वारा केवल खुद को महत्व देने और आडम्बर को बयान करती हैं:

इसमें भी शक नहीं कि अल्लाह और उसके फरिश्ते पैगम्बर (मुहम्मद) पर दुआएं व रहमत (हमेशा) भेजते हैं। ऐ ईमानवालो ! तुम भी पैगम्बर के गुणगान करो और दुआएं दो। (कुरान, 33:56)

(मुसलमानो ) ! तुम लोग अल्लाह और उसके रसूल (मुहम्मद) पर ईमान लाओ और उसकी मदद करो और उसको बड़ा समझो और सुबह और शाम उसी की तस्बीह करो (कुरान. 48:9) |

मुहम्मद अपने आप पर इतना आत्ममुग्ध था कि उसने अपनी कठपुतली अल्लाह के मुंह से कहलवाया:

बेशक रसूल, तुम्हारे अख्लाक़ (चरित्र) बड़े आला दर्जे के हैं। (कुरान. 68:4)

तुम्हें (ईमान व हिदायत का) रौशन चिरागू बनाकर भेजा है। (कुरान. 33:46)

इब्ने-साद मुहम्मद के हवाले से कहता है:
अल्लाह ने दुनियाभर में अरब को चुना। अरबियों में उसने किनाना को चुना। किनाना में से भी कुरैश कबीले (मुहम्मद की जनजाति) को चुना। कुरैशों में से बनी हाशिम कुनबे को चुना और इस कुनबे से मुझे चुना ।”

नीचे हदीसों में मुहम्मद द्वारा अपने बारे में किए गए कुछ दावे दिए गए हैं:

- अल्लाह ने कायनात में जो चीज सबसे पहले रची, वह थी मेरी रूह।।“

- अल्लाह की बनाई हुई सभी चीजों में पहली चीज थी मेरा दिमाग”

- मैं अल्लाह से हूं और मुसलमान मुझसे हैं

- जिस तरह अल्लाह ने मुझे महान बनाया, उसी तरह उसने मुझे अख्लाक़ बख्शा [”

- ओ मुहम्मद, यदि यह दुनिया तुम्हारे लिए न होती तो मैं कायनात नहीं बनाता ।*

जरा मुहम्मद के इन शब्दों को जीसस द्वारा कही गई बातों से तुलना कीजिए । किसी ने जीसस को * श्रेष्ट स्वामी ' कहकर पुकारा तो वे बोले, “तुमने मुझे श्रेष्ठ क्यों कहा ? ईश्वर के अलावा कोई और श्रेष्ठ नहीं है ।?? एक मनोविकृत नार्सिसिस्ट ही वास्तविकता से दूर होकर यह दावा कर सकता है कि ब्रह्मांड उसके कारण बनाया गया है।

नार्सिसिस्ट जब भी अपने बारे में डींगें हांकता है तो वह विशिष्ट रूप से विनम्र होने का ढोंग करता है। अबू सईद अल-खुद्री ने लिखा है कि रसूल बोले: “मैं सम्पूर्ण मानव का नेता हूं और यह मैं बिना किसी गुरूर के कह रहा हूं।'

अल-तिरमिजी बताता है:

“रसूल ने कहा: “मैंने तुम्हारी बातें सुनीं और तुमने जो भी कहा, वो सच है। मैं खुद अल्लाह का प्यारा (हबीबुल्लाह) हूं और इस बात को कहने में मुझे कोई गुरूर नहीं है। कयामत के दिन मैं यशपताका (लिवा उलहम्द) लेकर आगे चलूंगा। मैं पहली इबादत करने वाला हूं और पहला ऐसा इंसान हूं, जिसकी इबादत अल्लाह ने कबूल की है| में ही वह पहला इंसान हूं, जो जन्नत के दरवाजे पर दस्तक देगा। अल्लाह मेरे लिए दरवाजा खोलेगा, फिर मैं अपनी कौम के लोगों के साथ जन्नत में प्रवेश करूंगा। मैं ही दुनिया का सबसे सम्मानित व्यक्ति हूं और मैं ही वह पहला और आखिरी व्यक्ति हूं, जो दुनिया में सबसे अधिक इज्जतदार है| ये सब मैं बिना किसी गुरूर के कह रहा हू । १700

