देश के हाल
मैं मेरे में अब जीवन सीमित है
राजनीति का दलदल अब कीचड़ है
लालच , द्वेष, घृणा से भरी मेरी सोच है
मानवता अब हर घर में शर्मशार है
मीडिया मनोरंजन का साधन है
संस्कार , संस्कृति चार दिवारी में कैद है
प्रकृति, जीव , जंतु ये सब विकास को भेंट है
रुपयों , पेसो वालो की पूछ है
बाकी देश वासी पैरों की धूल है
देश वासी नहीं नहीं
हम सब एक है
देश का ये हाल हम से है
भाषा पे दबंगाई जताते है
हर जगह आरक्षण की लूट है
सभी जातियों को अलग प्रदेश की मांग है
युवाओं का मोबाइल में ध्यान है
बूढ़े मां बाप वृद्धाश्रम के लायक है
गौरवशाली इतिहास पर सभी को गर्व है
हा ये मेरा वर्तमान देश है ।।
दक्षल कुमार व्यास