*चाहत की तड़प*
जितना चाहा, कोई अपना न बन सका,
राहों में रोये हम, पर वो जान न सका।
शायद मोहब्बत से वो घबरा गया,
रूठकर दूर गया, और हम रातों को जागते रहे।
फिर भी दिल में उसकी चाह जगती रही,
हर सांस में उसकी याद सजती रही।
मंज़िल तक पहुँचे, मगर ठहराव न मिला,
गीत गुनगुनाए, पर सफ़र फिर से अधूरा रहा।
_Mohiniwrites