नार्सिसिस्ट आत्मविश्वास से भरा हुआ और निपुण दिखता है । जबकि सच्चाई यह है कि ऐसा व्यक्ति (मनोविकृत नार्सिसिस्ट अधिकांशत: पुरुष होते हैं) आत्मसम्मान की कमी की समस्या से जूझ रहा होता है, और उसे अपनी नार्सिस्टिक भूख शांत करने के लिए दूसरों से अपनी वाहवाही और चापलूसी कराने की आवश्यकता पड़ती है।

डॉ. सैम वैकनिन मैलिग्रैंट सैल्फ-लव'” नामक पुस्तक के लेखक हैं | वो इस विषय के विशेषज्ञ माने जाते हैं। वो नार्सिसिस्ट के मस्तिष्क को समझते हैं और परिभाषित करते हैं | वैकनिन वर्णन करते हैं:

प्रत्येक व्यक्ति नार्सिसिस्ट होता है, कोई कम तो कोई अधिक। यह एक स्वस्थ परिघटना होती है। यह उत्तरजीविता में मददगार होती है। पर स्वस्थ नार्सिसिज्म और विकृत नार्सिसिज्म में फर्क होता है । विकृत नार्सिसिज्म की विशेषता यह होती है कि इससे पीड़ित इंसान में समानुभूति का पूर्णतः: अभाव होता है। ऐसा नार्सिसिस्ट दूसरों को वस्तु समझकर उनका शोषण करने की मानसिकता रखता है। वह दूसरों को अपनी सनक पूरी करने का साधन (नार्सिस्टिक सप्लाई ) बनाता है। वह स्वयं को विशिष्ट आदर व सम्मान प्राप्त करने का अधिकारी मानता है, क्योंकि ऐसा इंसान अपने भीतर कपोल-कल्पित आडम्बर पाले रहता है। विकृत नार्सिसिस्ट आत्म-भिन्ञ नहीं होता है। उसकी अनुभूति और भावनाएं विकृत होती हैं | ऐसा इंसान 'अस्पृश्यता', भावनात्मक प्रतिरोध और अपराजेयता का बोध रखते हुए स्वयं से भी और दूसरों से भी झूठ बोलता है। नार्सिसिस्ट के लिए हर चीज जीवन से बड़ी होती है। वह जितना विनप्र होता है, उतना ही आक्रामक भी | उसके वादे विचित्र, उसकी आलोचना हिंसक व अनिष्टसूचक, और उसकी उदारता मूर्खतापूर्ण होती है। नार्सिसिस्ट छद्म रूप धारण करने में माहिर होता है। वह दिलकश, प्रतिभाशाली अभिनेता, जादूगर और अपने परिवेश को उंगलियों पर नचाने वाला होता है। पहली मुलाकात में ऐसे व्यक्ति को पहचान पाना बेहद मुश्किल होता है |”

नाप््िप्मिस्ट संप्रदाय

नार्सिसिस्ट को प्रशंसकों की आवश्यकता होती है। वह अपने आसपास काल्पनिक दायरा बनाता है, जहां वह केंद्र बिंदु होता है । वह अपने प्रशंसकों और अनुयायियों को उस दायरे में इकट्ठा करता है, उन्हें पुरस्कृत करता है और अपनी चापलूसी के लिए उनको प्रोत्साहित करता है। जो व्यक्ति उसके इस कृत्रिम दायरे से बाहर होते हैं, उन्हें वह अपना दुश्मन मानता है। वैकनिन लिखते हैं:

नार्सिसिस्ट संप्रदाय के केंद्र में गुरु होता है। अन्य गुरुओं की तरह वह अपने शिष्यों, अपनी पत्नी, बच्चों, परिवार के सदस्यों, दोस्तों व सहकर्मियों से अपनी आज्ञा का सम्पूर्ण अनुपालन चाहता है। वह अनुयायियों से विशिष्ट व्यवहार व सम्मान प्राप्त करना अपना अधिकार मानता है। समझता है कि उसके अनुयायी उसे विशिष्ट समझकर व्यवहार करें और यह सम्मान प्राप्त करना उसका अधिकार है। वह अवज्ञा करने वालों और उससे दूर भागने वालों को दंड देता है। वह अनुशासन, अपनी शिक्षाओं के प्रति निष्ठा और सब पर एक लक्ष्य थोपता है। वास्तव में वह जितना कम निपुण होगा, उतना ही कठोर नियंत्रण और व्यापक ब्रेनवाशिंग करेगा।

