धीरे-धीरे तुम मेरे हुए"
ना वादे थे, ना कसमें थीं,
ना पहली नज़र की चाहतें थीं।
बस एक चुप्पी थी —
जो तुम्हारे और मेरे बीच दीवार बनी रही।
शुरुआत ज़बरन थी,
मगर हर दिन ने कुछ बदला।
तुमने मेरा नाम नहीं पुकारा,
पर मेरी चाय की मिठास से जुड़ना सीख लिया।
एक दिन… जब तुमने पूछा —
“गुलाब पसंद है या चमेली?”
वो सवाल नहीं था…
वो पहली दरार थी तुम्हारी दीवार में।
फिर एक शाम…
जब बारिश में तुमने मेरा हाथ थामा,
तो जाना —
ये रिश्ता अब सिर्फ़ नाम का नहीं रहा।
तुम्हारी डायरी में माया का नाम था,
पर अब मेरे लिए उसमें एक पन्ना था।
जिसमें लिखा था —
"शहनाज़… अब मेरी अधूरी रूह की पूरी कहानी है।"
अब जब तुम मुस्कुराते हो,
तो वो मुस्कान सिर्फ़ होठों की नहीं होती —
वो मोहब्बत की होती है…
जो वक़्त लेकर पकी, मगर सच्ची निकली।
धीरे-धीरे तुम मेरे हुए…
बिना कहे, बिना जताए।
जिस रिश्ते को निभाया मैंने,
उसे अब तुमने निभाना सीखा —
मोहब्बत से, अपनी मर्ज़ी से।
#Anchahimohabbat
~diksha
#भाग2