आध्यात्मिक बाज़ार का सच
1. आज धर्म और अध्यात्म भी एक बिज़नेस बन गया है।
– गुरु और प्रवचनकर्ता केवल "हमारे जुड़े, हमारे जुड़े" की पुकार करते हैं।
– यह सब एक ग्राहक जुटाने की मार्केटिंग है।
2. सोशल मीडिया उनका सबसे बड़ा हथियार है।
– जहाँ मुफ्त में विज्ञापन किया जा सकता है।
– लाखों लोगों तक पहुँचने का यह सबसे सस्ता जरिया है।
3. ज्ञान का मंच भी बाजार है।
– वे हमेशा एसी हॉल में, बड़े मंचों पर ज्ञान बाँटते हैं।
– क्यों? क्योंकि वहाँ से "मूल्य" बनता है—
नाम, प्रसिद्धि और पैसा।
4. भीतर से रिक्त, बाहर से भरे।
– जो भीतर सच्चे साधक होते हैं, वे मंच नहीं ढूँढते, मौन ढूँढते हैं।
– लेकिन ये प्रवचनकर्ता बाहर लोगों के बीच जाकर "भीड़" से अहंकार लेते हैं।
– बड़ी भीड़ सुन रही है, ताली बजा रही है—
तो उन्हें लगता है "हम महान हैं"।
5. आध्यात्मिकता केवल सात्विक नशा बन गई है।
– प्रवचन केवल मन को हल्की तसल्ली देते हैं।
– असली जागरण का कोई सवाल ही नहीं।
– आत्मा को छूने वाली कोई बात इनसे नहीं निकलती।
6. सत्य के मामले में वे सबसे नीचे हैं।
– एक अनपढ़ भी उनके ऊपर खड़ा हो सकता है।
– क्योंकि अनपढ़ कम से कम ईमानदार है।
– लेकिन ये बड़े लोग भीतर से पूर्ण भिखारी हैं।
– बाहर से सिंहासन पर बैठे हैं, भीतर आत्माहीन खड़े हैं।
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