विकृत नार्सिसिस्ट का नियंत्रण दुविधा, अनिश्चितता, अस्पष्टता और अपने परिवेश के दुरुपयोग पर आधारित होता है ।» उसकी हर समय बदलती सनक ही किसी बात को सही अथवा गलत, वांछनीय या अवांछनीय अथवा “क्या करना या क्या नहीं करना' को निर्धारित करती है। वही अपने अनुयायियों के अधिकार और सीमाएं तय करता है और जब इच्छा होती है तो इन्हें बदल देता है।

विकृत नार्सिसिस्ट माइक्रो मैनेजर होता है । वह अपने अनुयायियों के छोटे से छोटे कार्य या व्यवहार पर नियंत्रण रखता है| उसकी इच्छाओं और लक्ष्य पर नहीं चलने वाले को वह सख्त सजा देता है और सूचनाओं का दमन करता है। ऐसा नार्सिसिस्ट समर्थकों अथवा अनुयायियों की इच्छाओं या अनिच्छाओं का ध्यान नहीं रखता और न ही उनकी निजता और मर्यादा का सम्मान करता है। वह अपने समर्थकों की इच्छाओं की उपेक्षा करता है और उन्हें अपनी संतुष्टि का साधन या वस्तु मानता है। वह व्यक्तियों और परिस्थितियों दोनों पर अनिवार्य रूप से नियंत्रण करना चाहता है।

वह दूसरों की स्वायतत्ता एवं स्वतंत्रता को अस्वीकार करता है । वह चाहता है कि दोस्त अथवा परिवार के किसी सदस्य से मिलने जैसी मामूली बातों के लिए भी उससे अनुमति ली जाए। धीरे-धीरे वह अनुयायियों को उनके करीबी और प्रिय लोगों से अलग-थलग कर देता है, ताकि ये लोग उसके ऊपर भावनात्मक, यौनिक, वित्तीय व सामाजिक रूप से निर्भर होने को मजबूर हो जाएं।

वह संरक्षक व कृपा बरसाने वाले के रूप में अभिनय करते हुए बर्ताव करता है और अक्सर नसीहत देता रहता है। वह कभी अपने संप्रदाय के सदस्यों की मामूली गलतियों पर बरस पड़ता है तो कभी उनकी प्रतिभा, गुण व कौशल की झूठी तारीफ करने लगता है। उसकी इच्छाएं अव्यवहारिक होती हैं और इसलिए वह बाद में अपने दुर्व्यवहार को वैध करार देने लगता है ।'

मुहम्मद ने बड़ा झूठ गढ़ा कि उसके अनुयायी परम सत्य पर भरोसा करते हैं । खतरनाक बात यह है कि हिटलर के झूठ को सच मानने वालों की तरह ही इस्लाम के अनुयायी भी झूठ को सच मानने के लिए स्वेच्छा से तत्पर रहते हैं ।

पिछले अध्याय में हमने मुहम्मद का परिचय जाना | हमने देखा कि किस तरह उसने अपने अनुयायियों को उनके परिवारों से अलग-थलग कर दिया और उनके निजी जीवन तक पर नियंत्रण कर लिया। दुख इस बात का है कि १400 साल बीतने के बावजूद स्थिति बहुत नहीं बदली है। मुझे तमाम ऐसी हृदय विदारक घटनाएं सुनने को मिली हैं, जिसमें अभिभावकों ने बताया कि उनके पुत्र या पुत्री ने इस्लाम कबूल कर लिया है | मुसलमान इन बच्चों को घेरे रहते हैं और अभिभावकों से न मिलने की सलाह देते हैं।

विकृत नार्मिम्िस्ट का हेतु

विकृत नार्सिसिस्ट जानता है कि अपना प्रत्यक्ष महिमा मंडन कराना उल्टा पड़ सकता है और उसकी स्वीकार्यता खतरे में पड़ सकती है । इसलिए वह इसके बजाय अपने को उदारवादी, त्यागी पुरुष, ई श्वर, राष्ट्र अथवा मानवता की सेवा में रत होने का ढोंग करते हुए पेश करता है । उसके इस मुखौटे के पीछे सोची-समझी चतुराई होती है। ऐसा इंसान अपने अनुयायियों के समक्ष ऐसे महान व प्रतापी उद्देश्य रखता है, जिससे लगे कि वे इसके बिना नहीं रह सकते। वह खुद को क्रांतिकारी, परिवर्तन लाने वाला और आशा की किरण देने वाला नेता मानता है। प्रचार और तिकड़म के जरिए वह उस उद्देश्य को इतना महत्वपूर्ण बना देता है कि जो उस पर भरोसा करते हैं, उन्हें उस उद्देश्य के आगे अपना जीवन गौण लगने लगता है । इसी ब्रेनवाश में अनुयायी मरने और मारने पर उतारू हो जाते हैं। ऐसा नार्सिसिस्ट त्याग और बलिदान जैसी भावनाओं को प्रोत्साहित करता है । फिर इसके बाद वह खुद को इन उद्देश्यों की धुरी के रूप में प्रस्तुत करता है। यह उद्देश्य इसके इर्दगिर्द घूमता है । वह ऐसी तस्वीर पेश करता है, जैसे कि केवल वही उस उद्देश्य को पूरा कर सकता है और अपने अनुयायियों का नेतृत्व कर सकता है । इसलिए ऐसा व्यक्ति अपने समर्थकों के लिए दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत हो जाता है। एक ऐसी शख्सियत जिसके पास उनके मोक्ष व यश-पराक्रम की कुंजी है।

