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मैं प्रकृति का एक फूल हूँ
मामूली-सा आज हूँ,
कल प्रकृति में
मिल जाऊँगी।
बस इतना चाहती हूँ—
प्रेम के फूल की वो सुगंध बन जाऊँ,
गाँव से लेकर शहर तक,
हवा के संग बहूँ,
दिलों में महक बनकर उतरूँ।
जहाँ भी जाऊँ,
मन की कठोरता को कोमल कर दूँ,
थके चेहरों पर मुस्कान सजा दूँ।
और जब मेरी पंखुड़ियाँ
मिट्टी में समा जाएँ,
तो भी मेरी खुशबू
आसमान तक गूँजती रहे।
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