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"सावित्रीबाई फुले"
(एक नारी शक्ति की प्रतीक)
वो थीं समाज सुधारक,
ज्ञान की दीप जलाने वाली,
पहली शिक्षिका बनकर आईं,
अंधकार में उजाला फैलाने वाली।
नारी हित में सदा लगी रहीं,
हर बेड़ियों को तोड़ती थीं,
ऊँच-नीच का कर विरोध,
बराबरी की बात करती थीं।
वो पहली थीं जो उठीं अकेली,
नारी की गरिमा बन गईं नवेली,
पढ़ाई को जीवन का मंत्र बनाया,
हर स्त्री को हक़ दिलाया।
जहाँ सती, पर्दा और चुप्पी थी,
वहाँ आवाज़ बनकर वो आईं थीं,
हर आँसू में संघर्ष की झलक थी,
हर मुस्कान में उम्मीद पलती थी।
बनीं विधवाओं की ढाल,
छुआछूत को किया बेहाल,
पाठशाला से क्रांति रच दी,
हर दलित को शिक्षा दे दी।
तब जा कर "सावित्रीबाई फुले" कहलाईं,
हर नारी की प्रेरणा बन पाईं,
जिन्होंने दुनिया को सिखा दिया –
नारी भी बदलाव ला सकती है,
अगर वो ठान ले… तो इतिहास रच सकती है।