यह उद्देश्य असल में ऐसे नार्सिसिस्ट के निजी अरमानों को पूरा करने का साधन होता है । उदाहरण के रूप में, जोन्स ने गुयाना में उन 900 लोगों का नेतृत्व किया, जिन्होंने सामूहिक आत्महत्या कौ। इस इंसान ने लोगों को सामूहिक आत्महत्या के लिए उकसाते हुए सामाजिक न्याय का हेतु बताया और समर्थक उसे मसीहा मानते थे।

हिटलर ने आर्यों की सर्वोत्कृष्टता का उद्देश्य दिया था। उसने हालांकि अपना प्रत्यक्ष महिमा मंडन नहीं किया, बल्कि जर्मनी की श्रेष्ठता हासिल करने की बात कही । वह निस्संदेह अपरिहार्य प्रेरणाज्नोत था और अपने मकसद का फ्यूहरर था। इसी तरह स्टालिन ने साम्यवाद का उद्देश्य सामने रखा था और जो उसकी बातों से इत्तिफाक नहीं रखता था, उसे वह सर्वहारा के खिलाफ मानता था और कत्ल करवा देता था।

मुहम्मद ने अपने अनुयायियों से स्वयं की इबादत के लिए नहीं कहा। असल में उसने दावा किया कि वह केवल अल्लाह का संदेशवाहक अर्थात पैगम्बर है। फिर उसने होशियारी दिखाते हुए अपने अनुयायियों को कहा कि वे अल्लाह व उसके पैगम्बर के हुक्म को मानें। कुरान की एक आयत में उसने अपने कथित अल्लाह के जरिए कहलवाया:

ऐ रसूल ! तुमसे लोग पूछेंगे जंग से क्या आया और क्या गया ? उनसे कहो कि जंग का अनफ़ाल यानी मालेगनीमत अल्लाह और रसूल के लिए है। अल्लाह के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का अहसास करो। अपने बाहमी (आपसी ) मामलात की इस्लाह (ठीक) करो और अगर तुम सच्चे (ईमानदार) हो तो अल्लाह का और उसके रसूल का हुक्म मानो। (कुरान. 8:4)

चूंकि अल्लाह के लिए अरब के लोगों से ठगे और चुराए गए माल का कोई उपयोग नहीं था, इसलिए ये सारे माल उसके प्रतिनिधि (मुहम्मद) के हो गए। चूंकि कोई भी अल्लाह को न तो देख सकता है और न सुन सकता है, इसलिए सारी कर्तव्यपरायणता मुहम्मद के प्रति थी। मुहम्मद से ही लोगों को डरना चाहिए, क्‍योंकि वह दुनिया के सबसे भयानक ईश्वर का एकमात्र मध्यस्थ था। प्रभुत्व जमाने के लिए अल्लाह के नाम का बहाना मुहम्मद के लिए जरूरी था। क्‍या यह संभव था कि अल्लाह के भय के बिना मुहम्मद के अनुयायी अपनी जिंदगी कुर्बान कर देते, दूसरे लोगों और अपने परिजनों तक की हत्याएं कर देते, उनकी धन-संपत्ति लूट लेते और सबकुछ मुहम्मद को सौंप देते ? यह काल्पनिक अल्लाह और कुछ नहीं, बल्कि मुहम्मद की सनक और अपना प्रभुत्व स्थापित करने का औजार था। विडम्बना यह है कि मुहम्मद हमेशा और किसी को अल्लाह के बराबर नहीं मानने का उपदेश देता रहा और एक तरह से खुद ही अल्लाह का एक ऐसा जोड़ीदार बन बैठा कि उसे व्यवहारिक एवं तार्किक रूप से अल्लाह से अलग रखना असंभव हो गया।

