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"हरी पत्तियों की फुसफुसाहट"
चुपचाप मैं बैठी थी,
अपने ही आँसुओं के सागर किनारे,
तभी हवा ने आकर कानों में कहा —
"यह दर्द भी पत्तों की तरह गिर जाएगा।"
आसमान ने अपने नीले हाथों से
मेरे माथे को सहलाया,
और नदी की लहरें बोलीं —
"चलो, तुम्हें बहा ले चलें वहाँ,
जहाँ दर्द सिर्फ़ एक कहानी है।"
मैंने देखा,
एक तोता हरे पंख फैलाकर उड़ रहा था,
उसकी आँखों में वही आज़ादी थी
जो मैं सालों से ढूँढ रही थी।
पेड़ों की छाँव ने
मेरे सीने का बोझ हल्का किया,
और सूरज ने धीरे-धीरे
मेरे भीतर रोशनी भर दी।
अब मैं जानती हूँ —
प्रकृति सिर्फ़ बाहर नहीं होती,
वो मेरे भीतर भी है,
और वही मेरा सबसे सच्चा घर है।
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