ऐसे नार्सिसिस्टों को अपने अनुयायियों का इस्तेमाल करने के लिए किसी उद्देश्य की आवश्यकता होती है। जर्मनों ने युद्ध की शुरुआत हिटलर के लिए नहीं की थी। इन्होंने युद्ध उस हेतु के लिए शुरू किया था, जिसे हिटलर ने उनके दिमाग में भरा था।

डॉ. सैम वैकनिन लिखते हैं: नार्सिसिस्ट (आत्मपूजक) हर उस चीज का इस्तेमाल करते हैं जो उनकी मनोविकारी सनक पूरी करने में सहायक होता है । यदि ई श्वर, नस्ल, जाति, चर्च, विश्वास, संस्थागत धर्म आदि उनकी नार्सिस्टिक भूख को शांत करें तो वे धर्मपरायण बनने का ढोंग करते हैं और यदि इससे उसका मकसद हल न हो तो वे धर्म छोड़ देंगे।"०

इस्लाम प्रभुत्व जमाने का साधन था। मुहम्मद के बाद मुसलमानों के दूसरे नेताओं ने भी इस्लाम का उपयोग इसी तरह किया। मुसलमान इन नेताओं की स्वार्थ सिद्धि के साधन बन गए।

एक अमरीकी मुसलमान मिर्जा मलकम खान (83-908 ) ने अफगानी मुसलमान जमालुद्दीन अफगानी के साथ मिलकर इस्लामिक पुनर्जागरण (अन-नहज़ा) शुरू किया और उन्होंने एक कुटिल नारा दिया, जिसमें कहा: “मुसलमानों को कुरान की बातें बताइए, वे आपके लिए जान दे देंगे।!०

विकृत नार्मिग्तिस्ट की वश्तीयत

मरते समय भी मुहम्मद ने मुसलमानों से आगे बढ़ने और उसके जिहाद को जारी रखने का आह्वान किया था। चंगेज खान ने भी मरते समय अपने बेटों को ऐसा ही आदेश दिया था। उसने अपने बेटों से कहा कि पूरी दुनिया को अपने कब्जे में लेने की उसकी इच्छा थी, लेकिन अब वह यह नहीं कर पाएगा, इसलिए वे उसके इस सपने को पूरा करें। मुसलमानों की तरह मंगोल भी आतंक फैलाने वाले थे। किसी विकृत नार्सिसिस्ट के लिए फतह ही सबकुछ होता है। ऐसे लोगों के पास दिल नहीं होता है और दूसरों की जिंदगी उनके लिए मायने नहीं रखती।

5 साल की उम्र में हिटलर को अपने बांये हाथ में कुछ अजीब हरकत महसूस हुई | सामान्यतः: वह इसे छिपा लेता था, लेकिन रोग बढ़ गया तो वह दुनिया की नजरों से दूर हो गया । उसे अहसास हो गया कि उसकी मौत करीब है । अब वह अपने संकल्प में और दूढ़ हो गया तथा उसने नए सिरे से हमले और तेज कर दिए, जबकि वह जानता था कि उसकी सांसें बहुत कम बची हैं| विकृत नार्सिसिस्ट अर्थात आत्म-कामी अपने पीछे पूरा साम्राज्य छोड़कर जाना चाहते हैं ।

यह सोचना भूल है कि इस्लाम केवल एक धर्म है। इस्लाम का एक गुप्त पहलू यह है कि इसे उन मुस्लिम विद्वानों व दार्शनिकों द्वारा बाद में रचा गया, जिन्होंने मुहम्मद की बेतुकी बातों की गूढ़ व्याख्या को। मुहम्मद के अनुयायियों ने मजहब को अपनी रुचि के अनुसार ढाला और कालक्रम में इन व्याख्याओं पर प्राचीन होने की मुहर लग गई, जिससे इनकी विश्वसनीयता बन गई।

यदि इस्लाम एक धर्म है तो नाजीवाद, साम्यवाद, शैतानवाद, हैवन्स गेट, पीपुल्स टैम्पल, ब्रांच डेविडियन आदि भी धर्म की श्रेणी में आएंगे। किंतु यदि हम यह मानते हैं कि जीवन को शिक्षित बनाने, मानव के विकास की संभावनाएं बाहर लाने, आत्मोत्थान, आध्यात्मिकता का बीज बोने, सद्भावना बढ़ाने और मानवता को प्रकाशित करने को धर्म कहते हैं तो इस्लाम इस कसौटी पर पूरी तरह विफल होगा। इस पैमाने पर इस्लाम को न तो धर्म की श्रेणी में रखा जा सकता है और न ही इसे इस श्रेणी में रखा जाना चाहिए।

नार्सिम्तिस्‍्ट ईवर बनना चाहते हैं

किसी नार्सिसिस्ट के लिए जो चीज सबसे महत्वपूर्ण होती है, वह है ताकत। वह नाम व सम्मान पाना चाहता है और उपेक्षा बिलकुल नहीं बर्दाश्त कर सकता है । ऐसे लोग मन ही मन अकेला और असुरक्षित भी महसूस करते हैं, इसीलिए वे खुद को क्रांतिकारी नेता, आशा जगाने वाली शख्सियत और महान उद्देश्यों के दूत के रूप में प्रस्तुत करते हैं । उनका उद्देश्य तो बस एक बहाना होता है । ऐसा करके वे समर्थकों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं। ये लोग काल्पनिक ई श्वर और मिथ्या उद्देश्य गढ़ते हैं । जितना ही वे अपने फर्जी ईश्वर को महिमामंडित करते हैं, उतनी ही ताकत उनके पास आती जाती है | मुहम्मद के लिए अल्लाह एक सुविधाजनक औजार था। इस औजार के जरिए वह अपने अनुयायियों पर असीमित प्रभुत्व जमा सकता था और उनकी जिंदगी का मालिक बन सकता था।

केवल एक अल्लाह था, भयानक भी और उदार व रहम करने वाला भी । मुहम्मद उसका एकमात्र प्रतिनिधि था। इस हिकमत से मुहम्मद अल्लाह बन गया | हालांकि दावा किया गया कि अल्लाह का पैगाम मुहम्मद के माध्यम से दुनिया में आता है, पर सच्चाई यह थी कि कोई अल्लाह था ही नहीं, बल्कि यह मुहम्मद और उसकी सनक मात्र थी, जिसे संतुष्ट करना मुसलमानों से अपेक्षित था। वैकनिन इस पहलू को अपने लेख 'फॉर द लव ऑफ गॉडनार्सिसिस्ट एंड रिलीजन' में बखूबी समझूते हैं: ०

नार्सिसिस्ट सदा ई श्वर की तरह होना चाहता है, जो सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सदा आदरणीय, चर्चा में बना रहने वाला और प्रेरणास्नोत हो। ईश्वर नार्सिसिस्ट का उन्मादभरा सपना होता है, उसकी परम आडम्बरपूर्ण कल्पना होती है। लेकिन ईश्वर उसके लिए कई और मायनों में सुविधाजनक होता है।

ऐसा व्यक्ति कभी प्रभावशाली व्यक्तियों की तारीफों के पुल बांधेगा तो कभी उन्हें नीचा दिखाएगा। शुरुआत में वह प्रभावशाली व्यक्तियों का (अक्सर हास्यास्प्रद्‌ तरीके से) अनुकरण करेगा और उनकी हर बात की प्रशंसा करेगा, उनकी हर बात का बचाव करेगा । वह उनके बारे में कहेगा कि वे न तो गलत कर सकते हैं और न ही गलत हो सकते हैं। नार्सिसिस्ट उन शख्सियतों को जीवन से बड़ा, सम्पूर्ण, निर्विकार एवं बुद्धिमान मानेगा। पर ज्यों ही उसकी अव्यवहारिक व हवाहवाई आबकांक्षाएं हिलोर मारेंगी तो वह कुंठित होगा।

इसके बाद वह उन व्यक्तियों की निंदा करना शुरू कर देगा, जिन्हें अब तक अपना आदर्श मानता रहा है। ऐसा व्यक्ति जिन्हें अब तक महान बताता था, उन्हें अब वह सामान्य मनुष्य कहने लगेगा । अब उसकी नजर में वो शख्सियतें बहुत छोटी, कमजोर, गलतियां करने वाली, कायर, मूर्ख और मामूली हो जाती हैं । इस विकार से पीड़ित व्यक्ति तत्वदर्शी ईश्वर से संबंधों को लेकर भी इसी चक्र को अपनाता है। पर अक्सर, मोहभंग या ईश्वर की छवि को लेकर निराशा का भाव पैदा होने के बाद भी वह उसे चाहने और उसके अनुसरण का बहाना करता रहता है । वह इस धोखे को बनाए रखता है क्योंकि ईश्वर से निकटता दिखाने के बहाने वह एक विशेष प्रकार का रौबदाब हासिल करता है।

पुजारी, जनसमूहों के नेता, उपदेशक, धर्मप्रचारक, पंथों के मुखिया, राजनीतिज्ञ और बुद्धिजीवी ईश्वर के साथ अपनी कथित निकटता से विशेषाधिकार प्राप्त करते हैं । धार्मिक सत्ता का सहारा लेकर ऐसा व्यक्ति अपनी परपीड़क काम-वासना और स्त्री के प्रति द्वेषपूर्ण रवैये को खुलकर जायज ठहराने की हैसियत पा जाता है। जिस नार्सिसिस्ट के प्रभुत्व के पीछे धार्मिक सत्ता होती है, वह हमेशा आज्ञाकारी और सवाल न उठाने वाले गुलामों को अपने आसपास रखना चाहता है, ताकि वह उन पर अपनी सनकभरी और शैतानी इच्छाएं थोप सके।

नार्सिसिस्ट व्यक्ति निरापद व विशुद्ध धार्मिक भावनाओं को भी सांप्रदायिक कर्मकांड और विषैली महंतशाही में बदल डालता है। वह ऐसे लोगों को अपना शिकार बनाता है जो भोलेभाले हों । उसके अनुयायी बंधक जैसे हो जाते हैं।

धार्मिक सत्ता ऐसे व्यक्तियों की सनक पूरी करने की माध्यम बन जाती है। उसके सहधर्मी, उसके समूह के सदस्य, उसका गांव, उसका इलाका, उसके श्रोता, सबके सब उसकी पागलपंथी के रास्ते में सहायक बन जाते हैं। लोग उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, उसकी नसीहत पर ध्यान देते हैं, उसके मत को स्वीकार करते हैं, उसके व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हैं, उसकी विशिष्टताओं की सराहना करते हैं, उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं, उसका आदर करते हैं और उसे अपना आदर्श मानते हैं।

इसके अतिरिक्त किसी “बड़ी चीज' का हिस्सा होना नार्सिस्टिक रूप से सुखद होता है। ईश्वर का अंश होने का अर्थ उसके वैभव में डूबने जैसा होता है, उसकी ताकत व आशीर्वाद का अहसास करने जैसा होता है, उसकी संगत में रहने जैसा होता है-ये सब नार्सिस्टिक भूख को शांत करने के अच्छे स्रोत होते हैं | ऐसा व्यक्ति उस ई श्वर की आज्ञा का पालन करते हुए, उसके निर्देशों का अनुसरण करते हुए, उसको प्यार करते हुए, उसके प्रति समर्पित होते हुए, उससे संवाद करते हुए और उसकी आज्ञा का उल्लंघन करते हुए भी, ईश्वर बन जाता है। (ऐसे व्यक्ति के दुश्मन जितने बड़े होते हैं, वह स्वयं को उतना ही महान समझने लगता है।)

नार्सिसिस्ट के जीवन में अन्य बातों की तरह, ईश्वर को भी विपरीत नार्सिसिस्ट में रूपांतरित कर देता है। ईश्वर उसकी अजीबोगरीब हरकतें और इच्छाएं पूरी करने का स्रोत हो जाता है। ऐसा व्यक्ति दूसरों पर नियंत्रण और वशीकरण के लिए उस सर्वशक्तिमान व सर्वव्यापक सत्ता से व्यक्तिगत संबंध बनाता है। इस छद्म संबंध के माध्यम से वह स्थानापन्न रूप से ईश्वर बन जाता है । वह पहले ईश्वर का महिमामंडन करता है और फिर अपने आगे उसका महत्व कम कर देता है, फिर उसे अपशब्द कहने लगता है| यह पारंपरिक नार्सिस्टिक विशेषता है और ईश्वर भी स्वयं को इससे नहीं बचा सकते ।%

नार्सिसिस्ट स्वयं का प्रत्यक्ष प्रचार नहीं करते, बल्कि ये उदारता, दया और करुणा का मुखौटा लगाकर अपने काल्पनिक अल्लाह, विचार, धर्म अथवा उद्देश्य को आगे करते हैं, जबकि वास्तव में यह इन व्यक्तियों का छद्म वेश होता है| ऐसे लोग स्वयं को संदेश वाहक, साधारण व विनम्र और किसी ताकतवर अल्लाह अथवा किसी तथाकथित उद्देश्य के स्वघोषित अग्रदूत के रूप में प्रस्तुत करते हैं । पर इनकी ओर से यह स्पष्ट होता है कि मात्र ये ही उस उद्देश्य को जानते हैं और असंतोष या विरोध बिलकुल सहन नहीं करते।

नार्सिसिस्ट हृदयहीन होते हैं, पर मूर्ख नहीं । ये जानबूम कर आहत करते हैं। ये उस शक्ति बोध का आनंद लेते हैं, जो दूसरों को हानि पहुंचाकर मिलती है। ये ई श्वर होने का आनंद उठाते हैं और यह निर्धारित करते हैं कि किसे पुरस्कार देना है और किसे दंड, किसे जीने का हक है और किसे नहीं।

नार्सिसिज्म उन सभी लक्षणों की व्याख्या करता है, जो मुहम्मद में थे, जैसे कि उसकी क्रूरता, आडम्बर और अतिशयोक्ति भरे झूठे दावे, समर्पण करने वालों को प्रभावित करने तथा अपनी श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए उदारता का ढोंग, आत्म अवबोधन, पागलपन व करिश्माई व्यक्तित्व आदि।

कैसे पैदा होती है नार्मिस्टिक प्रवृत्ति

वास्तविक या आभासी सामाजिक तिरस्कार के चलते जो बच्चा हीनभावना से ग्रस्त हो जाता है, वह अवचेतन ग्रंथि मैकेनिज्म के जरिए इससे लड़ने की कोशिश करता है। अग्रणी मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड एडलर ने इसे श्रेष्ठता मनोग्रंथि (सुपीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स) की संज्ञा दी है। इस ग्रंथि के पनपने पर नार्सिसिस्ट अपनी उपलब्धियों को अतिरंजित तरीके से पेश करने लगता है और जिसे अपने लिए खतरा समझता है, उसे नीचा दिखाने लगता है।

नार्सिस्टिक व्यक्तित्व विकार का जिम्मेदार दोषपूर्ण पालन-पोषण होता है । उदाहरण के लिए, जो अभिभावक बच्चे को अत्यधिक छूट दे देते हैं, उसकी हर मांग पूरी करने लगते हैं, बच्चे की झूठी प्रशंसा करने लगते हैं, उसमें पर्याप्त अनुशासन नहीं डाल पाते हैं, वे बच्चे के चरित्र निर्माण में उसी तरह बाधा पैदा कर रहे होते हैं, जैसे कि मारने-पीटने वाले, उपेक्षा करने वाले अथवा बच्चे के साथ अनाचार करने वाले अभिभावक। परिणाम यह होता है कि बच्चा वयस्कता की अवस्था के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाता है। वह बच्चा जीवन के प्रति अव्यवहारिक दृष्टिकोण के साथ बड़ा होता है। दूसरे शब्दों में कहें तो जो बच्चा पर्याप्त सहारा और प्रोत्साहन नहीं पाता है, उसमें इस तरह के विकार उत्पन्न होने के खतरे होते हैं।

पैदा होने के तुरंत बाद मुहम्मद को पालने के लिए दूसरे परिवार को दे दिया गया। क्‍या उसकी मां की रुचि उसमें कम थी ? क्‍या वजह थी कि वह अपनी मां की कब्र पर प्रार्थना करने नहीं गया, वह भी जब वह 60 साल से ऊपर का हो गया था ? क्‍या उसके मन में अपनी मां को लेकर अभी भी क्षोभ था?

हलीमा मुहम्मद को नहीं लेना चाहती थी, क्योंकि वह एक गरीब विधवा का अनाथ बच्चा था। क्या इसी वजह से हलीमा और उसके परिवार ने मुहम्मद के साथ ऐसा बर्ताव किया ? ऐसे में बच्चे क्रूर हो सकते हैं । उन दिनों अनाथ होना कलंक माना जाता था और तमाम इस्लामिक देशों में आज भी ऐसी ही स्थिति है। मुहम्मद के बचपन का परिवेश आत्मसम्मान जगाने के अनुकूल नहीं था।

स्ट्रैस रेस्पांस सिंड्रोम्स नामक पुस्तक के लेखक जोन मर्डी होर्वित्ज बताते हैं: “जब नार्सिस्टिक को संतुष्टि देने वाली सराहना, विशिष्ट व्यवहार, आ

English Religious by Ex Muslim Suhana : 111986508
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